हिंदी साहित्य में माधवराव स्प्रे लिखित कहानी ‘एक टोकरी भर मिट्टी’ को पहली कहानी का दर्जा प्राप्त है। हालांकि साहित्यकारों में मतभेद होने के चलते ‘रानी केतकी की कहानी’, ‘इंदुमती’, ‘राजा भोज का सपना’ को भी प्रथम कहानी का दर्जा मिला है। साहित्य के इतिहासकारों के मतभेदों से दूर होकर यहाँ पहले यथार्थवादी कहानीकार की चर्चा करना अधिक उचित होगा।प्रेमचंद यथार्थवादी कहानियों के जनक रहे हैं और साल 1901 से जब कहानियों को लिखने का सिलसिला शुरू हुआ तो वह आज तलक थमा नहीं है। फिर कितने ही आंदोलनों की जनक भी ये कहानियाँ रही हैं। बात करूँ वर्तमान दौर की तो अरुण कुमार, अनिल यादव, अनुज, प्रज्ञा, कुसुम भट्ट, मनोज कुमार पाण्डेय, इंदिरा दांगी, विजय गौड़, महुआ मांझी, नीलोत्पल मृणाल, मानव कौल, सत्य व्यास आदि जैसे कई कहानीकारों ने अपने-अपने ढंग से प्रेम, हत्या, राजनीति, समाज, धर्म, जाति जैसे मुद्दे उठाए हैं। इसी कड़ी में एक अन्य लेखक तेजस पूनियां की कहानियों को भी जोड़ा जा सकता है। तेजस की कहानियाँ भी हमारे उसी भारतीय समाज के तथा परिवेश के इर्द-गिर्द घूमती हैं तथा उनकी कहानियों के विषय भी समाज, धर्म, नशा, समलैंगिकता जैसे मुदों को छूते हैं।
तेजस की लिखी छोटी-छोटी कहानियां अपने में औपन्यासिक कलेवर को समेटे हुए हैं जिनमें नशाखोरी, अकेलेपन के साथ-साथ आई पश्चिमी देशों की समलैंगिकता की सभ्यता के आधुनिकीकरण ने भारत को भी इसकी चपेट में ले लिया है। यही वजह है कि उनकी कहानियों में समलैंगिकता, अकेलेपन के साथ नशा खोरी की गूँज को भी कहानियों में भरपूर मात्रा में लेकर आती हैं। संग्रह के पुरुष पात्र समलैंगिकता को लेकर बनी सामाजिक परम्परा, व परिपाटियों को समाज के सामने खुले रूप में प्रस्तुत न करके दबे पाँव उन्हें तोड़ते नजर आते हैं। लेखक, आलोचक तेजस पूनियां ने अपनी कहानियों के प्लॉट शहर के अलग-अलग क्षेत्रों से चुने हैं। जो उनके जीवन के व्यापक अनुभवों से निसृत प्रतीत होते हैं। उनकी हर कहानी पाठक को जीवन के एक अलग पहलू और रंग-ढंग से भी परिचित कराती है।
‘रोशनाई’ कहानी संग्रह तेजस पूनियां का पहला कहानी संग्रह है और इसमें कुल दस कहानियाँ संकलित की गई हैं। ये सभी कहानियाँ अपने-अपने क्षेत्र के तथाकथित आधुनिक हो चले पुरुष-महिला किरदारों को तो प्रस्तुत करती ही हैं साथ ही उनके पढ़े-लिखे होने के बावजूद अकेलेपन से जूझते हुए वे नशा-खोरी, घुटन आदि के साथ अपने-अपने जीवन संघर्षों से भी जूझते हुए दिखाई पड़ते हैं। तो वहीं कुछ पुरुष पात्र शादी-शुदा होकर भी समलैंगिकता के साथ जीवन-यापन करते हुए नजर आते हैं। इन विषयों पर लिखी गई ये कहानियाँ कुछ इस तरह बुनी गई हैं कि उन्हें पढ़ते हुए वर्तमान दौर का शहरी जीवन, उनका जीवन संघर्ष व समलैंगिकता जैसे मुद्दे पाठक के मन-मस्तिष्क पर सजीव हो उठते हैं।
संग्रह की पहली कहानी ‘शहर जो आदमी खाता है’ ग्रामीण क्षेत्र से शहरी क्षेत्र में भागकर आये ऐसे बालक की कहानी कहती है जो खुद को खोजता हुआ जीवन से भाग रहा है और लौटकर उसी की गोद में सिर रखकर सो भी जाता है।इस कहानी के बारे में लेखिका शिवानी कोहली लिखती हैं- “शहर जो आदमी खाता है, जो खुद को खोजता हुआ जीवन से भागता भी है और लौट कर उसी की गोद में सिर रखकर सो भी जाता है। एक ऐसे शहर की कहानी भी है, जिसका अधनंगा सच स्वीकार करने को कोई भी तैयार नहीं है। माहिर है यह शहर हर आदमी को अपनी तरह बनाने में और अपनी तरह उसे बनाकर खा जाने में।”