(महिला उपन्यासकारों के संदर्भ में)
समाज में व्यक्ति के पारस्परिक संबंधों, व्यवहारों, क्रियाओं, रीति रिवाजों, मूल्यों को निर्देशित एवं नियमित करने वाले मानक संस्कृति कहलाते हैं। यह मानक पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होते रहते हैं। बोगार्डस के अनुसार- “संस्कृति किसी समूह के कार्य करने और विचार करने की समस्त रीतियों को कहते हैं।“[1]संस्कृति शब्द की व्युत्पति ‘सम’ उपसर्ग ‘कृ’ धातु और ‘क्तिन’ प्रत्यय के योग से मानी गई है। संस्कृत/ संस्कृति का अर्थ संस्कार करना, शुद्ध करना है, शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक परिमार्जन करना है। इसका संबंध विचार, भाव और बुद्धि- तीनों से है। “भारत से दूर रहकर भी प्रवासी अपने लिए संजीवनी/ ऑक्सीजन भारतीय संस्कृति से संजोते हैं,जिसे अन्तर्मन की परतों में बैठा/ छिपा वे उन दूर देशों में ले गए हैं। मानस की यही संपत्ति उनमें जब- तब जीवट भरती है, खुशियाँ देती है, पहचान बनाती है। “[2]
संस्कृति के अनेकानेक घटक प्रवासी महिला उपन्यासकारों के उपन्यासों में देखे जा सकते हैं। सांस्कृतिक नामों की ही इन उपन्यासों में भरमार है । उषा प्रियम्वदा के ‘नदी’[3] उपन्यास की नायिका का नाम गंगा ही हमारी संस्कृति से, देश की पवित्र नदी से सम्बद्ध है और आकाश गंगा का भी सांस्कृतिक महत्व है। गगनेन्द्र बिहारी और अर्जुनसिंह भी पौराणिक कथाओं से जुड़े नाम हैं। उनके ‘भया कबीर उदास’[4]में वसुंधरा, अपर्णा,रघु नाम मिल जाते हैं। हंसा दीप ने तो उपन्यास का नाम ही धन के देवता ‘कुबेर’[5] पर रखा है। हंसा दीप का ’ केसरिया बालम’[6]पाठक को राजस्थान की सांस्कृतिक यात्रा पर ले जाता है। उनके केसरिया बालम में धानी,आर्या,सुषम बेदी के‘पानी केरा बुदबुदा’[7]में दामोदर,स्वदेश राणा के‘कोठेवाली’[8]में बदरीलाल और करन,अर्चना पेन्यूली के‘वेयर डू आई बिलांग‘[9]में देव, हरि, गोविंद प्रसाद,सुरेश, पार्थ सारथी,दिव्या माथुर के ‘शाम भर बातें’में घनश्याम, मोहन, मोहिनी,सुरेंदर, दिनेश, महावीर, मेनका, मुरली, करण, सुदर्शन प्रियदर्शिनी के ‘पारो: उत्तरकथा ’[10]में राधा, रोहिणी, अनिल प्रभा कुमार के‘सितारों में सूराख’में चिन्मया,सुधा ओम ढींगरा के‘दृश्य से अदृश्य का सफर’[11]में रविश, भारत भूषण आदि नाम पात्रों के भारतीय संस्कृति से जुड़े होने का प्रमाण हैं।
पराये देश, पराये लोगों और स्थानीय संस्कृति के बीच अपनी सांस्कृतिक पहचान बनाए और बचाए रखना पात्रों के अन्तर्मन की आवाज़ ही है। ब्रिटेन, अमेरिका, कैनेडा, सिंगापुर, डेनमार्क- हर देश में एक मिनी भारत अपना अस्तित्व सँजोये है। हंसा दीप के ‘बंद मुट्ठी’ में सिंगापुर का विदेशी माहौल भी भारतीयता से सराबोर है। यहाँ भारतीयों की बस्ती, वार- त्योहार, भाषा, धार्मिक आयोजन, रस्मों-रिवाज, भारतीयों की दुकानें- कंपनियां, भारतीयों के रेस्टोरेन्ट, भेल, आलू-टिक्की, छोले भटूरे – यानी पूरा का पूरा भारतीय समाज है। ठीक ऐसा ही एक भारत केनेडा में भी बसा है। खन्ना अंकल, ईशा, ज्योत, वीर, भारतीय बाज़ार, रेस्टोरेंट सब इसी का हिस्सा हैं।