हिंदी के वरिष्ठ कथाकार नवनीत मिश्र की कहानियां नई संवेदना और नए तेवर से युक्त हैं। मिश्र जी की भाषा में एक जादुई आकर्षण है जो अभिनव भाव जगत से पाठकों का साक्षात्कार कराता है। इनकी भाषा का लालित्य पाठकों को मोहित करता है। नवनीत मिश्र के कहानी संग्रह ‘मेरी चयनित कहानियाँ’ में कुल ग्यारह कहानियाँ संकलित हैं। कथात्मकता, जिज्ञासा भाव और प्रतीकात्मकता इन कहानियों का प्रमुख वैशिष्ट्य है।
‘अच्छा चलो, यूँ ही सही’ में जोगेश्वर और सोमेश्वर नामक दो भाइयों की कहानी के माध्यम से रिश्तों की गाँठ खोलने का उपक्रम किया गया है। दोनों भाई साथ रहकर भी एक-दूसरे से दूर हैं। इस कहानी द्वारा समकालीन जीवन-जगत में रिश्तों के क्षरण को नए कोण से पारिभाषित किया गया है। ‘झूठी-सच्ची हथेलियाँ’ शीर्षक कहानी एक खच्चर की नज़र से मानव जगत को देखने की अनूठी शैली में लिखी गई है। इस कहानी में पशु मनोविज्ञान का बहुत खूबसूरती से निर्वाह किया गया है। अमरनाथ के तीर्थ यात्री को अपनी पीठ पर बिठाकर चलते हुए खच्चर मनुष्य के बारे में अपने अनुभव बताता है। अपने मालिक बिलाल के प्रति उसके मन में अथाह प्रेम है क्योंकि वे दोनों मेहनतकश हैं। इस कहानी में मजदूरों के प्रति सुविधाभोगी वर्ग की हिकारत, समस्याओं के संबंध में मध्य वर्ग का बड़बोलापन और समाधान के प्रति अनुत्साह, पर्यावरण के प्रति चिंता इत्यादि का चित्रण किया गया है।
प्रार्थना के बीच वह’ एक मनोविश्लेषणात्मक कहानी है जिसमें आदमी के मानसिक हलचल को रेखांकित किया गया है। पूरी कहानी उस आदमी के मानसिक धरातल के इर्दगिर्द बुनी गई है। ‘लेकिन खैर’ भारतीय नारी की व्यथा का मार्मिक आख्यान है। आज भी भारतीय नारी के जीवन में अधिक बदलाव नहीं आया है। आज भी उसके लिए ‘आँचल में है दूध और आँखों में पानी’ जैसी स्थिति बरकरार है। इस कहानी में नारी जीवन की त्रासदी को प्रभावशाली ढंग से चित्रित किया गया है। नारी मनोविज्ञान का ऐसा अद्भुत चित्रण कहानीकार के गहन ज्ञान और सतत अध्ययन का साक्षी है। यह स्त्री मन की पीड़ा को अभिव्यक्त करनेवाली एक उत्कृष्ट कहानी है।
कहानी की नायिका मांडवी कठिन परिस्थितियों में भी नहीं टूटती है, लेकिन जब उसका पति नलिन कहता है कि मुझे जितना प्यार मिलना चाहिए था वह नहीं मिला तो वह भीतर तक टूटकर बिखर जाती है। तब उसे अपना जीवन निष्फल और अर्थहीन लगने लगता है। उसने अपने घर-परिवार और पति के लिए अपना जीवन होम कर दिया, अपनी महत्वाकांक्षाओं को कुचल दिया, लेकिन उम्र के इस पड़ाव पर पति कह रहा है कि तुम तीस वर्षों में जितना प्यार नहीं दे सकी उतने प्यार का एहसास संध्या ने दो वर्षों में करा दिया। मांडवी अपने स्थान पर अपनी बेटियों को रखकर सोचती है कि उनको आर्थिक रूप से सक्षम बनाना होगा ताकि उसे तीस वर्षों तक भोग चुकने के बाद जब उसका पति किसी और का हो जाए तो वह पति के घर को लात मारकर बाहर निकल स्वाभिमान के साथ अपना जीवन निर्वाह कर सके। ‘लेकिन खैर’ नारी विमर्श की उत्कृष्ट कहानी है जो भारतीय नारी की त्रासदी को रेखांकित करती है। हम चाहे नारी सशक्तीकरण की कितनी भी बातें कर लें, परंतु आज भी भारतीय नारी प्रति पल किसी नलिन के द्वारा ठगी जाती है और अपनी बेचारगी पर आँसू बहाने के अतिरिक्त उसके पास कोई विकल्प नहीं होता है।
