…….Dette Burde Skrives I Nutid (देत्ते बुरडे स्क्रिवस इ न्यूटिड ) यानी “…..आज की बात करें” उपन्यास डेनिश लेखिका हेल्ले हेल्ले द्वारा लिखित है। यह 2011 में प्रकाशित हुआ और 2012 में ‘द गोल्डेन लॉरेल’ पुरस्कृत। 2021 में अर्चना पेन्यूली ने इसे अनूदित किया और प्रभात प्रकाशन ने प्रकाशित किया।
कहानी आज से लगभग चार साढ़े चार दशक पहले की है। जब न स्मार्ट फोन होते थे, न मोबाइल, न आई पैड। उपन्यास के कुल 42 परिच्छेद हैं। यह रचना नायिका प्रधान है। कथा में लगभग बीस वर्षीय डॉर्टे कोपेन्हेगेन विश्वविद्यालय की छात्रा है। वह अपने माता- पिता से अलग ग्लूम्सो रेलवे स्टेशन के पास किराये के बंगले में रहती है और वहाँ से कोपेन्हेगेन तक 80 किमी की लगभग नित्य यात्रा करती है। उसका अधिकतर समय सड़कों पर घूमने या पुरुष मित्रों के सहवास और मस्ती में बीत रहा है। उसे हम दिशाहीन भी कह सकते हैं और दिशा की तलाश में भटक रही किशोरी भी मान सकते हैं। उसकी बुआ का नाम भी डॉर्टे है।
उपन्यासकार हेल्ले हेल्ले ने पात्र संरचना में उस आम मध्यवर्गीय व्यक्ति को चुना है, जिसे व्यस्क होते ही जिजीविषा के लिए जीवन संग्राम में कूदना पड़ता है। नायिका डॉर्टे विद्यार्थी जीवन में, 18 की उम्र में वेस्ट सीलैंड के एक कस्बे में नैनी की नौकरी करती है और सप्ताह में तीन दिन उनके घर की सफाई भी करती है। बाद में पेअर की माँ रूथ उसे अपने स्कूल के मनोरन्जन क्लब में एक छोटे लड़के को सप्ताह में दो दिन दोपहर दो से तीन बजे तक पढ़ाने की नौकरी दिलवा देती है। वह छात्रा है और अध्यापिका बनना चाहती है। उसे पब्लिक लांड्री में कपडों की धुलाई करनी पड़ती है या खुद धोने होते हैं। डॉर्टे के बंगले की खिड़कियों पर पर्दे तक नहीं हैं। जंग लगी गार्डेन चेयर से वह कई काम लेती है। उसके बॉय फ़्रेंड्स पेअर और लार्स भी छात्र हैं। पेअर अपने चाचा के साथ मिनी लोडर पर ड्राइविंग करता है और लार्स छुट्टियों में नर्सरी में काम करता है। लार्स्स का छोटा भाई एक बेकरी में प्रशिक्षु है। स्टेशन पर मिले लड़के लास्से और लड़की के पास आंशिक रोजगार है। ग्रीष्मकाल में लड़का टीवोली के स्नैक बार में सौसेज बेचता है और लड़की डक बूथ में काम करती है। नुड स्टेशन पर टिकिट बेचता है, संगीत सुनता है और ‘पिंक फ़्लोयड’ के बारे में पुस्तक पढ़ता है। डॉर्टे के माता- पिता की दुकान है। बुआ डॉर्टे की पिछले बीस सालों से रिंगस्टेड में सैंडविच की दुकान है। पेयर फ़िनलैंड के माता- पिता स्कूल में डेनिश भाषा के अध्यापक हैं। उसकी माँ रूथ एक पत्रिका ‘एल्लिंगन’ का सम्पादन भी करती है। बुआ का पूर्वपति कसाई की दुकान खोलना चाहता है। बुआ भी तीन