समकालीन संस्कृत कविता जीवन यथार्थ के हर कठिन प्रश्न के सामने खड़ी मिलती है। खड़ी ही क्यों, निरन्तर उससे जूझती भी है और जीवन की सार्थकता के प्रति सचेष्ट होकर एक बेहतर भविष्य की नींव भी रखती है। आज की कविता का मूल उद्देश्य यही है। समकालीन जीवन के विविध एवं व्यापक परिदृश्यों से सीधे जुड़ती है। एक सफल जीवन की कल्पना और उसके जीवन का एक सुनिश्चित कर्तव्य बोध। इसी कविता के विपरीत हरियाणा के रहनेवाले चर्चित युवा कवि डॉ.जोगेन्द्रा कुमार(एसोसिएट प्रोफेसर, बनवारी लाल जिन्दल सूई वाला महाविद्यालय, तोशाम,भिवानी, हरियाणा) की कविताओं के भीतर जब हम प्रवेश करते हैं तो सहज ही महसूस हो जाता है कि समकालीन परिवेश की सच्चाईयों के प्रति जागरूक ही नहीं बल्कि उन सच्चाईयों की विद्रूपताओं के विरूद्ध आवाज उठाने में सक्षम है। सृजन यदि अपने समकालीन परिवेश से आँखें चुरा लेता है तो वह न तो जीवन्त व यथार्थ बन पाता है और न उसका प्रभाव स्थायी होकर किन्हीं मूल्यों को उत्प्रेरित ही करता है।
साहित्य वस्तुगत सत्य प्रकट करें,सभ्य और उदात्त समाज के लिए प्रयास ही काव्य का एकमात्र उद्देश्य है। इनका यह काव्य संग्रह 2018 में पराग प्रकाशन गाजियाबाद से प्रकाशित हुआ है। यह संग्रह 23 भागों में विभाजित है। सारी कविताओं के रूप रंग में विविधता रहने के बावजूद स्वर एक जैसा है। जीवन की बारीक वास्तविकताओं और मानवीय संवेदना के सघन तन्तुओं की बुनावट है। जीवन का उल्लास और विश्वास इन कविताओं में गुंथा है। उस स्वर में मनुष्यता में लगातार आ रही गिरावट के बावजूद कवि का मनुष्य और मनुष्यता पर गहरा विश्वास है। जीवन जीने की लालसा और बेहतर भविष्य की कल्पना है। साफ—साफ सुनी और देखी जा सकती है।
कविवर डॉ.जोगेन्द्र कुमार का विजन, जो यथार्थ रूप में है,वह कभी—कभी दर्शन की ओर चला जाता है।
धनसंग्रहणं व्यर्थं तत्तु लोके विनश्यति ।
नर! यशोऽर्हयेद् नित्यं यशो हि सात्त्विकं धनम् ॥2॥ पृष्ठ 19
× × ×
चरित्रं प्रमुखं पुसां तच्चेत् तेषां च नश्यति ।
भवति जीवनं तेषां नाविव नाविकं विना ॥18॥ पृष्ठ 21
× × ×
चिताया भीषणा चिन्ता नात्र हि कोऽपि संशय: ।
दहति जीवितं चिन्ताा चिता तु मृतमेव हि ॥10॥ पृष्ठ 65
× × ×
सुखं च दु:खं च शुभाशुभं च
विरक्तिभक्ति: खलु शान्ति शक्ति: ।
पराजयो वा विजयो जनस्य
हि संभवो वै मनसा सदैव ॥12॥ पृष्ठ77
वर्णित पंक्तियों में परिवेश की सच्चाईयों का बयान उभर कर आया है। यह तो जाहिर है किसी भी रचनाकार की संवेदना को उसका परिवेश प्रभावित करता है। उस परिवेश के अन्तर्गत ही जीवन, यथार्थ, समय और दर्शन की सारी सच्चाईयाँ निहित होती है और उन सच्चाईयों को कोई भी रचनाकार अपने स्वभाव के अनुसार ग्रहण कर लेखन का विषय बनाता है।