चूँकि यह कहानी ग्रामीण परिवेश से निकल कर युद्ध के रास्तों से शहर तक आने और यहाँ खुद को स्थापित करने की जद्दोजहद को भी दिखाती है।कहानी का पात्र अंकित जिसे ग्रामीण होने के चलते कोई भी स्वीकार करने को तैयार नहीं है।लिहाजा वह शहर आकर कई परेशानियों का सामना करता है।बावजूद इसके वह उस शहर को फिर भी छोड़कर नहीं जा पाता है।फिर चाहे उसे पार्क में सोना पड़े या रोड़ और फुटपाथ पर। किन्तु जब धीरे-धीरे वह अपने संघर्षों के सहारे खड़ा होता है तब तक उसकी आत्मा मर चुकी होती है और वह भी उसी शहर के जैसा होकर रह जाता है।
इसी तरह एक ‘अदद कमरे की तलाश’ कहानी समलैंगिक विमर्श को बयाँ करते हुए वर्तमान युवा पीढ़ी के चारित्रिक पतन को भी दर्शाती है। यह कहानी देह की भूख के लिए एक कमरे की तलाश को सर्वोपरि बताती है। जो समलैंगिकता से भी ऊपर उठकर युवा पीढ़ी की जरूरत होती है। कहानी बताती है कि देह कोई भी चलेगी पर तलाश एक अदद कमरे की है तेजस इस कहानी में लिखते हैं-“शहर में सैक्स रैकेट का भंडाफोड़, होटल में अय्याशी करता नौजवान और युवती के साथ रंगे-हाथों पकड़े गये युवक। अखबारों की यह सुर्खियाँ दबे पाँव लड़के-लड़कियों के भीतर एक भय का माहौल बनाती जा रही थी।” इसलिए हर कोई रामबीर को अपना दोस्त बनाना चाह रहा था क्योंकि उसके पास सुरक्षित कमरा हैऔर इस कमरे की आड़ में रामबीर भी नहीं बच पाया। वह भी समलैंगिक देह व्यापार में संलिप्त हो जाता है और नशा-खोरी भी उसके जीवन में उतर आती है। “वे लड़के जो खुल्लम-खुल्ला गाड़ियों में शराब पीते, शबाब लूटते, सिगरेट और हुक्के के छल्ले बनाते फिरते वह अब उन बंद घर की चार-दीवारियों में होने लगा था। ये दीवारें होटलों की नहीं अपने यार-दोस्तों के कमरे या घर होते जहाँ उन्हें किसी तरह का रोक-टोक नहीं होता था औरन ही उन्हें कोई किसी तरह का भय सताता था।”
तेजस पूनियां की कहानियों के पात्र तथा उनका कथा-विन्यास आधुनिक से उत्तर-आधुनिकता का भी सफ़र तय करता है। दिल्ली विश्वविद्यालय से पढ़ने के बाद वर्तमान में मुंबई विश्वविद्यालय से शोध कर रहे तेजस युवा कहानीकार के साथ ही फ़िल्म समीक्षक एवं लेखक के रूप में भी अपना मुकाम बना चुके हैं।अपनी पहली पुस्तक ‘रोशनाई’ कहानी संग्रह के बाद अब तक वे सिनेमा पर भी तीन किताबें लिख चुके हैं।एक आलोचक के रूप में उनकी कहानियों में आधुनिकता का आलम दिखाई पड़ना उन्हें कहानीकार के रूप में भी स्थापित करता है। इसका पता उनकी कहानियों से पता चलता ही है इसकी बानगी‘चीख’ में भी दिखाई पड़ती है। यह कहानी अनमेल विवाह तथा सौतेली माँ के व्यवहार के बारे में बात करती है।एक सच यह भी है कि हमारे देश में आज भी गरीब परिवारों की लड़कियों को गरीबी के चलते अनमेल विवाह का शिकार होना पड़ता है।सौतेली माँ का गेती से व्यवहार कुछ ठीक नहीं है, वह घर का पूरा काम उससे करवाती है और जब उसकी शादी की बात होती है तब उसके का यह कहना कि- “लड़का? तुम उस रंडवे और 15 साल बड़े आदमी को लड़का कहती हो? गेती के अब्बा बोले तो उसकी माँ बिफ़र पड़ी- “हाँ तो तुम्हारे बारे में भी मेरे अब्बा ने यही कहा था। लड़का अच्छा है पर तुम तो फिर भी रूपये पैसे वाले नहीं थे।”