महीने कसाई की दुकान पर काम कर चुकी है। उसके पास लकड़ी से जलने वाला चूल्हा है, जिसमें आग जलाने के लिए वह अक्सर लकड़ी नहीं, दूध के खाली डिब्बों और अखबारों का इस्तेमाल करती है। पेअर के माता पिता भी लकड़ी के चूल्हे का इस्तेमाल करते हैं। बुआ की दुकान पर रंग- रोगन का काम डॉर्टे के माता- पिता ही करते हैं। हैन्ने के कमरे का फर्श उसके भाई ने बनाया है। उसके पिता भी स्कूल टीचर हैं। डॉर्टे साइकल चलाती है। लार्स के पास रेसिंग साइकल है। पेअर और डॉर्टे के माता-पिता के पास पुरानी कारें हैं। बुआ के पास पीली प्लेट वाली ओपल कार है। जबकि पहले वह भी साइकिल ही चलाती थी। पात्रो को पैदल चलना काफी पसंद है।
उपन्यास उस संस्कृति को स्वर दे रहा है जहां युवा स्वच्छ्न्द जीवन जीते हैं। ग्लूम्सो के बाज़ारों- गलियों में घूमते- घूमते नायिका की भेंट पेअर फ़िनलैंड से होती है और वह वहीं उसी के घर रहने लगती है। गर्भ गिराने के दौरान पेअर डॉर्टे का पूरा ख्याल रखता है और चांदी का क्लिप भी भेंट करता है। पेअर फ़िनलैंड के घर में ही वह उसके ममेरे भाई लार्स से मिलती है और फिर उसके साथ क्लब हाउस में रहने लगती है। लार्स के कैबिन ट्रिप पर जाने पर वह ड्राविंग अनुदेशक से नज़दीकियाँ बना लेती है। प्लेटफॉर्म वाले लड़के नुड से भी उसकी गर्लफ्रेंड की अनुपस्थिति में शारीरिक संबंध बनाती है। उपन्यास के अंत में नायिका ग्लूम्सो छोडकर कवि हैसे के लिए कोपनहेगन आती है। हैसे उसे सौंडरमार्कन एक ट्रिप के लिए ले जाना चाहता है।
बुआ डॉर्टे के भी अनेक पुरुष मित्रों से संबंध रहे हैं। बांझ होने के कारण बुआ को तलाक झेलना पड़ता है। बुआ प्रेमी वायन के साथ स्केलव्यू टाउन में रहने लगती है। अपने प्रेमी के साथ हलकीदीकी जाने वाली थी कि उनका संबंध विच्छेद हो जाता है। वे एक कोच ट्रिप में एक लंबे और सुर्ख व्यक्ति के साथ ल्यूबैक, जर्मनी घूमने जाती है, लेकिन बॉयफ्रेंड का व्यवहार उन्हें इतना आहत करता है कि सारा जोश, उत्साह, उन्माद सूख जाता है, भूख प्यास मर जाती है। नींद उड़ जाती है। दिमाग शून्यताबोध से भर जाता है। वे अपने घर लौट कर ही सामान्य अनुभव करती हैं। हार्ड़ी बुआ का अगला बॉय फ्रेंड है। पत्रकार हेनिंग का भी जिक्र आता है। भतीजी डॉर्टे के मन में भी प्रश्न उठते हैं।
“एक बार मैंने डॉर्टे से पूछा कि क्या वे हर बार प्यार में डूबती हैं, जब भी उन्हें कोई नया आदमी मिलता है? उन्होने अपने कंधे उचकाए और बोली,”हाँ, अधिकतर। ”
“तो फिर गलत क्या हो जाता है?
“मुझे नहीं लगता कि वास्तव में कुछ भी गलत होता है। कभी- कभी मैं अचानक ही अपने दम पर अकेले जीना चाहती हूँ। “
“क्या आप उससे बोर हो जाती हैं?”
