सतीश राठी ने साहित्य के क्षेत्र में लगातार काम करते हुए विशेष रूप से लघुकथा को अच्छी तरह से साधा है, क्षितिज साहित्यिक संस्था के माध्यम से राठी जी ने कई नवांकुरों को वरिष्ठ लघुकथाकारों का मार्गदर्शन दिलवाया, जिससे इंदौर से एक बड़ी संख्या में रचनाकार लघुकथा के क्षेत्र में देश में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहे हैं। राठी जी ने लघुकथा विधा को काफी समृद्ध किया है। वरिष्ठ लघुकथाकार सतीश राठी हिंदी भाषा के एक संवेदनशील लेखक हैं। सतीश राठी के लेखन का सफ़र लंबा है। इनकी रचनाएँ निरंतर देश की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। राठी जी की रचनाएं शिल्प के स्तर पर देश में कालजयी लघुकथाओं के रूप में चर्चित हो चुकी है। सतीश राठी के लेखन में “शब्द साक्षी हैं”, “जिस्मों का तिलिस्म” (लघुकथा संग्रह) “पिघलती आँखों का सच” (कविता संग्रह), “कोहरे में गाँव” (ग़ज़ल संग्रह) चार साझा संकलन में लघु कथाओं का प्रकाशन शामिल हैं। इनके अतिरिक्त इन्होंने कई लघुकथा संग्रहों का संपादन किया है और साथ ही कई लघुकथा संकलनों की भूमिका भी लिखी है।
“जिस्मों का तिलिस्म” सतीश राठी का दूसरा लघुकथा संग्रह है। इस संकलन में 72 लघुकथाएँ संकलित है। सतीश राठी की लघुकथाओं में सांकेतिक, मानवेतर पात्रों के माध्यम से समाज में शोषण और अमानवीयता के यथार्थ का विविध नुकीले अक्षों के साथ व्यंग्य तथा तर्क दोनों हैं। इस लघुकथा संग्रह की भूमिका वरिष्ठ समालोचक प्रो. बी.एल. आच्छा ने लिखी है। उन्होंने लिखा हैं “सतीश राठी उच्चवर्गीय रंगीनियों और उनके अहमीले तनावों से रूबरू तो हैं, पर मध्यमवर्गीय और विशेषत: निम्नवर्गीय जीवन की विशेषताओं को उससे सटाकर प्रस्तुत करते हैं, जिससे समाज का विषम आर्थिक द्वैत सामने आता है। इन रंगीन रोशनियों और ऊँची इमारतों की छाया में विवश गरीबी और विषम दिनचर्या उनकी बेकसी को व्यंजित करती है।”
संग्रह की शीर्षक लघुकथा “जिस्मों का तिलिस्म” शीर्षक को सार्थक करती रचना है जिसमें मनुष्य की अस्मिता और विवशता को रेखांकित किया है। रचनाकार ने “संवाद” लघुकथा में पारिवारिक संबंधों की धड़कन को बखूबी उभारा है। “मक्खियाँ” लघुकथा में सांकेतिक व्यंजना द्वारा समाज की संवेदनहीनता का यथार्थ चित्र प्रस्तुत किया है। “बीज का असर” ठाकुरों और जमीदारों द्वारा गरीब, असहाय नारियों के देह शोषण की कथा है। इस रचना में गरीब गंगुआ की विवशता और लाचारी को स्पष्ट अनुभव किया जा सकता है। “आटा और जिस्म” नारी के देह शोषण की एक सशक्त, सांकेतिक रचना है। “पेट का सवाल” लघुकथा देश में व्याप्त भ्रष्टाचार को बड़ी शिद्दत के साथ रेखांकित करती है और ईमानदारी पर कटाक्ष करती है। “आक्रोश” रचना में रचनाकार ने अकाल ग्रसित गाँव के गरीब