वहीं ‘मसाज पार्लर’ कहानी वर्तमान शहरी जीवन में चल रहे मसाज पार्लर की कलई खोलती है। कहानी के पात्र वरुण व पूजा के माध्यम से यह कहानी अवैध धंधों व शारीरिक संबंधों को सामने लाती है।एक्स्ट्रा सर्विस के नाम पर बड़े शहरों का यह रोग अब छोटे शहरों में तेजी से फैलने लगा है और चंद रुपयों के बदले लड़कियां अपनी देह तक को किसी के भी सामने पेश करती नजर आती हैं। यह कहानी हमारे भारतीय समाज के चारित्रिक पतन के अतिरिक्त आधुनिक से उत्तर आधुनिक हो रहे समाज का भी चित्रण करती है। एक अन्य कहानी ‘टुकड़ा-टुकड़ा मोहब्बत’ शहरी जीवन में चल रही युवाओं पढ़ाई के बहाने से अवैध धंधों व माता-पिता का अपने बच्चों के प्रति अनोखे प्रेम को दर्शाती है। दीप्ती और मेघा के बहाने से तथाकथित प्रगतिशील विचारोंवाले परिवारों का सच बनकर उभरती है।जब उनकी माँ बोलती है- “बेटा हमें तुम दोनों पर मान है। तुम हमारा गुरूर हो और देखना यह गुरुर कहीं टूटने न पाए।” परन्तु दोनों बहने पढ़ाई करते हुए शहर की चका-चौंध में इस कदर घुलती है कि अवैध संबंधों में किस तरह घुस जाती है वह वर्तमान युवाओं का दस्तावेज बन जाता है। दीप्ती का अकरम से प्रेम करना और मेघा का सुशील से प्रेम होने व उसके बाद उनके इस्तेमाल को बतौर लेखक तेजस ने बखूबी चित्रण किया है। उनकी यह कहानी ‘मोसे छल किये जाए सैंया बे-ईमान…’ , ‘आपके पहलू में आकर रो दिए….’ ‘चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों’ जैसे गानों के बहाने से लेखक के सिनेमा प्रेम को भी जाहिर करता है। वहीं सुशील का प्रेम को देह से परिभाषित करना बताता है कि वर्तमान युवा पीढ़ी अपने लक्ष्यों से भटककर दूसरे ही रास्तों को अपना लेते हैं। प्रेम को जरूरत बताकर शारीरिक संबंधों का निर्माण बताता है कि आज की युवा पीढ़ी प्रेम के असली मायनों से भी कोसों दूर हो चली है।
चारित्रिक हनन को लेखक सुशील के माध्यम से कुछ यूँ परिभाषित करते हैं- “कैसी बातें कर रही हो? पागल हो? तुम्हें कैसे छोड़ सकता हूँ? तुमसे मोहब्बत जो करता हूँ और मोहब्बत से बढ़कर तुम मेरी जरूरत हो और भला कोई अपनी जरूरत पूरी किये बिना रह सकता है?” परन्तु जब मेघा प्रेग्नेंट हो जाती है तो सुशील उसका अबोर्शन करवा देता है और मेघा से दूरियां बना लेता है।फिर जब मेघा सुशील से बोलती है कि-“तुम्हारे उन सब वादों और कसमों का क्या सुशील? जो तुमने मुझसे किये थे। सुशील ने कहा- देखो मेघा मैं किसी ऐसी लड़की से शादी नहीं कर सकता जो शादी से पहले ही किसी के साथ भी सो चुकी हो…. समझी तुम! सुशील की आव़ाज में गुस्सा साफ़ झलक रहा था।” उसके बाद मेघा को पछतावा होता है और उसको लगता है कि- क्या मैं सच में उसकी जरूरत ही थी? जैसा कि उस रात उसने बिस्तर पर कहा था। मेघा को लगता है कि अब कोई भी पुरुष उससे जितने भी वादे कर ले मगर देर सबेर समाज उसे उसी नजरिये से देखेगा। पीढ़ियों से स्त्रियों की जो छवि पुरुष समाज में भोग की बन चुकी है उसे लेकर भी मेघा चिंतन करती है- कि क्या औरत इस हद तक वस्तु हो जाती है। यह कहानी हमारे शहरी जीवन में शिक्षा व प्रेम के रूप में हो रहे छात्र-छात्रों के अनैतिक संबंधों की विसंगतियों का पर्दाफाश करती है।