“आह— बहुत मुश्किल है समझाना। वैसे तो हमेशा मैं उन्हें नहीं दुतकारती। कई बार वे मुझे दुत्कार देते हैं।1
आठ साल तक लगातार साथ रहने वाले युगल पर उन्हें दया भी आती है, ईर्ष्या भी होती है और आश्चर्य भी होता है। “कैसे ये इतने वर्षों से एक साथ रह सकते हैं और मैं क्यों नहीं किसी के साथ रह सकती हूँ?2
यहाँ उस मानसिकता/ संस्कृति का चित्रण है, जहां माना जाता है-
“वह अभी युवा है—उसके लिए पूरी दुनिया खुली है।3.
इन अस्थायी मादक सम्बन्धों पर अनुवादिका अर्चना पेन्यूली ‘दो शब्द’ में लिखती हैं-
“यह उपन्यास पूरे डेनिश समाज को बयाँ नहीं करता। डेनमार्क के सभी युवा उपन्यास की नायिका डॉर्टे की तरह निष्क्रिय नहीं होते और न ही समय- असमय बिना प्रतिबद्धता के यौन साथी का चयन करते हैं। —- सेक्स को लेकर भले ही दृष्टिकोण खुला है, लेकिन रिश्तों में प्रतिबद्धता, नैतिकता और शीलता बरकरार रहती है।4.
पेअर फ़िनलैंड के माता- पिता, लार्स के माता-पिता और डॉर्टे के माता पिता सामान्य पारिवारिक जीवन जी रहे हैं। डॉर्टे की बुआ हर मंगलवार और गुरुवार अक्सर रात के खाने पर भाई- भाभी के यहाँ आती है।
रक्त सम्बन्धों की बात करें तो इकलौती संतान होने के बावजूद माता पिता से नायिका के संबंध उतने प्रगाढ़ नहीं हैं। बेटी पिता से टार्टन सूटकेस उधार लेती है। भले ही वह कालांतर में उसी की निधि बन जाता है। निश्चय ही वहाँ वर्जिनिटी की अवधारणा नहीं होती। डॉर्टे पेअर के साथ उसके घर रहने चली आती है तो इस अवसर पर माता- पिता उसे लिव- इन- रेलेशनशिप शुरू करने के उपलक्ष में एक कांसे का मग उपहार में देते हैं। लेकिन वह कहाँ गई है, उस घर को कभी देख नहीं पाते। मम्मी पापा उसे छोड़ने भी आते हैं तो वह कुछ दूर ही उतर जाती है। एक बार वह अपने बंगले के बाहर माँ की कार देखती है तो पूरे 15 मिंट इधर- उधर घूमती रहती, बाद में देखती है कि माँ उसके लिए एक पत्र और एक कॉफी का पैकेट छोड़ गई है।
जबकि डॉर्टे के बुआ के साथ स्नेहिल और मैत्री संबंध हैं । बुआ उसकी चिंता करती है। अकसर उसे कुछ न कुछ देती रहती है। कुछ क्रोनर उसकी मुट्ठी में दबा देना, खाने- पीने की चीजें देना, और भतीजी की भी इच्छा रहती है कि वह बुआ को उसकी पसंद के उपहार दे। वह स्कूल की बारहवीं क्लास में थी, जब पहली बार उसने घर छोड़ा था और बुआ के पास रहने आ गई थी क्योंकि यहाँ से स्कूल पहुंचने के लिए उसे कड़ाके की सर्दी में भी पैदल, साइकल, बस, ट्रेन की दुष्कर यात्रा नहीं करनी पड़ती थी। वे वर्ग पहेली खेलती, सिर पर कंबल ओढ़ कर ज़ोर- ज़ोर से हँसती हैं। बुआ के दरवाजे पर भी ‘डॉर्टे हेनसन 2’ की पर्ची लगी है, यानी यहाँ दो डॉर्टे रहती हैं। लार्स का क्लब हाउस छोड़ने के बाद वह आठ महीने फिर से बुआ के पास रहती है।
