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ये ज़िंदगी उलझे हुए बालों की तरह है
हालात के पेचीदा
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सियासत फिर गली में आ गई है
बगावत जिंदगी में आ …
धुएँ से है भरा जो आसमान बदलेगा
यक़ीन मानिए हिन्दोस्तान बदलेगा
हमें …
त्रिपदी गजल
बैठक में टेबल के ऊपर
काग़ज़ के कुछ फूल जमाये…
जा रहा है फिर दिसम्बर आएगी फिर जनवरी
ज़िंदगी में रंग कैसे …
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ऐसे होते हैं हर इक रोज़ मुलाक़ात के ग़म
मिल के …
अब