1.
सफ़र का ज़ायका तेरा बिगड़ भी सकता है
ये लोकतंत्र का घोड़ा है अड़ भी सकता है
जो पेड़ आँधियों से दोस्ती का है कायल
उसे बताओ वो इक दिन उखड़ भी सकता है
चमन का फूल जो तुझको बहुत हसीन लगे
किसी निगाह में वो फूल गड़ भी सकता है
ये संविधान की ताकत ही है कि आज यहाँ
मजूर मालिकों के संग लड़ भी सकता है
तमाम उम्र कोई साथ दे नहीं सकता
जो आज साथ है वो कल बिछड़ भी सकता है
ज़रुरी तो नहीं कछुए की हार हो निश्चित
अगर हो आलसी खरहा पिछड़ भी सकता है
ख़राब मौसमों में ख़ास एहतियात रखें
जो रिश्ता फूल-सा नाज़ुक हो झड़ भी सकता है
***************************
2.
भूख सहकर भी ये मज़े में हैं
लोग अब तक किसी नशे में हैं
डाक बाबू को दोष क्या देना
ख़ामियां अपने ही पते में हैं
न्याय पाने की चाह है ज़िंदा
आप भी किस मुग़ालते में हैं
कौन-से महकमे की बात करें
सारे सिस्टम ही कठघरे में हैं
जानलेवा है बोलना कुछ भी
ख़ौफ़ की हड्डियाँ गले में हैं
सारा पानी तो पी गया कौआ
चंद कंकड़ बचे घड़े में हैं
हमसे मंज़िल की बात मत करना
हम तो मुद्दत से रास्ते में हैं
***************************
3.
जहाँ भी चमका है पोरस की शान का सूरज
हुआ है अस्त सिकन्दर महान का सूरज
बता के ख़ुद को ही सारे जहान का सूरज
निगल रहा है कोई आसमान का सूरज
हरेक बार अँधेरे से जा लिपटता हूँ
मैं ख़ुद में ढूंढता अक्सर ही ज्ञान का सूरज
भविष्य के सभी हिमनद न यूँ पिघल जाएँ
दहक रहा है बहुत वर्तमान का सूरज
वहाँ पे नफ़रतों के बीज कैसे पनपेंगे
उगा हुआ हो जहाँ संविधान का सूरज
तू अपने सब्र के पौधे को बस हरा रखना
शिखर पे आएगा फिर से ढलान का सूरज
अँधेरी रात के भय से न तू ठहर जाना
खड़ा है राह में तेरे बिहान का सूरज
***********************
4.
जो भी हम चाहें वो हर बार कहाँ होता है
रोज़ दुनिया में चमत्कार कहाँ होता है
मन हो जो वश में वो बीमार कहाँ होता है
साधु-संतों में अहंकार कहाँ होता है
सर पे सपनों की फ़क़त खेप लिये फिरते हैं
स्वप्न हम जैसों का साकार कहाँ होता है
कौन मासूम है जिसको यहाँ मालूम नहीं
धर्म की आड़ में व्यापार कहाँ होता है
आपको मन के मुताबिक ही दिखाई देगा
सत्य का कोई भी आकार कहाँ होता है
मेरी फ़ितरत है हवाओं की तरह बहने की
मुझ-से दीवाने का घर-बार कहाँ होता है
रोज़ रचता है ये शैतानियों का व्यूह नया
दिल तो बच्चा है समझदार कहाँ होता है