डॉर्टे भावुक मन की संवेदनशील बौद्धिक नायिका है। पुस्तकालय और घर में पत्रिकाएँ और पुस्तकें पढ़ती रहती है, हालांकि क्लास लगाने में उसे कोई रुचि नहीं । वह कवयित्री है। बुआ के जन्मदिन पर उसके लिखे गीत को पेअर के माता पिता भी मंत्रमुग्ध होकर सुनते हैं। बुआ उसके लिखे गीत ‘द डाकलिंग’ को बार- बार पढ़ती है, गुनगुनाती रहती है। कहती है- इसे प्रकाशित होना चाहिए। पेअर के पिता हैंस जैकॉब तो उसे रेकॉर्ड भी करते हैं। डॉर्टे पार्टी गीत लिखती है। गीत भेजने से पहले पेअर को गाकर सुनाती है। एक गीत 150 क्रोनर में बेचती है हर सप्ताह में दो गीत लिखती है। हैन्ने के साथ काव्य गोष्ठी में जाती है।
वह समाज जहां वयस्क होते ही बच्चों को अलग घरोंदे बनाने की परंपरा है- अकेलापन, शून्यताबोध जीवन की सामान्य समस्या है। जीवन की चुनौतियाँ संघर्ष से दो-चार करती हैं, लेकिन पात्र अपने लिए जीवट जुटा रहे हैं। नायिका को अनिंद्रा रोग सताता है और सो जाय तो रात को भयंकर सपने देखती है, पसीने से तर-बतर हो जाती है, किसी कुत्ते- बिल्ली को पालने का सोचती है। बिना पर्दों की खिड़कियाँ उसे बार-बार असहज करती हैं, लेकिन आशावाद उसे फिर से खड़ा कर देता है। पियर छोड़ कर जा चुकी प्रेमिका का फोन आने पर ही परेशान हो जाता है, रोने लगता है, पर माँ उसे सम्भाल लेती है। बांझपन का सुन बुआ एकदम टूट जाती है, पर कोई दुख इतना बड़ा नहीं होता कि सारे रास्ते बंद हो जाएँ। वह बढ़िया कपड़े खरीदती है, अपना डिप्लोमा कोर्स पूरा करती है और फिर अपना व्यवसाय जमा लेती है।
सम्बन्धों में समाई आत्मीयता उपहारों के सौजन्य में भी चित्रित है। रूथ डॉर्टे को गरम जुराबें और ऊनी जम्पर और कहानियों की पुस्तक भेंट करती है और डॉर्टे पहला वेतन मिलते ही रूथ को कैक्टस का पौधा भेंट करती है। डॉर्टे हैन्ने को केसर के फूलों का गुच्छा भेंट करती है।
उपन्यास का व्यक्ति काफी सहृदय और सोशल है। लड़की स्टेशन पर मिले युगल की खूब मेहमान नवाजी करती है। अपने घर में आश्रय देती है, रात भर रुकने देती है, खाने- पीने की चीजें देती है। टिकिट घर वाले लड़के को सर्दी से ठिठुरते देख नया ट्वीड का कोट ओढा देती है। रूथ और हैंस जेकोब दो सैलानियों को अपनी वॉल्वो कार में लिफ्ट देते हैं। रूथ सोचती है कि अगर वह किसी की मदद करती है, तो वह भी आगे किसी की मदद करेगा। थकी हारी डॉर्टे को अनजान मोपेड़ वाली स्त्री गन्तव्य तक पहुंचा देती है।
