1.
सागर के तट पे आते ही जिसने रची ग़ज़ल
बनके लहर वो बह रही है हर गली ग़ज़ल
यह शायरी क्या चीज़ है अल्फ़ाज़ का सुरूर
सुनते ही इक नशे की तरह छा गई ग़ज़ल
ठहराव का न था जहां नामोनिशाँ वहीं
अलबेली इक मचलती नदी सी लगी ग़ज़ल
जब जब उठा तूफ़ान था सोचों में थी मची
हलचल थी शब्द शब्द में उफनती नदी ग़ज़ल
गुमनाम रास्तों से गुजरती थी जब कभी
शायर की देख शोखियां पथरा गयी ग़ज़ल
जिसमें कली का ज़िक्र था, ख़ुशबू थी फूल की
भंवरों को देख-देख खिली मनचली ग़ज़ल
मंज़िल मिलेगी कब उसे उसको न था पता
‘देवी’ मुसाफिरों सी भटकती रही ग़ज़ल
**************
2.
न जाने क्यों हुई है आज मेरी आंख कुछ यूँ नम
न सीने में कोई है दर्द, या दिल में है कोई ग़म
गले मिलकर कभी आँखों से ग़म यूँ भी पिघलता है
जो बन सैलाब अश्कों का किनारों को करे पुरनम
वो बचपन की जवानी की, जो यादें हैं बसी दिल में
जवाँ पीढ़ी को लगता है बड़े पैदाइशी हैं हम
उठी डोली जो बेटी की बजी शहनाई सुर में तब
नज़र से वो हुई ओझल मगर दिल में रही हरदम
पुराने कुछ घरोंदे रेत के दिल में हैं बाक़ी अब
जिए पल पल जो हमने साथ वो भी तो नहीं है कम
तेरी हर याद पर भर आती है दिल जाने क्यों ‘देवी’
कि जैसे भोर तक बरसे है दिल पर ख़ुशनुमा शबनम