इस उपन्यास में कई कहानियाँ एक साथ गुथी हुई हैं। इस उपन्यास में प्रेम भी है और विरह भी। त्याग भी है और समर्पण भी। मानवीय मूल्य है, तो मानवीय मूल्यों का ह्रास भी। इस उपन्यास में स्त्री-पुरुष विमर्श, वृद्धा विमर्श, दलित विमर्श, प्रवासी विमर्श आदि का जिक्र किया गया है। अनुष्का के रूप में बाल मनोविज्ञान भी देखने को मिलता है।
इस उपन्यास की मुख्य पात्र हैं –दीत्यांगना और नलिनी। उपन्यास का सारा कथानक इन्हीं दोनों के आसपास घूमता है। बाकी गौण पात्र भी कथानक को आगे बढ़ाने में अत्यन्त उपकारी सिद्ध होते हैं।
इसकी प्रारंभिक घटनाएँ संयुक्त अरब अमीरात (यू.ए.ई.) में और अन्तिम भारत में घटित होती हैं।
दीत्यांगना एक डाक्टर है, जो समाजसेविका, लेखिका और रंगकर्मी भी है। दीत्यांगना के पिता लोहिताक्ष भवसारवाल हैं जो बचपन में उससे बिछड़ गए थे (उसकी माँ के कारण) और आबूधाबी में राजदूत बनकर आये थे। उन्होंने मृणालिनी नामक युवती से दूसरी शादी कर ली जिससे उन्हें एक बेटी ऋतुपर्णा हुई।पृष्ठ 154 लोहिताक्ष भवसारवाल दीत्यांगना के कहने पर बिहारी मजदूर मँगोछीराम को भारत भेजने का इंतजाम करते हैं।
नलिनी एक रेडियो आर.जे. है। जिसके पति का नाम अलिंद वार्ष्णेय और पुत्री का नाम अनुष्का है । नलिनी की माँ का नाम ज्योत्सना सपनेजा है जो डॉक्टर हैं और उसके पिता का नाम निशिकांत सपनेजा है जो हीरों के व्यापारी थे। ज्योत्सना की मृत्यु के बाद निशिकांत ने श्यामला से शादी की जिसके पहले पति से एक पुत्र था शाहीन। श्यामला तथा निशिकांत से भी एक पुत्र पैदा होता है जिसका नाम है –अम्बुज। नलिनी का पालन-पोषण उसके मामा सात्विक गुलनेजा ने किया था। सात्विक की एक प्रेमिका थी जिसका नाम सुलक्षणा था, जिसका परिणय संस्कार नलिनी ने उपन्यास के अन्त सात्त्विक मामा से करवा दिया। नलिनी की एक वृद्धा नौकरानी थी जिसे वे सब कल्याणी अम्मा के नाम से बुलाते थे।
इस उपन्यास में असफल प्रेम की कथा भी बीच में देखने हो मिलती है। नलिनी के छोटे मामा कार्तिक को बचपन में ही अपने पड़ोस में रहने वाली लड़की कपिला से प्रेम था।….कार्तिक की ओर से उसे निराशा के अलावा कुछ हाथ न लगा था।पृष्ठ 122,
कहीं-कहीं भावानुसार सुन्दर सूक्तियों का प्रयोग भी देखने को मिलता है। यथा-यही जीवन का फलसफा भी है, जो हासिल न हुआ,मन वहीं अटका रहता है और जो मिल गया उसका आनन्द उठाना विस्मृत कर देता है।पृष्ठ 29,चेहरे का पढ़ना किताबें पढ़ने जैसा सरल होता तो सभी इस विधा में दक्ष होते।पृष्ठ 43,गरीब आदमी अपना पेट पालने के लिए अपने तन को काटता रहता है।पृष्ठ 83,कोई जीवन का सौदा माँग रहा है तो कोई मौत की भीख,इसे ही अस्पताल कहते हैं।पृष्ठ 144,विछोह के अन्तिम छोर पर पहुँच कर तो मिलना ही लिखा होता है, यही विधि का विधान है।पृष्ठ 148
