1.
बस्ती बस्ती अलख जगाकर आते हैं
सबके भीतर आग लगाकर आते हैं
उनमें कुछ हीरे होंगे, मोती होंगे
दुख अपने सारे चमकाकर आते हैं
हर लम्हा अनमोल रहा है दुनिया में
हर लम्हे का क़र्ज़ चुकाकर आते हैं
शाम से छत पे रूठके कैसा बैठा है
चांद को कोई शेर सुनाकर आते हैं
आख़िरे शब में कैसे तेरी याद आई
बात है गहरी, तुझे बताकर आते हैं
जिन राहों को चांद सितारे छोड़ गए
उन राहों पर धूल उड़ाकर आते हैं
हम से कुछ दीवाने भी मिल जाएंगे
घर घर में आवाज़ लगाकर आते हैं
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2.
तनहा मंज़र हैं तो क्या
सात समंदर हैं तो क्या
ज़रा सिकुड़ के सो लेंगे
छोटी चादर है तो क्या
चांद सुकूं तो देता है
ज़द से बाहर हैं तो क्या
हम सा दिल लेकर आओ
जिस्म बराबर हैं तो क्या
बिजली सबपर गिरती है
मेरा ही घर है तो क्या
तू भी सीने से लग जा
हाथ में खंज़र है तो क्या
डगर डगर भटकाती है
दिल के अंदर है तो क्या