घुमक्कड़ वृति यहाँ जीवन शैली का अभिन्न अंग है। पात्रों को घूमने फिरने का शौक है। पेयर और उसके माता- पिता के साथ डॉर्टे 400 किलोमीटर दूर स्वीडन जाती है। पेअर के माता पिता अनहोल्ट द्वीप और बलगारिया घूमने जाने का कार्यक्रम बनाते हैं। लार्स कैबिन ट्रिप पर जाता है। बुआ एक कोच ट्रिप में एक लंबे और सुर्ख व्यक्ति के साथ ल्यूबैक, जर्मनी घूमने जाती है। हैसे डॉर्टे को सौंडरमार्कन एक ट्रिप के लिए ले जाना चाहता है। हैसे इक्वाडोर की यात्रा पर भी जाता है।
स्पेनिश रेड वाइन, डेजर्ट वाइन, रेड वाइन, बियर, बकार्डी, व्हिस्की आदि शराब के नामों का उल्लेख मिलता है। पेअर, लार्स और डॉर्टे बीयर की बोतले ले घर की सीढ़ियों पर बैठ जाते हैं। घर में, पार्क में, पब में, बार में, गोष्ठी में, पठन समूह में- पात्र सर्वत्र शराब पीते हैं। खाने से पहले, खाने के साथ, खाने के बाद – पीते हैं। कई बार तो इतनी पीते हैं कि लड़खड़ाते और गिरते पड़ते हैं।
बुआ डॉर्टे अपनी जेब में हमेशा सिगरेट और लाइटर रखती है, जबकि भतीजी डॉर्टे सिगरेट नहीं पीती । पेयर फ़िनलैंड ‘प्रिंस 100’ सिगरेट पीने में अपना दिन बिता रहा है। ‘वायन’ सिगरेट मुंह में दबाए रखता है। ‘लुक सिगरेट’ खत्म हो जाने पर बैनी (हैसे की प्रेमिका) ‘सेसिल सिगरेट’ पीती है।
उपन्यास बताता है कि डेनमार्क खाने- पीने का विराट वैविध्य लिए है और डॉर्टे जैसी युवतियाँ इस वैविध्य में काफी रूचि रखती है। बुआ डांर्टे की बेकरी है। रोल सौसेज, सैंडविच, चिकन, तली हेरिंग मछली, मेमने का मांस, रोस्टेड पिगलेट, लेयर केक, झींगा मछली, टूना मछली का मूस, टर्की स्टू, कॉफी, पेनकेक के पैकेट, बेयफ बर्गर, हेमबर्गर, च्युइंगम, बिस्कुट, कॉफी, ब्रैड, बटर, बेकरी का रोल, जैम, ककड़ी, फेटा का सलाद, चिप्स, दालचीनी के रोल आदि अनेकानेक व्यंजनों का जिक्र आया है। रूथ खुबानी और कुरकुरे अखरोट का स्वादिष्ट व्यंजन बनाती है। डॉर्टे ओवन में रास्प्बेरी पेस्ट्री और स्लाइस बनाती है। पेअर रूग ब्रैड का सैंडविच लाता है, जिसपर स्कू और करासे के पौधों की छोटी- छोटी पत्तियाँ जायकेदार ढंग से सजी हैं। रासेब, नाशपाति, तरबूज, बकरी के दूध का पनीर, छाछ, दम आलू और ताजी ब्रैड, आमलेट, संतरे का रस, ऐप्पल स्टू, ओथेलो केक, आमलेट, स्नेल पेस्ट्री, घोंघा पेस्ट्री, लाइनर टाट्रस, वेटनबर्ग केक, ट्री केक, पास्ट्रामी रोल, सलाद, बादाम पेस्ट से बनी मार्जिपन चॉक्लेट, पेपरमिंट की गोलियां, च्यूइंगगम, आइस क्रीम, पीता ब्रैड आदि अनेक खाद्य पदार्थों का उल्लेख है।
सजने- सँवरने और पहनने-ओढ़ने में पात्रों की खूब रूचि है। डॉर्टे हरे रंग का आई लाइनर लगाती है। बुआ का पेडीक्योर करती है। माँ संतरी लिपस्टिक लगाती है। बुआ भतीजी क्रोशिया से एक दूसरे के बालों को थोड़ा- थोडा रंग दिया करती हैं। मूँगे और पुलम के रंग वाली नेल पोलिश का भी यहाँ ज़िक्र है। डॉर्टे के पास सफ़ेद जूते, फर के चार कोट, काऊजीन्स, चमड़े की जैकेट, ऊनी जंपर, पतला ट्रेंच कोट, टोपी वाला अंगोरा कोट, अल्पाइन टोपी, मफ़लर आदि हैं। परोपकार की दुकान से भी वह सस्ते जूते, कोट खरीदती रहती है। लार्स अकसर हरे अचकन के साथ फौजी पतलून पहनता है।