‘रोशनाई’ कहानी जो इस संग्रह की शीर्षक कहानी भी है, में धनाढ्य घर की लड़की कल्याणी की कहानी कहती है। इसमें भी अनमेल विवाह की समस्या नजर आती है।कल्याणी का विवाह उसके मुंशी पिता अपने धनी दोस्त के अधेड़ उम्र हो चले लड़के के साथ करवाना चाहतेहैं।यह कहानी अधिकारों और फर्जों की बात करती है जिसका परिचय कल्याणी के इस कथन से चलता है- “अधिकार से ज्यादा फ़र्ज निभाने पर मैं भी जोर देती थी लेकिन ये कैसे फ़र्ज हैं…शिवानी? जहाँ खुद को मिटा दिया जाए? इसके बाद कल्याणी घर से भाग जाती है और एक बड़ी सी कम्पनी में नौकरी पा जाती है। एक बारगी तो उसे पछतावा भी होता है किन्तु अगले ही पल वह खुद को बाऊजी का बेटा बनने के सपने और अपने नाम को सार्थक कर लेने के नाम पर दिलासा देने लगती है।और अंत में जब कल्याणी के पिता अन्जामिंद (अंतिम अंजाम) की ओर कदम बढ़ा रहे थे तब कल्याणी को अपने किये पर पछतावा भी होता है।यह कहानी परिवार, समाज की विसंगतियों के कारण वर्तमान में पता नहीं कितनी कल्याणी है, जिनको आज भी रेप और अनमेल विवाह जैसी घटनाओं से गुजरना पड़ रहा है, कि याद दिलाती है। जिस तरह दिल्ली निर्भया केस, कोलकाता में डॉक्टर अभया रेप कांड और उसे फिर मौत के घाट उतारना।जैसी ख़बरें भी इस कहानी से ताजा हो उठती हैं।कल्याणी द्वारा इस कहानी में अनमेल विवाह का विरोध तो है ही उसके साथ ही हमेशा अपने अधिकारों के लिए लड़ने की बातें भी नजर आती हैं।
‘अधूरा प्रण’ और ‘भूख’ कहानी समलैंगिक लोगों के भीतर तक झांकती है। इन दोनों कहानियों के पात्रटोनी, दीप, किशन और सैफी जैसे लोग उम्र के फ़ासले को भूल नशा खोरी के साथ-साथ शारीरिक संबंधों में भी लिपटे नजर आते हैं।भूख कहानी में लेखक का कहना कि- “शहर में लड़कों की दिलचस्पी लड़कियों में ही नहीं बल्कि लड़कों के प्रति भी बढ़ने लगी थी। अच्छे-अच्छे घरों के हीरो जैसे दिखने वाले लड़केलड़कों से सम्बन्ध बनाते और लड़कियां भी आवारा गलियों में घूमते देखी जाती।” हमारे आस-पास के परिवेश को जीवंत कर देते हैं और ये कहानियाँ शहरी जीवन में पनप रहे समलैंगिकता के सच का भी पर्दाफ़ाश करती हैं। वहीं ‘रूबी का फोन’ कहानी वर्तमान में युवाओं के लिए फ़ोन ही सबकुछ हो जाने की बात करती है। यह सच है कि वर्तमान में युवाओं के लिए फ़ोन एक आदत बन गई है या यूँ कहें कि आज के समय में इंसान को इंसान की जरूरत कम और फ़ोन की जरूरत अधिक महसूस होती है। रूबी का फ़ोन एकमात्र फ़ोन नहीं बल्कि उसके लिए सारी दुनिया ही है।
संग्रह की दस कहानियों में नशा-खोरी, प्रेम, पारस्परिक संबंधों का जो आख्यान है वह तेजस के लिखे इस संग्रह की आखरी कहानी तक बरकराररहाहै- ‘नशा’ कहानी जैसा कि इसके नाम से ही प्रतीत होता है कि वर्तमान में युवाओं में पनप रही नशाखोरी किस तरह बढ़ रही है। इस कहानी के मुख्य पात्र ‘साहिल’ के बहाने से लेखक ने नशे तथा उससे होने वाले दुष्प्रभावों का चित्रण किया है। जो लोग इस लत से खुद को सुरक्षित बचा लाते हैं तो उनका जीवन किस तरह बदलता है, को भी यह कहानी दिखाती है।
बतौर लेखक तेजस पूनियां की सभी कहानियाँ तथा उनके पात्र यथार्थवादी तो हैं ही साथ ही वे यथा-स्थिति वाद से भी टकराते हैं तो वहीं समझौता भी करते हैं। उनकी कहानियों के पात्र ख़ासकर पुरुष पात्र हमें ऐसी दुनिया में ले जाते हैं जो हमारे आस-पास ही है और जो बदलाव के लिए बेताब है किन्तु इन दोनों पर ही समाज की नजर नहीं पड़ी है। तो वहीं दूसरी ओर इन कहानियों के महिला पात्र एक ऐसी दुनिया भी दिखा जाती है जिसे देखकर पाठक को लगता है कि ऐसी सामाजिक पारिवारिक बुराईयाँ अब और काबिले-बर्दाश्त नहीं, इनका खात्मा कर एक ऐसी दुनिया बनाई जाए जो बेहतर जीवन की ओर जाती हो।