नीना पॉल के ‘कुछ गाँव गाँव कुछ शहर शहर’ में ब्रिटेन में बसा एक मिनी भारत है। भारतीयों की बहुत सी सोने की दुकानों के कारण बेलग्रेव रोड को गोल्ड माईल भी बोलते हैं। यहाँ साड़ियों की भी बहुत सी दुकानें हैं। लेस्टर में इटैलियन, स्पेनिश, अंग्रेजी खाने के अतिरिक्त पंजाबी, गुजराती, मद्रासी, बंगाली, पाकिस्तानी खाना भी पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केंद्र है।
अर्चना पेन्यूली के ‘वेयर डू आई बिलांग’ के डेनमार्क में अनेक मंदिर हैं- आध्यात्मिक संस्थाएं भारतीय प्रभाव की हैं। जैसे रविशंकर का आर्ट्स ऑफ लिविंग, माँ आनंदमयी, ब्रह्माकुमारी संस्था, नारायण स्वामी आश्रम, इस्कॉन मंदिर, अष्टांग योग सेंटर, राम चंद्र मिशन का सहज मार्ग, मेडिटेशन सेंटर,हरे कृष्णा मंदिर, बुद्ध टैम्पल, सिद्धिविनायक मंदिर।हैं। लोग मंदिरों में व्रत त्योहार का आयोजन करते हैं, लंगर का खाना खाते हैं। निर्मल यहाँ राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की शाखा चलता है। डेनमार्क में जन्मे- पले लोग भी संस्कृत के शुद्ध उच्चारण में इसकी प्रार्थना पढ़ते हैं। भारतीय समुदाय के लिए यहाँ भारतीय स्टोर, भारतीय रेस्टोरेंट, धार्मिक, आध्यात्मिक स्थल सभीहैं। लोग दीपावली- जन्माष्टमी मनाते हैं। भारत से भजन मंडलियाँ बुलाते हैं। संघ, शाखा, मंदिर, डेनिश- इंडियन सोसायटी आदि भारतीय संस्कृति को जीवित रखने के उपक्रम ही हैं। नीना पॉल के ‘कुछ गाँव गाँव कुछ शहर शहर’ में ब्रिटेन में धार्मिक आयोजनों के लिए कम्युनिटी सेंटर और मन्दिर- सब हैं।
आज भारतवंशियों ने विश्व में जहां- तहां मिनी भारत का सृजन कर उसे भारतीय संस्कृति के भिन्न त्योहारों होली, नवरात्र, दीवाली, जन्माष्टमी के रंगों से सराबोर कर दिया है।
रंगो का त्योहार होली बसंत ऋतु का प्रमुखऔर सकारात्मक मूल्यों का त्योहार है। यह गाने- बजाने, मौज- मस्ती, मनोरंजन- हुड़दंग का त्योहार है। होली के रंग प्रेम के, भाव के, भक्ति के, विश्वास के रंग हैं। इलाप्रसाद के पात्र होली की मस्ती और हुड़दंग से अपने को रोक नहीं पाते। उनके उपन्यास‘रोशनी आधी अधूरी सी’[12]में नायिका शुचि समय- समय पर बी. एच. यू., मुंबई आई. टी. और अमेरिका में रहती है। उनके पात्र देश में हों या विदेश में– होली उनका प्रिय त्योहार है। बी. एच. यू. में होली धूमधाम से मनाई जाती है। बाद में मिलकर सविता के कमरे में खाना खाया जाता है।। होली भी खेली जाती है। सांस्कृतिक कार्यक्रमों में जगजीत सिंह, पंडित जसराज, जाकिर आदि को सुना जाता है। अमेरिकी भारतीय समुदाय भी भारतीय दर्शन और संस्कृति से पूर्णत: जुड़ा है।होली का सार्वजनिक आयोजन पार्कों में भी किया जाता है। आयस्टर क्रीक पार्क में छह हज़ार के आसपास लोग एकत्रित होते हैं और जमकर होली खेलते हैं।