डॉर्टे के बंगले में सेब, नाशपाति, पुलम के वृक्ष हैं। बसंत में खिले सफ़ेद और पीले केसर के फूल सब महका देते हैं। लार्स बागबानी करता है। पौधों की रोपाई, हरित गृह की देखभाल उसका पेशा है। लिली के कीपाकार फूल, बकाइन के फूलों की सुगंध, भुट्टों के खेत, बारहमासी घास, हार्ड़ और कैक्टस, सुगंधित फूलों वाली महोनीया झाड़ी, कौए, कलहंस, तीतर, गौरैया, हिरण आदि के द्वारा पात्रों के प्रकृति से सानिध्य का अंकन है।
दैनिक जीवन की कुछ असंगतियों से भी पात्र दो- चार होते रहते हैं। मांस के पैकेट में से रबड़ बैन निकलना या मुरब्बे के ज़ार से ततैया निकलना जैसी बात परेशान तो करती ही है। बुआ की साइकल चोरी हो जाती है और वह 19 किलोमीटर पैदल चलकर घर पहुँचती हैं। नगरपालिका की धुएँ का गुबार निकालती गाड़ी को सड़क के बीचों- बीच खड़ी कर चालक दवाई लेने चला जाता है और सारा ट्रेफिक ज़ाम हो जाता है। ट्रेन की खिड़की के पर्दों से हमेशा ईंधन और तारकोल की गंध आती रहती है। क्लब हाउस के निवासी गुसलखाने में चोरी से दूसरों की प्रसाधन सामाग्री का प्रयोग करते हैं ।
उपन्यास किसी बड़ी समस्या अथवारूढ विचारधारा का प्रतिनिधित्व नहीं करता। यहाँ एक किशोरी की रोज़मर्रा की ज़िंदगी से संबद्ध है। छोटी- छोटी बातें ही इसे आकार दे रही हैं। अर्चना पेन्यूली के शब्दों में –
“ राग में वीतराग, शांत में अशांत, गति में गतिहीनता और उपलब्धि में रिक्तता जैसे विरोधाभासों से बेपरवाह गुजरती या यूँ कहें कि ठेली जाती ज़िंदगी की बड़ी घटना से रहित और विचित्र रूप से मौन एक सामान्य जीवन के कार्यों और समवेदनाओं का वर्णन करने वाले अध्याय उपन्यास को विशेष बनाते हैं।५
अनेक वाक्य पाठक का आर्ष सत्य से आमना- सामना करवाते हैं-
1. सब काफी अच्छा चल रहा है- यह आधा बकवास है, इसका मतलब कुछ भी ठीक नहीं है।६
2. एक व्यक्ति केवल वही देखता और सुनता है, जो वह चाहता है।७
3. वह व्यक्ति जो अच्छाई से भरा होता है, थोड़ा भोला होता है।८
अनुवाद में उपन्यास की आत्मा तक पहुँचने का प्रयास दिखाई देता है। अर्चना पेन्यूली ने जिस प्रकार सरल साहित्यिक भाषा में रचना में आए भाव- विचार प्रस्तुत किए हैं, उससे स्पष्ट है कि वे दोनों भाषाओं वे विशिष्ट पकड़ रखती हैं। यह अनुवाद शाब्दिक नहीं है, अनुवादिका ने मूल कथ्य को पूर्णत: संरक्षित करने का प्रयास किया है। यही इस अनूदित रचना की विशेषता है। उपन्यास हमें उस दूर देश की जीवन शैली, संस्कृति, खान-पान से रू-बरू कराता है।