सिक्किम में लोकगीतों की समृद्ध परंपरा है। सिक्किमवासी अपने संस्कार गीतों, उपासना गीतों, त्योहार गीतों, फसल गीतों आदि के द्वारा अपनी कोमल भावनाओं को अभिव्यक्त करते हैं। यहाँ के लोकगीतों में विषय विविधता और भावनाओं का प्राबल्य है। प्रेम, विवाह, संस्कार, प्राकृतिक घटनाएँ आदि इन लोकगीतों के विषय होते हैं। लोकगीतों में सिक्किम का सांस्कृतिक वैशिष्ट्य प्रतिबिंबित होता है। सितम्बर महीने में सिक्किम में दो दिवसीय कंचनदीजोड़ा नृत्य उत्सव आयोजित किया जाता है। इस अवसर पर कंचनजंगा की पूजा-अर्चना की जाती है। लोस्सूंग (नव वर्ष) के अवसर पर काली टोपी नृत्य प्रस्तुत कर हर्ष प्रकट किया जाता है। इस नृत्य के द्वारा बुराई पर अच्छाई, अंधकार पर प्रकाश एवं पाप पर पुण्य की विजय दिखाई जाती है। इस नृत्य की प्रस्तुति पुरुषों द्वारा की जाती है। नर्तकगण विभिन्न प्रकार के मुखौटे पहनकर बौद्ध धर्म से संबंधित कथाएँ सुनाते हैं। लिम्बू समुदाय के लोग धान की खेती के उपरांत ढोल नृत्य द्वारा अपना हर्ष प्रकट करते हैं। लेपचा समुदाय के लोग भी फसल कटने के बाद समूह नृत्य करते हैं। सिक्किम का लोकनृत्य प्रदेश की लोक संस्कृति, लोकगीत, लोकजीवन और लोक वाद्ययंत्रों की मिश्रित प्रस्तुति है। यहाँ अनेक प्रकार के संस्कार नृत्य भी प्रचलित हैं। पुजारी द्वारा प्रस्तुत संस्कार नृत्य का उद्देश्य रोगी को स्वस्थ करना है। प्रदेश के अधिकांश लोकनृत्य संस्कार अथवा उत्सव से संबंधित हैं। सिक्किम में मुखौटा नृत्य भी प्रचलित है। नर्तकगण विभिन्न पशु–पक्षियों का मुखौटा धारण कर पारंपरिक नृत्य करते हैं। बरसिंगा नृत्य, कंकाल नृत्य, दम्पू नृत्य भी सिक्किम में अत्यंत लोकप्रिय हैं। लिंबू समुदाय लोकगीतों के विषय–वैविध्य के कारण अपनी विशिष्ट पहचान रखता है। लिंबू समुदाय के लोकगीतों को निम्नलिखित पाँच वर्गों में विभक्त किया जा सकता है-
1.खयाली–खयाली लिंबू समुदाय का प्रेमगीत है जिसमें लड़के–लडकियां काव्यात्मक भाषा में धुन के साथ अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं I
2.प्रेम गीत–शोरोक्पा पल्लम सम्लो, पल्लम सम्लो और तमके उकमा पल्लम सम्लो प्रणय गीत के विभिन्न प्रकार हैं। लड़के–लडकियां नृत्य करते समय या खेतों में कार्य करते समय प्रेम गीत गाते हैं। ये प्रणय गीत लड़के–लडकियों के लिए विवाह की पृष्ठभूमि के रूप में कार्य करते हैं। ये गीत कुछ घंटों से लेकर कई दिनों तक चलते हैं।
3.हकपारे सम्लो–बुजुर्ग लोगों के मनोरंजन गीत को हकपारे सम्लो कहा जाता है। यह युगल गीत है।
4.निसाम्मंग सेवा सम्लो-सिक्किम के उत्सव गीत को निसाम्मंग सेवा सम्लो कहा जाता है जो यहाँ बहुत लोकप्रिय है। किसी उत्सव के आरंभ होने के समय जवान लड़के–लड़कियों द्वारा निसाम्मंग सेवा सम्लो गाए जाते हैं।
5.के लंग सम्लो–यह नृत्य के समय गाया जानेवाला मनोरंजन गीत है।
