रचनाकार समाज का मार्गदर्शक होता है। वह समय, समाज और परिस्थिति के अनुसार रचनाएँ करता है। समाज की सोई हुई चेतना को जगाने का कार्य साहित्यकार ही करता है। विश्व में जितनी भी क्रांतियाँ हुई हैं उनमें वहाँ के रचनाकारों का महनीय अवदान है। डॉ.विपिन कुमार ने भी अपने सोये हुए समाज को अपनी लेखनी के माध्यम से जगाने का प्रयास किया है। कवि ने जो भोगा देखा उसे ही अपनी लेखनी द्वारा अपने पाठकों के बीच पहुँचाने का प्रयास किया किया है। डॉ.विपिन कुमार एक युवाकवि, कहानीकार तथा आलोचक हैं। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। वे देश के प्रतिष्ठित काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी में हिन्दी के सहायकाचार्य हैं। हाल ही में उनका काव्य संग्रह “सर्द हवाओं में” भारती प्रकाशन, वाराणसी से प्रकाशित (2013 ई.) हुआ है।
कवि कहता है कि आज सवर्ण समाज अपने निजी स्वार्थ के लिए दलित के साथ उठ बैठ रहे हैं तो उसके पीछे भी कोई न कोई चाल है। चाहे वह वोट की राजनीति हो या अन्य कोई।
आज बना रहा है सवर्ण
दलितों में भी अपना
एक नया समाज
देते हुए उसके हिस्से को
एहसान के साथ। पृष्ठ 100
कवि कहता है कि कांशीराम जी से दलित समाज को बहुत आशाएं थीं। वे कांशीराम में डॉ.भीमराव अम्बेडकर ढूंढते थे।
अम्बेडकर की राह
चले जब कांशीराम
जगी कुछ आस
दलित कल्याण की। पृष्ठ 99
दलित समाज जो सभी के दुःख सुख में सदैव खड़ा रहता था उसमें भी समाज की देखा-देखी में दुनियादारी सीख लिया। वह भी समाज में जो हो रहा है उसका अनुकरण करने लगा है |
दलित हितैषी था
जो कभी पहले
चल पड़ा है वह भी
आज उन्हीं की राह
सीख लिया है उसने
काटना गला भाई का
जाके उनके पास। पृष्ठ 98
कवि कहता है कि आखिर दलित आंदोलन लड़खड़ा क्यों रहा है। वहीं इसके पीछे कोई रहस्य तो नहीं है। कहीं लोग बरगला तो नहीं लिए गए |
लड़खड़ा रहा है क्यों
आज दलित आंदोलन?
कहीं फूल की जगह
कांटे तो नहीं खिल रहे? पृष्ठ 97
‘फालोवर’ शीर्षक कविता में डॉ.विपिन कहते हैं कि सबको अपनी जय जयकार करवाना अच्छा लगता है। चाहे वह किसी भी जाति अथवा धर्म का हो। अपने पीछे लम्बी कतारें सबको अच्छी लगती हैं। फिर दलित समाज इससे क्यों वंचित रहे।
चल पड़ा है
आभिजात्य रूप
दलितों में भी,
दोषी वह नहीं
उसका संस्कार है । पृष्ठ 96
‘जाति का दंश’ कविता में डॉ.विपिन कुमार लिखते हैं कि जिसने जातिवाद को झेला है वही उसकी वास्तविक पीड़ा को समझ सकता है।
चोट खायी जिसने
पता उसी को होता है।
जातिवाद बुरा है
कोई भी कह देता है,
दंश जिसने झेला है
बता वही सकता है। पृष्ठ 93
डॉ.विपिन कुमार लिखते हैं कि बहुत सह लिया है तुम्हारा शोषण अब हम भी नहीं सहेंगे अन्याय। यह जाति तुमने बनाई है। तुम्हारी यह जाति तुम्हें मुबारक हो।
कर्म का पैमाना नहीं है वर्ण,
शोषण का पैमाना है वर्ण,
शूद्र वर्ण है शोषित वर्ण
तो शेष वर्ण हैं शोषक वर्ण। पृष्ठ 67
डॉ.विपिन कुमार लिखते हैं कि तुम्हारे सारे काम शूद्रों ने किये हैं फिर भी तुमने उनको सदैव हाशिए पर रखा। जब तुमको अपनी हवस मिटानी होती तब तुम जाति नहीं पूछते हो? तब तुम्हें एक कमजोर और लाचार नारी शरीर चाहिए जो तुम्हारी शारीरिक भूख मिटाए और समाज के सामने अपना मुंह न खोले। जिसे जब चाहे तुम हमेशा के लिए अपने रास्ते से हटा सको।
फसल उगाई शूद्र ने
खाया उसे ऊंच ने,
महल बनाया शूद्र ने
छाया पायी ऊंच ने। पृष्ठ 67
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उसकी बेटी पर अत्याचार गजब ढाया
तुम्हारा छुआछूत का मंत्र
यहां काम न आया।
नोचता रहा
उसके बदन को तब तक,
जब तक दूसरी का
बदन रास न आया। पृष्ठ 69
दूषित मानसिकता वाले शिक्षकों के विषय में डॉ. विपिन कुमार लिखते हैं कि वह कक्षा में जाति और वर्ण के नाम परे भेदभाव करते हैं।
शिक्षा देता है शिक्षक
अपने छात्रों को
नफ़रत, घृणा करने की, पृष्ठ 62
‘दलित शोषक ‘ कविता में समाज से प्रश्न करता है कि यदि धार्मिक स्थलों पर लोग आज भी भूखे पेट सो रहे हैं तो इन धार्मिक स्थलों का क्या लाभ।
हर मंदिर के गेट पे
आधा पेट सो रही
दलितों की आधी जनता। पृष्ठ 58-59
‘हमें जाति चाहिए ” कविता में डॉ.विपिन कुमार लिखते हैं कि जब ईश्वर नरऔर नारी ही बनाए (थर्ड जेंडर के अलावा) तो फिर बीच में यह जाति कहाँ से पैदा हो गयी।
नहीं चाहिए ब्राह्मण -क्षत्रिय
नहीं चाहिए वैश्य -शूद्र
हमें वर्ण चाहिए
पशु -पक्षी व मानव वर्ण
हमें वर्ण चाहिए।
नहीं चाहिए पाण्डेय -शुक्ला
नहीं चाहिए सिंह -परमार
नहीं चाहिए यादव -वर्मा
नहीं चाहिए पासी-चमार
हमें जाति चाहिए
नर- मादा व नर -नारी
हमें जाति चाहिए।
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तरीके
शारीरिक गुलामी के
सब फेल हो गए हैं,
बनी रहे
मानसिक गुलामी
ऐसी ही कहानियां
सुना रहे। पृष्ठ 95
डॉ. विपिन कुमार की भाषा बहुत ही सरल तथा सहज है। इस संग्रह की सारी कविताएँ मुक्त छंद में लिखी गई हैं। इसमें कहीं भी बनावटीपन नहीं है। यह कविता कम कवि भोगा हुआ यथार्थ अधिक है। साहित्य जगत को डॉ. विपिन कुमार से बहुत आशाएँ हैं। वे इसी प्रकार नए-नए विषयों पर अपनी लेखनी चलाते रहें।