1. दोहे
सावन आया लौट घर ना आए भरथार
विरहन हिय तरसै करै पपिहा करुण पुकार।
राग रागिनी गा रहे बदरा बिजुरी नीर
छम छम बूंदें भर रहीं विरह हृदय में पीर।
ले आए मेघा सखी, पावन तनय फुहार
बरसे नभ से शीतला, मन भावन रसधार।
मन मयूरा बन नाचता देख घटा घनघोर
देह बूंद बरखा छुए जियरा उठत हिलोर।
मेघधनुष रथ चढ़ चली नभ साजन के द्वार
सावन आते ही धरा सज सोलह श्रंगार।
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2. दोहा मुक्तक
चार टका की चाकरी परदेशी मन होय
चातक सी रस्ता तकै सजनी अंसुअन रोय
सावन बरसै बेसुरा पुरबइया के संग
बिरहन तन व्याकुल जलै तप तप कुंदन होय।
तन के डोले में सजै आतम दुल्हन वेश
मन सासू सा रीझता कृंदन रुदन कलेश
दुलहिन ज्यों पावै नहीं ठौर न कोई नाम
अकुताए तन त्यागती गहै शरन सरवेश।
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3. दोहा गीतिका – रावण
रावण रोता सोचता देख लाश के ढेर
पुलिस प्रशासन से हुआ यह कैसा अंधेर।
जलना तो प्रारब्ध था मैं जल होता राख
पटरी पर क्यों जा मिली मानवता यों खाख।
देख कलेजा कांपता राम बताओ आप
साथ मेरा क्यों बन गया मानव का अभिशाप।
ऐसे मत फूंको मुझे हाथ जलैं खुद आप
पीछे केवल छूटता रुदन और संताप।
मृत्यु दंड मैं पा चुका प्राण हरे यमराज
राम ये कैसा न्याय है फिर क्यों जलता आज ।।
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