लोकगीत की दृष्टि से लेपचा समुदाय अत्यंत समृद्ध है। इस समाज में लोकगीतों की समृद्ध विरासत है। इनके लोकगीत बहुआयामी, विचारपरक और सारगर्भित होते हैं। इनके लोकगीतों को हम सामान्यतः दो वर्गों में विभाजित कर सकते हैं–पारंपरिक लोकगीत और आधुनिक लोकगीत। पारंपरिक लोकगीत विभिन्न त्योहारों एवं संस्कारों के अवसर पर पुजारियों द्वारा गाए जाते हैं जबकि आधुनिक लोकगीत नई पीढ़ी द्वारा गाए जाते हैं जिनमें नए विचार व नई धुन होती है Iलेपचा समुदाय के लोकगीतों को मुख्यतः आठ वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-1.लेनछयोवोम–प्रणय गीत,2.थनुंग सवोम–हास्य गीत,3.अस्योत वोम–उत्सव गीत,
4.रूम कत वोम–कृषि संबंधी गीत, 5.बिवोम–विवाह गीत,6.ल्यांग–निरो-चिको–वोम–देशभक्ति गीत,7.अपार्त-अपोक–वोम–फसल गीत,8.अपर्या–वोम–प्रार्थना गीतI
सिक्किम के सभी समुदायों का अपना विशिष्ट नृत्य है। इस प्रदेश का लोकनृत्य लोकगीतों, वाद्ययंत्रों, लोक संस्कृति, पारंपरिक परिधान और साजसज्जा का समुच्चय है। सिक्किम के लोकनृत्य को निम्नलिखित वर्गों में विभक्त किया जा सकता है-
1.संस्कार नृत्य-सिक्किम के संस्कार नृत्य को निम्नलिखित चार वर्गों में विभक्त किया जा सकता है-
i)खाईनजरी भजन–यह खस समुदाय (बाहुन और छेत्री) का नृत्य है जो रामायण और महाभारत पर आधारित है। किसी धार्मिक अथवा सामाजिक उत्सव के अवसर पर पाँच से लेकर पंद्रह पुरुष सदस्यों द्वारा यह नृत्य प्रस्तुत किया जाता है। इस नृत्य को प्रस्तुत करने के पहले देवी–देवताओं का आह्वान किया जाता है। आँगन में एक लंबे बाँस को गाड़ दिया जाता है। पवित्र पपीते के फल पर मिट्टी के दीप जलाए जाते हैं जिसे बाँस पर लटका दिया जाता है। नर्तकगण जोड़ा बनाकर बाँस के पोल के चारों ओर घूमते हुए नृत्य करते हैं और ढ़ोलक की धुन पर भजन गाते हैं।
ii)साक्यो रूम फाट–साक्यो रूम फाट लेपचा समुदाय का त्यौहार है। इस त्यौहार में सामूहिक नृत्य प्रस्तुत किया जाता है तथा ईश्वर से धन–धान्य की कामना की जाती है। इस त्यौहार में सात अमर दम्पतियों की उपासना की जाती है। लेपचा समुदाय के लोगों की धारणा है कि इन सात दम्पतियों की अनुकम्पा से ही फसलों की रक्षा होती है। यह लेपचा जनजाति का संस्कार नृत्य है जिसकी प्रस्तुति नवंबर माह में की जाती है। सात अमर दम्पतियों “मयेल क्योंग” की पूजा में यह नृत्य प्रस्तुत किया जाता है। लेपचा समुदाय का विश्वास है कि खेती संबंधी सभी प्रकार के बीज सात अमर दम्पतियों द्वारा लाए गए थे। इस नृत्य में सभी स्त्री पुरुष भाग लेते हैं। वे पंक्ति में घूमते हुए नृत्य करते हैं।
iii)तेनदोंग ल्हो रूम फाट-तेनदोंग ल्हो रूम फाट भी लेपचा जनजाति का संस्कार नृत्य हैजिसकी प्रस्तुति प्रत्येक वर्ष 8 अगस्त को की जाती है। इस त्योहार नृत्य का संबंध एक प्राचीन आख्यान से है। एक कथा है कि एक बार सिक्किम में महाप्रलय आया था जो इस भूमि को निगलनेवाला था, लेकिन ईश्वर ((रूम) ने सिक्किम को डूबने से बचाया। यह नृत्य टेनडोंग पर्वत की पूजा के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