सभी गाते- नाचते हैं- होली खेलत रघुवीरा, अवध में होली खेलत —-। होली गीतों का त्योहार है। अमेरिका में भारतीय उत्सव त्योहारों का आयोजन मुख्यत: मंदिरों में होता है। वहाँ शिव मंदिर, विष्णु मंदिर, लक्ष्मी मंदिर सब हैं। मकर संक्रांति,नवरात्रि, होली, जन्माष्टमी, गरबा, शेराँ वाली की भेंटें- सब पर भारतीय एकत्रित होते हैं। इसी बहाने परस्पर मिलते- जुलते हैं। रश्मि अपनी बेटी सोनल के जन्मदिन पर पूजा का आयोजन करती है। शेराँ वाली के दरबार में भजन गाये जाते हैं। हंसा दीप के उपन्यास ‘केसरिया बालम’ की विवाहोपरांत राजस्थान से अमेरिका पहुंची धानी का पसंदीदा त्योहार होली है। उस देश में उसका सबसे पहला त्योहार यही आता है। यहाँ पति बाली उसे त्योहारों के बिना जीवन जीने की आदत डालने का संदेश देता है। कालांतर में बेटी आर्या बड़ी होती है और पाती है कि इस बहुसांस्कृतिक देश में भी हर संस्कृति के लिए स्पेस है। आर्या को अपने स्कूल के ‘साउथ एशियन कल्चर डे’ का उत्तरदायित्व सौंपा जाता है।विश्वविद्यालय का परिसर भारतीय छात्रों की यूनियन भी लिए है। गायन, वादन, नर्तन, अभिनय के मनोरंजक- सांस्कृतिक कार्यक्रम चलते रहते हैं। मस्ती का माहौल होमसिकनेस को पास फटकने नहीं देता। यह भी दिल के रिश्तों का ही एक हिस्सा है।
‘रोशनी आधी अधूरी सी’ में मुंबई आई. टी.के परिसर के मंदिर में नवरात्रि के दौरान डांडिया रास का आयोजन होता है, इसमें लड़कियां अपने ब्वाय फ़्रेंड्स को विशेषत: आमंत्रित करती है। सुषम बेदी के उपन्यास ‘हवन’में गुड्डो हवन करती है। दीपावली पर लक्ष्मी, गणेश, राम, सीता की पूजा की जाती है। गायत्री मंत्र का पाठ किया जाता है। उनके ‘इतर’ में गुरु पूर्णिमा और नवरात्र, मोरचे[13] में दशहरे, गाथा अमरबेल की में राखी और करवाचौथ का जिक्र है। स्वदेश राणा के ‘कोठे वाली’ में भी व्रत- त्योहार आए हैं। एकादशी वाले दिन चांदरानी प्रात: नहा- धोकर पति के हाथों से कुटी मूंग की दाल,चावल, घी और तांबे के सिक्के मंसवाकर कुल पर आने वाली बलाए टालने के लिए मिसरानी को देती है और चाँद निकलने तक निर्जला व्रत करती है और पति के हाथों मिष्ठान और फूल ले व्रत खोलती है। पूजा- अनुष्ठान, भविष्यवाणी या ज्योतिष शास्त्र पर विश्वास की बात भी आती है। ‘पानी केरा बुदबुदा’ में स्टीवेन के संस्कृत के गुरुजी उसके स्वास्थ्य के लिए महामृत्युंज्य के सवा लाख मंत्रों का जाप करवाते हैं।
अर्चना पेन्यूली के ‘पॉल की तीर्थयात्रा’[14]में 56 वर्षीय नायक पॉल को भूतपूर्व सास, नीना की माँ शीला फोन द्वारा नीना की पहली पुण्य तिथि के धार्मिक आयोजन की सूचना देती है और वह आयोजन स्थल सिद्धि विनायक मंदिर तक 108 किलोमीटर की 28 घंटे पद यात्रा कर उसे श्रद्धांजलि देने का संकल्प करता है। तीर्थयात्रा का संबंध धर्म और आत्मतत्व से रहता है, अर्चना पेन्यूली ने नायक पॉल की इस यात्रा को हृदय के उदात्त, शुद्ध भावों से जोड़ा है। पॉल भारतीय धर्म दर्शन में 108 के महत्व से परिचित है- तुलसी की लकड़ी की जपमाला में 108 मणियाँ, पहाड़ों पर स्थित अनेक मंदिरों की 108 सीढ़ियाँ, बौद्ध मंदिरों में नव वर्ष के आगमन पर बजने वाली 108 घंटियाँ, समुद्र मंथन में 54+54=108 देवताओं और असुरों द्वारा अमृत निकालना। प्राणायाम करना, स्लम डॉग मिलिनियर फिल्म के जुमले ‘जय हो’ को दोहराते रहना पॉल की आदत है । वे भारतीय और पाश्चात्य दोनों पद्धतियों से विवाहसूत्र में बंधते हैं। अद्वैत, वेदान्त, गीता को उसने पढ़ा है, भारतीय परम्पराओं के प्रति हमेशा उसका अनुराग रहा है। पॉल ने कला छात्र के रूप में ग्लासगो में बौद्ध धर्म का अध्ययन किया है, भारतीय चित्रकला और वास्तुकला से वह प्रभावित है,