संयुक्त अरब अमीरात (यू.ए.ई.) के वातावरण का वर्णन करती हुई लेखिका कहती हैं कि साल में नौ महीने गर्मी रहने वाले इस देश संयुक्त अरब अमीरात यानि यू.ए.ई. में पैदल चलते इंसानों को देखकर लगता है कि जब तक घर पहुंचेंगे इनका तंदूरी चिकन बन चुका होगा| पृष्ठ 29, “……किनारे लगे खजूर, खेजड़ी, नीम, गुलमोहर वृक्षों की श्रृंखला….|सड़क पर थूकने पर जुर्माना, पान खाने पर बैन। पृष्ठ 30
इस उपन्यास में पाठक बहुत सारे नये शब्दों से परिचित होते हैं। जैसे-ज़ातर रेडियो की नींव पाँच वर्ष पूर्व पड़ी थी। ज़ातर एक प्रकार का मसाला होता है जो अरब देशों में बड़े चाव से खाया जाता है। यह कुछ विशेष मसालों का मिश्रण होता है। अजवाइन के पत्तों का चूरा (ओरेगानो), लाल बेरी का चूरा (सुमैक), सफेद भुने हुए तिल, नमक व जैतून का तेल मिलाकर इसे बनाया जाता है। पृष्ठ 38,सुलेमानी चाय के साथ ही फंटूश,फ़लाफ़ल और हमूस से दीत्यांगना का उदार शान्त हुआ। ‘बाब-अल-अमल’ अरबी का शब्द है। जिसका अर्थ है –आशा के द्वार।पृष्ठ 59 “….घर के बजाय पहले ‘असफूर’ अस्पताल गयी। अरबी भाषा में ‘असफ़ूर’ का अर्थ है पंछी।
इस उपन्यास में पाठक प्रवासी मजदूरों की स्थिति से भी अवगत होते हैं। किस प्रकार उनके पास रहने और खाने की दिक्कत होती है। यहाँ तक कि मरने पर घर वाले लाश तक नहीं मंगवा पाते। इस उपन्यास में मँगोछीराम (बिहार के ‘बतरिया’ गाँव का निवासी) की कथा इसका जीता जागता उदाहरण है।
संयुक्त अरब अमीरात (यू.ए.ई.) की आर्थिक सम्पन्नता का वर्णन करती हुई वे लिखती हैं- दुबई जगह ऐसी है कि किसी सड़क पर चार-पाँच महीने से न गए हों, तो सड़क की रूपरेखा ही बदल जाती है।
मुहावरों और कहावतों का प्रयोग भी प्रसंगानुसार खूब हुआ है। सूत और कपास के बिना कोल्हू से लट्ठमलट्ठा।पृष्ठ 53,एक हाथ से ताली नहीं बजती।पृष्ठ 65
कहीं-कहीं टंकण सम्बन्धी त्रुटियाँ भी नजर आती हैं। उसका बस चलता तो बच्चों को अपने घर ले जाती किन्तु उसका शराबी पति उसका खाल उधेड़ देता। पृष्ठ 98, प्रेम की बाती से गृहस्थी की दीपक जलती है। यहाँ गृहस्थी की जगह ‘गृहस्ती’ लिखा मिलता है तथा गृहस्थी का दीपक के स्थान पर की दीपक लिखा हुआ है। पृष्ठ 122
डॉ.आरती लोकेश कृत इस उपन्यास को पढ़ने के पश्चात् उनके अन्य उपन्यास पढ़ने की तीव्र उत्कण्ठा मन में जागृत होती है। ‘निर्जल सरसिज’ ‘ऋतम्भरा के सौ द्वीप’ और ‘ऋतम्भरा के सौ द्वीप’ निर्जल सरसिज’ के पढ़े बिना अधूरा है। पाठकों को असली आनन्द तभी आएगा जब वे डॉ उपन्यास पढ़ेंगे। आप इसी प्रकार अपनी कृतियों से हिन्दी साहित्य को समृद्ध करती रहें।