iv)यगरंगसिंग लंग–यगरंगसिंग लंग लिम्बू जनजाति का संस्कार नृत्य है। माघ पूर्णिमा (दिसंबर) के दिन इस नृत्य की प्रस्तुति की जाती है। देवी–देवताओं की पूजा के लिए यह नृत्य प्रस्तुत किया जाता है। समस्त लिम्बू समुदाय देवी–देवताओं को नया अनाज और स्थानीय मदिरा अर्पित करता है और उनका आभार व्यक्त करता है। लिम्बू जनजाति के लोग इस नृत्य के द्वारा विभिन्न देवी–देवताओं की उपासना करते हैं। देवी–देवताओं को नवान्न का भोग लगाया जाता है तथा मांस, मदिरा आदि वस्तुएं अर्पित कर उनकी उपासना की जाती है। इस नृत्य उत्सव में पूरा समुदाय सम्मिलित होता है। यह नृत्य उत्सव एक, तीन, सात अथवा नौ रातों तक चलता है। इस नृत्य में लिंबू समाज की ऊर्जा, मस्ती एवं उत्साह देखने को मिलता है I
2.उत्सव नृत्य–उत्सवनृत्य के दो प्रकार हैं-I.मरुनी नृत्य और II.कग्येद मुखौटा नृत्य I
I.मरुनी नृत्य-मरुनी नृत्य नेपाली समुदाय के सबसे पुराने और लोकप्रिय समूह नृत्य रूपों में से एक है जो आमतौर पर तीन पुरुष और तीन महिला नर्तकियों द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। पुराने दिनों में मरुनी नृत्य में पुरुष ही महिला की भूमिका का निर्वाह करते थे, लेकिन रीति-रिवाजों और परंपराओं में बदलाव के बाद अब महिला नर्तकी केंद्रीय भूमिका निभाती है। इसे तिहार त्योहार के अवसर पर प्रत्येक घर के आंगन में प्रस्तुत किया जाता है। हारमोनियम, मादल, बांसुरी और घुँघरू जैसे वाद्ययंत्रों के साथ गीतों की पृष्ठभूमि में नर्तकियों के कदमताल मन को मोह लेते हैं।
II.कग्येद मुखौटा नृत्य–‘कग्येद’ का अर्थ गुरु के आठ उपदेश है जिसे इस नृत्य के द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। लोसूंग त्योहार आरंभ होने से पूर्व बौद्ध भिक्षुओं द्वारा मठों में इस नृत्य का प्रदर्शन किया जाता है। यह नृत्य रूप ‘गुतोर समारोह’ का महत्वपूर्ण अंग है। इसका आयोजन चौथे महीने की 28 वीं तिथि (दिसंबर–जनवरी) को होता है I
3.ऋतु संबंधी नृत्य–ऋतु संबंधी नृत्य के दो प्रकार हैं-I.संगिनी नाच और II.तमके ऊकमा नाचI
I.संगिनी नाच–‘संगिनी’ का शाब्दिक अर्थ मित्र होता है Iइस नृत्य के उद्भव के पीछे शिव और पार्वती का एक आख्यान है। अनेक जवान विधवाओं के दुःख को देखकर पार्वती जी अत्यंत दुखी और उदास हो गईं थीं। इन महिलाओं ने जवानी में ही अपने पतियों को खो दिया था। पार्वती जी ने शिव जी से आग्रह किया कि वे कुछ ऐसा उपाए करें जिससे जवान महिलाएं वैधव्य के अभिशाप से मुक्त हो सकें। शिव ने पार्वती जी से कहा कि यदि स्त्रियाँ पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ उनकी पूजा करें तो वैधव्य के अभिशाप से मुक्त हो सकती हैं। उसी समय से महिलाओं द्वारा तीज व्रत किया जाता है। इस व्रत के अवसर पर नेपाली महिलाएं अपने आँगन में संगिनी नृत्य करती हैं। संगिनी एक प्रमुख नेपाली नृत्य है जो विवाहिता महिलाओं द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। उसके साथ उसकी विवाहिता पुत्री भी होती है। इस नृत्य द्वारा ससुराल में हो रही कठिनाइयों को प्रदर्शित किया जाता है।