किसान, के मानसिक धरातल को समझकर उसके मन की तह तक पहुँचकर लघुकथा का सृजन किया है। इसमें किसान की ममत्व भरी भावनाओं के साथ उसके आक्रोश की अभिव्यक्ति है। “घर में नहीं दाने” लघुकथा में इंसान की विवशताओं को लघुकथाकार ने स्वाभाविक रूप से शब्दबद्ध किया है। “जन्मदिन” एक उत्कृष्ट लघुकथा है जिसमें उच्चवर्गीय लोगों की रंगीनियों और निम्नवर्गीय लोगों के जीवन की विवशताओं को उकेरा है।
लघुकथाकार “मान”, “अनाथों का नाथ”, “देश के लिए”, “छतरी”, “विवादग्रस्त”, “परिवर्तन”, “कोख”, “रंगीन मुस्कान”, “जिम्मेदारी” इत्यादि लघुकथाओं के माध्यम से स्याह होती संवेदनाओं को उभार कर उनमें फिर से रंग भर देते हैं। लेखक “मूक संवेदना”, “कंसल्टेंसी” जैसी लघुकथाओं में बुजुर्ग जीवन की व्यथा को बखूबी उजागर करते हैं। इस संग्रह की लघुकथाओं के सरोकार तब और भी व्यापक हो जाते है, जब “मजबूरी”, “अधूरा साक्षात्कार”, “दुम”, “साइकिल”, “सूअर”, “मौत का गम” जैसी लघुकथाओं में जीवन के अनेक विद्रूप सहज रूप से उभरते चलते हैं। “क्लीन-सिटी”, “रोटी की कीमत”, “अनाथाश्रम”, “शिष्टाचार”, “खुली किताब” इत्यादि रचनाओं में लघुकथाकार ने सटीक सारगर्भित तंज कसे हैं।
इस संग्रह की लघुकथाएँ यथार्थवादी जीवन का सटीक चित्रण है और सभी लघुकथाएँ मानवीय संवेदना से लबरेज हैं। इनकी लघुकथाएँ हमारे आसपास की हैं। इस संग्रह की रचनाएँ अपने आप में मुकम्मल और उद्देश्यपूर्ण लघुकथाएँ हैं और पाठकों को मानवीय संवेदनाओं के विविध रंगों से रूबरू करवाती है। लघुकथाकार ने समाज के मार्मिक और ह्रदयस्पर्शी चित्रों को संवेदना के साथ उकेरा है। सतीश राठी की लेखनी का कमाल है कि उनकी लघुकथाओं के चित्र जीवंत है और सभी लघुकथाएँ वर्तमान समय व समाज की वास्तविकता है। लेखक ने अपनी लघुकथाओं के माध्यम से समय के सच को अभिव्यक्त किया है। इस संग्रह की लघुकथाएँ अपनी सार्थकता सिद्ध करती हैं। लघुकथाओं के कथ्यों में विविधता हैं। विषयवस्तु और विचारों में नयापन है। जीवन के अनेक तथ्य एवं सत्य इन लघुकथाओं में उद्भासित हुए हैं। लघुकथाएँ लंबे अंतराल तक जेहन में प्रभाव छोड़ती हैं। लघुकथाकार की लघुकथाएँ समाज के ज्वलंत मुद्दों से मुठभेड़ करती है और उस समस्या का समाधान भी प्रस्तुत करती है। इनकी लघुकथाओं में व्याप्त स्वाभाविकता, सजीवता और मार्मिकता पाठकों के मन-मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव छोड़ने में सक्षम है। सतीश राठी की रचनाओं की भाषा सहज, स्वाभाविक और सम्प्रेषणीय है। लघुकथाओं का शिल्प बेहतरीन है और सामाजिक विसंगतियों पर लघुकथाएँ कठोर चोट करती है। 96 पृष्ठ का यह लघुकथा संग्रह आपको कई विषयों पर सोचने के लिए मजबूर कर देता है। आशा है प्रबुद्ध पाठकों में इस लघुकथा संग्रह का स्वागत होगा।