दूसरी दृष्टि से संग्रह की कविताओं को देखा जाय तो यह सहज ही कहा जा सकता है कि संग्रह की अधिकांश कविताएँ मानवीय रक्षा में खड़ी महत्वपूर्ण की दस्तावेज तरह है। बेबसी, लाचारी, गुस्सा,बौखलाहट और आँसू के बीच एक दिखाई नहीं देनेवाला उत्साह भी है,जो बराबर जीवन की आकांक्षाओं को आवाज देता रहता है।मतलब डॉ.जोगेन्द्रा कुमार अपनी कविताओं में समस्त नाकारात्मक प्रवृतियों का विरोध करती नजर आती है।
कर्मणा बलवाँल्लोके कर्मणैव हि पण्डित: ।
कर्मण्येव धनं गुप्तं किंचिन्नण कर्मण: बहि: ॥2॥पृष्ठ 46
× × ×
आसीनस्य च खल्वास्ते शेते च शयितस्य भो: ।
प्रयातं याति वै भाग्यं तस्मात् त्वं सततं चर ॥13॥ पृष्ठ 47
× × ×
वित्त्तात् श्रेष्ठतरं वृत्तं वित्तं न हि कदाचन ।
वृत्तेनाप्नोति वित्तन्तुत वृत्तं वित्तेन नो नर: ॥4॥ पृष्ठ 49
कवि सामाजिक सद्भावना, सबके लिए सुख की कामना लिए सदैव चिन्तित रहता है। सभी बेख़ौफ़ सोयें, बेख़ौफ़ जागें। बस्तियाँ, खेत, खलिहान और कारखाने हों परन्तु बाज़ार न हो। बंदरों के बीच बिल्लियाँ सुरक्षित हों, रोटियाँ पर्याप्त हों कि कोई तकरार न हो। संसार में रोशनी हो, रोशनी घर हो और बेहतरीन सोच देखिए-
तमोहरं ज्ञानयश: प्रदायकम्
चरित्रनिर्माणविकासहेतुकम् ।
गुणप्रदं दोषविनाशकारकम्
नमामि शिक्षेश्वार! पादपंकजम् ॥1॥ पृष्ठ59
× × ×
गर्जन्ति हि परार्थाय भारं सदा वहन्ति् च ।
वर्षन्त्य पि परार्थाय मेघा: सत्पुरुषा इव ॥1॥ पृष्ठ 64
× × ×
स्थातव्यं च हि गन्त व्यं सर्वदा साधुभि: सह ।
जीवनसौरभं नित्यं करोति साधुसंगति: ॥2॥पृष्ठ 65
× × ×
परित्राणाय नारीणां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
शान्तिासंस्थापनार्थाय दुर्दण्डं धारयेन्नृ॥पं ।।4॥पृष्ठ 67
× × ×
सर्वेषां हि मनुष्याणामङ्गेषु समरुपता ।
अन्नंष पानं च वाक्साुम्यं जाति: पृथक् पृथक् कथम् ॥16॥पृष्ठ 73
समीक्ष्य काव्य संग्रह की कविताओं में आज की आवाज को सुना जा सकता है, जिसमें सामाजिक सन्दर्भों की अनुगूँज तो है ही, साथ ही समाज को नई दिशा देने की पहल भी है। डॉ.जोगेन्द्र कुमार का रचनात्मक विस्तार जीवन के हर पक्ष तक है जो इसके बेहतर साहित्य सृजन का संकेत है। असल में श्रेष्ठ कविता समाज में श्रेष्ठ सामाजिक मूल्यों के संवाहन में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है। प्रत्येक समाज के विचारों की अभिव्यक्ति होती है, जो समाज को एक दिशा प्रदान करते हैं।