नीना पॉल के ‘कुछ गाँव गाँव कुछ शहर शहर’ में स्थानीय और प्रवासी- दोनों प्रकार के उत्सव त्योहार चित्रित हैं। नीना पॉल के ‘कुछ गाँव गाँव कुछ शहर शहर’ में ‘बोन फायर नाइट’ और ‘क्रिसमस’ को ‘दीवाली’ की तरह पटाखे चलाये जाते, रोशनी की जाती हैं। भारतीयों और पाकिस्तानियों में चाहे कितनी भी असमानताएं हों, लेकिन उनमें एक सौहार्द और भाईचारा है। दीवाली और ईद मिलजुल कर मनाते हैं। ‘हैलोवीन’ और ‘गाय फॉक्स नाइट’ बहुत कुछ भारतीय ‘लोहड़ी’ और ‘दशहरे’ जैसे त्योहार है।
पराई ज़मीन पर अपने अस्तित्व के लिए कड़ी मेहनत करना भी भारतीयों की सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न अंग है। नीना पॉल के ‘कुछ गाँव गाँव कुछ शहर शहर’ में प्रवासियों को यूगांडा से निकाल दिया जाता है। कुछ समझदार लोग अपना कारोबार- घर- जायदाद बेच बहुत पहले ही यूगांडा छोड़ ब्रिटेन मे सैटल हो बड़े बिजनेस मैन बन जाते हैंऔर ब्रिटेन के अर्थतन्त्र को एक खास ऊंचाई देते हैं। जल्दी ही यूगांडा से खाली हाथ आए प्रवासी लेस्टर के बेलग्रेव रोड पर, साड़ियाँ, सोना- चांदी, हीरे के आभूषण, गुजराती मिठाई की दुकानें और पंजाबी ढाबे खोल उसे उन्नति के शिखर तक पहुंचा देते हैं। नीना पॉल लिखती हैं-
“लेस्टर को असली पहचान भारतीयों ने ही दिलाई है। 19वीं शती के आरंभ में लेस्टर के विषय में कोई जानता भी नहीं था। मोटर वे पर कहीं लेस्टर का साइन तक नहीं था। — यूं कहिए कि लेस्टर की पहचान भारतीयों से और भारतीयों की पहचान लेस्टर से हुई।“[15]
भारतीय खाना और वेशभूषा भी इस संस्कृति का अभिन्न अंग हैं। अर्चना पेन्यूली के ‘कैराली मसाज पार्लर’[16] में नैन्सी अपने ग्राहकों को ताजे फलों और सब्जियों की ओरगनिक ड्रिंक स्मूथी पीने को देती है। मौरीन को अपनी भारत यात्रा में दहीं, आचार, चटनी के साथ खाये कई प्रकार के भरवां पराठे नहीं भूलते। जबकि प्रवास में अक्सर हर पार्टी में ककटेल ड्रिंक बनाए जाते हैं। कैथरीन की पार्टी में मार्को नैन्सी के लिए बियर फ्लेवर में लेमन जूस, ऑरेंज जूस और पुदीने के मिश्रण से हल्का ड्रिंक बना कर लाता है। वात- पित- कफ को संतुलित कर पूर्ण स्वास्थ्य की ओर ले जाने वाली केरल की पाँच हज़ार साल पुरानी मसाज भी पाठक का ध्यान आकर्षित करती है। सुषम बेदी के ‘पानी केरा बुदबुदा’ की पिया दिल्ली से लौटते हुये हर बार कश्मीरी मसाले और दूसरी चीजें सूटकेस भर- भर कर लाती है। भारतीय खाने के रेस्तरां उसे ही नहीं निशांत को भी पसंद हैं।