II.तमके ऊकमा नाच–तमके ऊकमा लिंबू समुदाय का ऋतु संबंधी नृत्य है। चैत्र–बैशाख माह में मानसून के पहले इसका प्रदर्शन किया जाता है। जवान लड़के–लड़कियां इस नृत्य में भाग लेते हैं। वे नृत्य के साथ प्रेम गीत भी गाते हैं। इस नृत्य में 10–15 नर्तक शामिल होते हैं। सांस्कृतिक कार्यक्रम में भी इस नृत्य की प्रस्तुति की जाती है।
चाबरुंग या केलंग–यह लिंबू समुदाय का नृत्य है जो किसी विशेष अवसर पर अथवा विवाह के समय प्रस्तुत किया जाता है। इस नृत्य में प्रकृति के सौन्दर्य को रेखांकित किया जाता है।
महाकाली और लखी–यह नेवार लोगों का मुखौटा नृत्य है जिसमें असत्य पर सत्य और पाप पर पुण्य की विजय दिखायी जाती है। महाकाली नृत्य में देवी महाकाली और उनकी आठ साथियों द्वारा राक्षसों को दंडित करने का भाव प्रदर्शित किया जाता है।
सकेवा सिली–यह राई समुदाय का कृषि संबंधी नृत्य है जिसमें धरती का आभार प्रदर्शन किया जाता है।
चंडी पूजा–देवी चंडी सुनुवार समुदाय की सबसे जाग्रत देवी मानी जाती हैं। बैशाख शुक्ल पूर्णिमा को नर्तक आठ अलग–अलग ढोल की धुन पर पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ चंडी नृत्य करते हैंI
चुटकी-यह उत्सव नृत्य है। फसल कटाई के समय और कुछ अन्य खुशी के अवसरों पर पुरुषों और महिलाओं के इस समूह नृत्य के माध्यम से हर्ष और जोश का प्रदर्शन किया जाता है I
दोहरी-यह गुरुंग समुदाय का समूह नृत्य है जो आमतौर पर तीन पुरुष और तीन महिला नर्तकियों द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। यह एक पारंपरिक नृत्य है। पहले कठिन परिश्रम करने के बाद नर्तक ‘रोडीघर’ में एकत्रित होकर गीत-नृत्य के माध्यम से अपने विचारों का आदान-प्रदान करते थे । इस नृत्य में मादल, बांसुरी और घुँघरू जैसे वाद्ययंत्रों का इस्तेमाल किया जाता है ।
जेरुम सिल्ली-यह राई समुदाय का समूह नृत्य है जो एक पुरुष और चार महिलाओं द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। इसके द्वारा लड़की के विवाह के अवसर पर परिवार के सदस्यों और दोस्तों की भावनाओं को व्यक्त किया जाता है। नर्तकियों का लक्ष्य घर की लक्ष्मी (समृद्धि) की रक्षा करना है। जवान, वृद्ध सभी उम्र के लोग इस नृत्य में शामिल होते हैं। इसमें ढोल और झमता दो वाद्य यंत्रों का प्रयोग किया जाता है।
तमांग सेलो–यह तमांग समुदाय का समूह नृत्य है जो खुशी के अवसरों पर प्रस्तुत किया जाता है। इस नृत्य द्वारा समुदाय के पराक्रम और जीवनी शक्ति पर प्रकाश डाला जाता है। तमांग लोकगीतों को ‘हवाई’ कहा जाता है जो मानवीय भावनाओं से लबरेज होते हैं। ये गीत इतने लोकप्रिय हैं कि कोई भी नेपाली उत्सव बिना तमांग गीत के पूर्ण नहीं होता है ।
