राजनीति के रंग
राजनीति झूठी और बेईमान हो गई
उस दिन से ही
जनता ने स्वीकार कर लिया
जिस दिन से
झूठे – बेईमान लोगों को
राजनीति का एक अपरिहार्य अंग,
इस मानसिकता से निकलती नहीं
जनता जब तक
राजनीति में झूठ और बेईमानी के
दिखते रहेंगे नये-नये रंग।
राजनीति भ्रष्ट और लुटेरी हो गई
उस दिन से ही
जनता ने स्वीकार कर लिया
जिस दिन से
भ्रष्ट – लुटेरे लोगों को
राजनीति का एक अपरिहार्य अंग,
ऐसे लोगों की सफाई करती नहीं
जनता जब तक
स्वच्छ राजनीति में भ्रष्ट और लुटेरे
लोग लगाते रहेंगे जंग।
राजनीति हत्यारी और अपराधी हो गई
उस दिन से ही
जनता ने स्वीकार कर लिया
जिस दिन से
हत्यारे – अपराधी लोगों को
राजनीति का एक अपरिहार्य अंग,
ऐसे लोगों की ठुकाई करती नहीं
जनता जब तक
शांति और कानून व्यवस्था को
ऐसे लोग करते रहेंगे भंग।
राजनीति धर्म और जाति आधारित हो गई
उस दिन से ही
जनता ने स्वीकार कर लिया
जिस दिन से
धर्म-जाति के नाम पर वैमनस्य फैलाकर
वोट बटोरने वाले लोगों को
राजनीति का एक अपरिहार्य अंग,
ऐसी बीमारियों की दवाई करती नहीं
जनता जब तक
हर बार चुनावी राजनीति को
ऐसे लोग करते रहेंगे बदरंग।
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इंसान का दिमागी विलास
भूख से पीड़ित इंसान
भूल कर अपनी सारी शर्म-लिहाज
रोटी के एक टुकड़े के खातिर
त्याग दे सकता है
सामाजिक नैतिकता के सारे आयाम,
भूखे पेट ने सिखाया है उसे
कि वास्तव में रोटी ही है
उसका भगवान
और दुनिया में ज्यादातर लोगों की आस्था
है केवल भरे हुए पेट का विलास।
अस्तित्व को जूझता इंसान
भूल कर अपनी सारी धर्म-जात
अपनी जान बचाने की खातिर
त्याग दे सकता है
जन्म से ओढ़ाए गये धर्म-जाति संस्कार,
जिंदा बचे रहने की जद्दोजहद ने
सिखाया है उसे
कि वास्तव में अपना अस्तित्व बनाए रखना
ही है जीव का एकमात्र धर्म
और दुनिया की बाकी सब धर्म-जात
हैं केवल इंसान के दिमाग का वक्ती विलास।