पानी केरा बुदबुदा’ की पिया दिल्ली से लौटते हुये रितु बुटीक से साड़ी लाती है और उसे पहन इतराती फिरती है, मन निशांत से प्रशंसा की कामना करता है। अर्चना पेन्यूली के‘वेयर डू आई बिलांग‘ में शादियों में पुरुष अलमारी से थ्री पीस सूट निकाल पहनते है और स्त्रियाँ कांजीवरम साड़ियाँ। ‘ उनके ‘कैराली मसाज पार्लर’ में नैन्सी की चार शादियाँ होती है। आम तौर पर नैन्सी स्कर्ट, मिडी, जींस पहनती है। अपनी पहली शादी में नैन्सी अपनी सुनहरे बार्डर वाली सफ़ेद साड़ी पहनती है। विल्सी उसकी फ्लावर गर्ल बनती है। दूसरी शादी में सफ़ेद गाउन पहनती है और सिर पर झीना सफ़ेद घूँघट। तीसरी शादी में सफ़ेद गाउन, सिर पर फूलों की माला और मार्को और नैन्सी के सिर पर चोकोर रेशमी घूँघट/ टॉप सा लगाया जाता है। बहन रेचल के बेटे की मेहंदी में नैन्सी लहंगा चोली, शादी में साड़ी और रिसेप्शन में सलवार कमीज़ पहनती है। मुस्लिम औरतें डिज़ाइनर अबाया हिजाब पहनती हैं। ‘
संगीत भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है। नीना पॉल के कुछ गाँव गाँव कुछ शहर शहर’ में टैक्सी, रेस्टोरेन्ट, दुकानों के रेडियो पर स्थानीय प्रसारण में हिन्दी गाने चलते रहते हैं। अर्चना पेन्यूली के ‘ पॉल की तीर्थयात्रा’ में बालीवुड गीतों के रिमिक्स पर चारों बेटियाँ माँ- बाप की शादी पर डांस करती हैं। सुषम बेदी के ‘पानी केरा बुदबुदा’ की पिया को घर के आस-पास हिरणों का होना कालिदास के ‘अभिज्ञान शाकुंतलम’की याद दिलाता है। हरिकृष्ण मंदिर में मोरों का नृत्य देख उसे दिल्ली हरियाणा की याद आ जाती है। मनोविद के रूप में मानती है कि मनोरोगों का कारण अमेरिकी संस्कृति है। अगर यहाँ भारत जैसे भरे- पूरे परिवार होते, गली- मुहल्ले के लोगों और रिश्तेदारों से अपनत्व का रिश्ता होता – तो व्यक्ति अकेला नहीं होता।
हंसा दीप बंद मुट्ठी में बताती हैं कि सात समुंदर पार के इस देश केनेडा के पास भी एक अभिजात संस्कृति और नियम हैं। किसी बुजुर्ग या गर्भवती महिला के आने पर लोग झट से गाड़ी की सीट खाली कर देते हैं। बस वाले दूर से ही सवारी को देख कर बस रोक देते हैं। पता पूछने पर लोग बारीकी से समझाते है,‘शिष्टाचार के दायरे यहाँ की चौड़ी सड़कों की तरह चौड़े और विस्तृत हैं।’
‘वेयर डू आई बिलांग’ में अर्चना पेन्यूली लिखती हैं-
“सभी एशियाई देशों की तुलना में भारतवासी ऐसे हैं, जो अपनी नई दुनिया की धारा में सरलता से घुलमिल जाते हैं, साथ ही अपनी सांस्कृतिक पहचान भी बनाए रखते हैं।“[17]
सांस्कृतिक आयोजन उदास मनों को प्रसन्नता देते हैं। चरमरा रहे रिश्तों को जोड़ने की जादुई शक्ति रखते हैं। सूने जीवन में रंग भर देते हैं। तनाव से मुक्ति देते हैं। मैत्री के द्वार खोलते हैं। पराई धरती पर ऐसे आयोजन लाईफ लाइन और ऑक्सीज़न का काम करते हैं। प्रवासी के लिए संस्कृति आस्था और आवश्यकता दोनों से जुड़ी है। भले ही समय, स्थान और स्थिति के कारण थोड़ा परिवर्तन आ गया हो, लेकिन त्योहारों की मस्ती, हुड़दंग, संदेश वहाँ भी वैसे ही जीवित हैं। भारतवंशियों को एक माला में पिरोने का काम कर रहे हैं।
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