लखी (मुखौटा) नृत्य–यह नेवार (प्रधान) समुदाय का समूह मुखौटा नृत्य है जिसका उद्देश्य बुरी आत्माओं को दूर करना और शांति व समृद्धि लाना है। इस नृत्य में खे (ढोल), झाली और धीमे आदि वाद्ययंत्रों का उपयोग किया जाता है।
नौमाटी-दमाई समुदाय के इस खूबसूरत समूह नृत्य में नौ प्रकार के वाद्ययंत्रों का उपयोग किया जाता है। इसमें दो प्रकार की शहनाई, छोटी और बड़ी तुरही, दो प्रकार के दमाहा (नगाड़ा), दो प्रकार के तुयुमको (छोटे ढोल), ढोलकी और झिमता (झांझ) का प्रयोग होता है। शादी और अन्य शुभ अवसरों पर इसकी प्रस्तुति अनिवार्य है।
च्याप-ब्रुंग नृत्य-च्याप-ब्रुंग लिंबो समुदाय का पारंपरिक वाद्ययंत्र है। यह ढोलक की तरह होता है, लेकिन आकार में बहुत बड़ा है। समूह नृत्य के दौरान पुरुष नर्तक रस्सी के सहारे अपने गले में इस वाद्य यंत्र को लटकाते हैं और ढोलक को एक तरफ हथेली से और दूसरी ओर छड़ी से मारते हैं। ढोलक पर इस तरह मारने से दो अलग-अलग ध्वनियाँ निकलती हैं जो दर्शकों में उत्साह का संचार करती हैं ।
धान नाच-चार पुरुषों और चार महिलाओं द्वारा हारमोनियम, मादल, बांसुरी और घूँघरु की थाप के साथ किया गया यह समूह नृत्य किसानों की सद्भावना और दृढ़ इच्छा शक्ति का प्रतीक है। काम की एकरसता को तोड़ने और किसानों में उत्साह व ऊर्जा का संचार करने के लिए धान नाच प्रस्तुत किया जाता है। इसमें पुरुष, महिलाएं, युवा और बूढ़े सभी भाग लेते हैं तथा गीत-नृत्य के माध्यम से वातावरण में सकारात्मकता का संचार करते हैं।
लिंबू समुदाय के लोकनृत्य तीन प्रकार के हैं-
(i)प्राकृतिक नृत्य–इस नृत्य में स्त्री–पुरुष सभी भाग लेते हैं। प्राकृतिक नृत्य में नर्तकगण पद संचालन द्वारा पशु–पक्षियों की नकल करते हैं I
(ii)कृषि संबंधी नृत्य–मक्के और धान के खेतों में कार्य करते समय युवक–युवतियां इस प्रकार के नृत्य करते हैं। यह नृत्य मंद गति से आरंभ होकर देर तक चलता है। युवक–युवतियां नृत्य के साथ प्रेम गीत भी गाते हैं। मंचों पर भी इस नृत्य का प्रदर्शन किया जाता है।
(iii)युद्ध नृत्य–लिंबू समुदाय में युद्ध नृत्य की परंपरा अत्यंत प्राचीन है। इसका उद्देश्य युवकों में जोश और उत्साह का संचार करना एवं समुदाय के लोगों में गौरव बोध जाग्रत करना है।
सिक्किम की वाचिक परंपरा में असंख्य लोककथाएँ विद्यमान हैं। यहाँ सभी प्रकार की लोककथाएँ मिलती हैं। जानवर, पेड़–पौधे, पारिवारिक जीवन, प्रेम संबंध, हँसी–मजाक, ईर्ष्या, क्रूरता, धूर्तता, मूर्खता, जादू–टोना, भाग्य, लोकपरंपरा आदि जीवन से जुड़े सभी पहलुओं से संबंधित कथाएँ मिलती हैं। ये लोककथाएँ प्रदेश की सांस्कृतिक धरोहर हैं जिनमें प्राचीन ज्ञान छिपा हुआ है। इन लोककथाओं से विभिन्न समुदायों के ऐतिहासिक, सामाजिक और धार्मिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश पड़ता है। सिक्किम की असंख्य लोककथाएँ, गीत और नृत्य रूप अभी भी विद्यमान हैं, लेकिन यदि समय पर उनका संकलन-संरक्षण नहीं किया गया तो ये काल-प्रवाह में विलीन हो जाएंगे।