1.
फूल कलियों से महकते बच्चे
घर में जुगनू से चमकते बच्चे
तितलियों को वो पकड़ने आये
नर्म शाख़ों से लटकते बच्चे
ख़ुशबुओं से भरे इस मौसम में
इन परिंदों से चहकते बच्चे
‘आरती’ हक़ है उन्हें जीने का
जो हैं सड़कों पे भटकते बच्चे
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2.
जी रहे हैं पंछियों की ज़िंदगी
शाख़े- गुल और मौसमों की ज़िंदगी
दर्द का इज़हार भी करते नहीं
देखिए इन मुफ़लिसों की ज़िंदगी
मन्दिरो- मस्जिद से है क्या लेना उन्हें
जीते हैं वो सरफ़िरों की ज़िंदगी
शायरी सुनकर ये अंदाज़ा हुआ
क्या बला है क़ाफ़ियों की ज़िंदगी
‘आरती’ सय्याद की नज़रों में हैं
बस यही है घोंसलों की ज़िंदगी
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3.
ज़रूरत है समझने की
नहीं है बात कहने की
अंधेरी रात में घर से
न कर ग़लती निकलने की
बिछाकर कांच कहता है
इजाज़त है टहलने की
सड़क बिजली दवा पानी
हुई है बात सपने की
लगा दी आग तो उसने
है देरी सिर्फ़ जलने की
दुआ अब दीजिए साहब
चमन में फूल खिलने की