अक्टूबर गांधी जी को साथ ले आता है लेकिन इस बार सितंबर की स्मृतियाँ भी साथ हैं। G-20 सम्मेलन चल रहा है। टीवी स्क्रीन पर एक तस्वीर उभरती है और दृष्टि जैसे ठहर ही जाती है। तमाम देशों के राष्ट्राध्यक्ष, बापू को श्रद्धांजलि दे रहे हैं और यह दृश्य कैमरे में कुछ इस तरह क़ैद हुआ कि अब एक कालजयी तस्वीर बन गया है। देश की राजधानी दिल्ली के हृदय में स्थित, हमारे बापू की समाधि, राजघाट पर उनकी आत्मा विश्रामावस्था में है लेकिन उनकी विचारधारा और मूल्यों की गूँज जैसे तीनों लोकों में सुनाई पड़ रही है।
राजघाट मात्र एक समाधि स्थल ही नहीं बल्कि हमारी सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक भी है। एक ऐसी विरासत जो असहमति की आजादी, अहिंसा और सर्वोदय की भावना का पुरजोर समर्थन करती है। यहाँ पर जाना, सत्य के साथ पूरी निर्भीकता के साथ खड़े रहने की शक्ति देता है और दुनिया का यहाँ सिर झुकाना कहता है कि महात्मा गांधी हमारे ही राष्ट्रपिता नहीं है बल्कि अमूल्य वैश्विक धरोहर हैं।
सचमुच गेंदे के पीले फूलों से सजी, महकती इस सुबह ने पूरे देश को भाव विभोर कर दिया था। कोई चित्र, कैसे किसी व्यक्ति को ऊर्जा से भर सकता है उसकी मिसाल अब यही अद्भुत, निश्छल पल बनेगा! और आने वाली पीढ़ियाँ इस तथ्य को और गहराई से समझेंगी कि सद्भावना, शांति और प्रेम की मशाल प्रज्ज्वलित करते हुए समानता और न्याय की दिशा में काम करने वाले एक सरल, सहज, आडंबरविहीन व्यक्ति के समक्ष पूरी दुनिया स्वतः झुकती है।
संदेश स्पष्ट है। यह किसी नेता की नहीं सम्पूर्ण मानवता की जीत है जिसके आगे पूरा विश्व नतमस्तक है। एक दुनिया युद्ध की समर्थक है और दूसरी शांति की, एक दुनिया सत्य का परचम लहराती है और दूसरी में छल-कपट और झूठ का बोलबाला है। एक में ईर्ष्या है, द्वेष है, अहंकार और बदले की भावना है तथा दूसरी आत्मसंतुष्टि और स्वविकास के सिद्धांतों पर जीती आई है। एक में कमजोर वर्ग के प्रति घृणा और तिरस्कार है, दूसरी उनके उत्थान और विकास की बात करती हैं। एक नफ़रत से भरी हुई और दूसरी प्रेम की नींव पर डटी हुई। हमें किस दुनिया में रहना चाहिए, इसका उत्तर ही गांधी जी की यात्रा का हासिल है।
भारत के इतिहास की तमाम गाथाओं में हिंसा तो हमने खूब पढ़ी लेकिन उन्हीं के मध्य एक सुनहरा पृष्ठ भी है। यह पृष्ठ अहिंसा का है, सविनय अवज्ञा का है, अपने सिद्धांतों और सत्य के प्रति अटूट प्रतिबद्धता से डटे रहने का है। यह उन तमाम घटनाओं का सार भी है जिसने देश की स्वतंत्रता के लिए हमारे संघर्ष की रूपरेखा रची। इस गाथा के अन्य अध्यायों में आत्मनिर्भरता, स्वदेशी का उपयोग और आत्म-अनुशासन पर बल दिया गया है। इसमें पूरी दृढ़ता और निर्भयता से जीते हुए क्षमा और मेल-मिलाप की भावना का अनुसरण करने का पाठ भी है। साथ ही पर्यावरण चेतना भी एक प्रमुख बिंदु के रूप में उभरता है।
दरअसल गांधी जी के दर्शन का यह सार ही भारत की आत्मा है और प्रत्येक भारतीय का मूल संस्कार। गांधी जी की शिक्षाएं कोई ऐतिहासिक अवशेष नहीं हैं। हमारे सांस्कृतिक और नैतिक ढांचे पर गांधीवाद की एक अमिट छाप है। हम जानते हैं कि गांधी विरोधियों के हाथ में बंदूक, आँखों में क्रोध, हृदय में घृणा, कुंठा और ज़बान पर झूठ फन फैलाए बैठा है। गांधी जी यह सब देखते तो मुस्कुराकर कहते कि “इन्हें मारने के लिए तो ये स्वयं ही काफी हैं।”
स्पष्ट है कि सत्य को किसी आवरण, किसी छलावे या निरर्थक अपना डंका पीटने की आवश्यकता नहीं होती! वह निश्छल, निर्विकार भाव से अडिग खड़ा रहता है, हमारे राष्ट्रपिता बापू की तरह। जो गांधीवाद को नहीं मानते, वे बाहरी तौर पर ही भारतीय हो सकते हैं लेकिन भीतर से कुछ और ही हैं। जो भीतर से भी भारतीय है, वह हिंसा का समर्थक क़तई नहीं हो सकता! सच्चा भारतीय सदैव सामाजिक न्याय के लिए खड़ा होगा, वह विभाजन को पाटने और शांति को बढ़ावा देने की बात करेगा।
इसीलिए ध्यान रहे कि गांधी जी की स्मृति या उन्हें श्रद्धांजलि भव्य स्मारकों या राष्ट्रीय छुट्टियों तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह हमारे दैनिक जीवन में अंतर्निहित है। यह दयालुता के छोटे-छोटे कार्यों, सांप्रदायिक सद्भाव की भावना और असाधारण चुनौतियों का सामना करने वाले आम लोगों के जीवन में परिलक्षित होती है। यह उन मूल्यों में प्रतिबिंबित होती है जो हम हमारे और आसपास के बच्चों में रोपते हैं। यह हमारे दूसरों के प्रति व्यवहार और एक बेहतर, न्यायपूर्ण दुनिया की आकांक्षा में जीवित है।
गांधीवाद भौगोलिक दूरियों से परे है। तभी तो उनके विचारों ने दुनिया भर के नेताओं, विचारकों और कार्यकर्ताओं को प्रेरित किया है। उनकी शिक्षाएं कई सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों के लिए मार्गदर्शक का कार्य करती हैं। दुख और अवसाद के दौर में गांधी ही आकर स्मरण करा जाते हैं कि भयभीत हुए बिना सच्चाई, अहिंसा और दृढ़ता से डटे रहो।
गांधी जी की देह अतीत का हिस्सा हो सकती है पर गांधी हमारे साथ हैं। वे हमारे विचारों और कार्यों में जीवित हैं। उनकी आत्मा अब भी हमारा मार्गदर्शन करती है और नित हमें यह याद दिलाती है कि ‘जो बदलाव हम दुनिया में देखना चाहते हैं, वह हमसे ही प्रारंभ होता है।’ वस्तुतः गांधी इतिहास की पुस्तक में दबी कोई कहानी में नहीं, हमारे डीएनए में है।