समकालीन साहित्यकारों में प्रोफेसर रवीन्द्र प्रताप सिंह का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। प्रोफ़ेसर सिंह लखनऊ विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग के प्रोफेसर हैं। उन्होंने हिन्दी अंग्रेजी मिलाकर लगभग दर्जनों रचनाएँ लिखी हैं। हाल ही में उनका नया काव्य संग्रह ‘एक अनंत फैला आकाश’ पढ़ने को मिला। हर बार की तरह इस बार भी कवि ने अपने पाठकों को निराश नहीं किया है। वरन् अपने रचना के माध्यम से आज के भौतिकतावादी जीवनशैली में, एक बार फिर नयी ताजगी पैदा कर दिया है।
उनकी कविताएँ निराशा में आशा की किरण होती हैं। यथा-पर्वो का भोर, अरे सुनो, चक्र क्रम चलता रहेगा, हर क्षण के लिए है मन नया, हम मिले सृजन पथ पर चलते, धन्यवाद, लिल्ली घोड़ियां’ (एक बरसाती कीड़ा, जिसे अवध क्षेत्र के लोग राम घोड़ी भी कहते हैं), मेरी समझ से आज तक शायद ही किसी ने इस पर कविता लिखी हो| कवि का यह नया प्रयोग काबिले तारीफ है। इसी प्रकार उन्होंने इसी काव्य संग्रह में कुत्ते पर कविता लिखी है। चूँकि कवि का बचपन गाँव में (बाराबंकी में) बीता है इसलिए उनकी रचनाओं में गाँव की मिट्टी की सोंधी खुशबू महक ही जाती है,’एक सपेरा आया’ कविता में।
मुँह ढके कुछ प्रश्न
क्योंकि पूछने पर
मालिक तरेरे आँख
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लिल्ली घोड़ी दोबारा
वही, मिट्टी से निकलकर
चढ़ी है, फिर बढ़ रही है
इधर पहली बार,बारिश
इस साल |
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एक बार फिर लें नींद
चल सुला दे यार
यूँ ही व्यग्र
वरना ये प्रश्न
ये विचार |
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वन में एक सपेरा आया
मूछ हिलाकर बीन बजाया
उसकी मूंछों में कुछ जादू
साँप नागिनें बेहिच नाचें
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आँसू फिसले, हम बढ़ निकले,
चलता,रुकता, बढ़ता जीवन
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अक्सर जीवन ऐसा लगता
आधा सूखा आधा गीला
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एक बूँद ढुलका
विसर्ग में कहीं
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सावधानी शुरू से ही
अन्त की कैसी प्रतीक्षा
‘दो-चार दिन की बात है’ कविता में एक आशावादी दृष्टिकोण दृष्टिगोचर होता है। मैं उनके नए काव्य संग्रह “एक अनंत फैला आकाश” पर उन्हें बधाई देता हूँ कि आप इसी प्रकार अहर्निश माँ भारती की सेवा करते रहे और अपने पाठकों को आनंदित तथा प्रफुल्लित करते रहें।