‘किया जाता है सबको बाइज्जत बरी’ शीर्षक कहानी भी भारतीय नारी की व्यथा-कथा का जीवंत दस्तावेज है। इक्कीसवीं सदी में भी कदम-कदम पर भारतीय नारी को अग्नि परीक्षा देनी पड़ती है। कोई पुरुष जब चाहे स्त्री को चरित्रहीनता के कठघरे में खड़ा कर देता है। बिना किसी अपराध के महिलाएं सजा काटती रहती हैं। उन्हें उस अपराध के लिए दंडित किया जाता है जो अपराध उन्होंने किया ही नहीं।इस कहानी में भारतीय नारी की मनोदशा, उसकी दयनीयता और शोषण चक्र को रेखांकित किया गया है। ‘देह भर नहीं’ कहानी भी नारी अस्मिता पर आधारित है।
महिलाएं घर-परिवार की आधारशिला होती हैं, लेकिन पुरुषवादी समाज उनके त्याग, समर्पण और परिश्रम को कोई महत्व नहीं देता है। यदि महिलाएं अपने कैरियर और अपनी महत्वाकांक्षाओं को घर की बुनियाद में होम नहीं करें तो अनेक घर खंडहर बन जाएँगे। इसी भावभूमि पर यह कहानी अवलंबित है। पतियों की पदोन्नति और अट्टालिकाओं की नींव में असंख्य महिलाओं की महत्वाकांक्षाएँ दम तोड़ देती हैं, लेकिन उन्हें कोई श्रेय नहीं मिलता।महिलाएं चुपचाप नींव की ईंट बन जाती हैं, लेकिन उनकी उपलब्धियों के खाते में शून्य होता है। ‘यह कोई नाटक नहीं है’ शीर्षक कहानी में रंगमंच के एक कलाकार के कशमकश और ऊहापोह का प्रभावशाली चित्रण किया गया है। यह पैशन और दुनियादारी के बीच खींचतान में उलझे एक रंगमंच कलाकार का आख्यान है। रंगमंच की सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि सामान्य जनता उनकी साधना और समर्पण को कोई महत्व नहीं देती है। सचमुच जीवन कोई नाटक नहीं है, यह कठोर यथार्थ है। सवालों और नसीहतों की अक्षौहणी सेना का मुकाबला करने के बाद ही जीवन के रंगमंच पर कोई अभिनेता सफल होता है।
‘यह तो कोई खेल न हुआ’ तस्वीर बन गए उस आदमी की कहानी है जो अपनी समृद्धि के प्रदर्शन के लिए हिरन को मार देता है और उसके छोटे बच्चे को पकड़कर अपने घर लाता है। हिरन मनुष्य की वणिक बुद्धि पर कशाघात करती है और कहती है कि मानव हर काम में अपनी लाभ-हानि देखता है। हिरनी मानव को उलाहना देती है कि मानव जगत जैसा दोमुँहापन और आडंबर पशु जगत में नहीं है। यह कहानी मानव की संवेदनहीनता, पाखंडप्रियता और नैसर्गिक विधि-निषेधों के विरुद्ध आचरण का बयान करती है।
‘विलोम’ कहानी उस शासनतंत्र की कलई खोलती है जिसमें दो सौ पेड़ काटने की अनुमति लेकर कोई दो हजार पेड़ काट लेता है और उसके खिलाफ कोई कारवाई नहीं की जाती। बिना प्रशासन की मिलीभगत के यह संभव नहीं है। यह कहानी मीडिया जगत का भी पोस्टमार्टम करती है जहाँ राजनीतिक दबाव से नियुक्तियां होती हैं।