(चंद्रयान 3)
लंबा रास्ता मंज़िल दूर
फिर भी मुसाफ़िर हैं मसरूर
कितनी सदियों की चाहत
कितने बरसों की मेहनत
चांद जिसे हम कहते हैं
तन्हाई में रोता था
दाग़ थे उसके चेहरे पर
इसका उसे दुख होता था
रूप भी उसका हल्का था
रंग भी उसका फीका था
चांद के आशिक़ जब पहुंचे
देने उसके दर पर दस्तक
चांद पे पहुंची अपनी डोली
चांद ने अपनी खिड़की खोली
चांद ने जब ऊपर से देखा
बाम से अपने नीचे झांका
दीवानों की टोली खड़ी थी
धरती से एक डोली चली थी
चांद पे पहुंची फिर ये डोली
चांद ने अपनी खिड़की खोली
अब तक रहता था जो गुमसुम
चांद के होठों पर है तबस्सुम
दूर हुई है अब तन्हाई
चांद पे हमने बस्ती बसाई
इस बस्ती में हम सब मिलकर
आओ बोलें प्यार की बोली
आओ बोलें प्यार की बोली
चांद पे पहुंची अपनी डोली
चांद ने अपनी खिड़की खोली।।