अमर शहीद एवं सुप्रसिद्ध क्रांतिवीर राम प्रसाद बिस्मिल जी की जन्म जयंती (11 जून) के अवसर पर “हस्ताक्षर पत्रिका” एवं “कर्मभूमि अहमदाबाद” द्वारा लेखिका स्मिता ध्रुव की पुस्तक “डेस्टिनेशन काकोरी (9 अगस्त 1925)” का विमोचन किया गया।
10 मार्च 1922 को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ भारत का असहयोग आंदोलन अचानक वापस ले लिया गया। इस धोखे ने कई क्रांतिकारियों को जन्म दिया। सबकी अपनी एक प्रेरणास्पद कहानी है लेकिन फिर भी कुछ इतिहास के पन्नों से दूर हो गए। यह पुस्तक इस इतिहास के कुछ लम्हों को पुनर्जीवित करने का प्रयास है। कुछ गुमनाम नायकों की वीरता की एक काल्पनिक कहानी, जो उस समय की मानसिक पीड़ा, दुविधा और अस्तित्व के मुद्दों को दर्शाती है।
हालांकि इसमें कल्पना तो नहीं के बराबर है अपितु उन बहादुर, निडर और साहसी क्रांतिवीरों एवं उनके परिवारों की व्यथा, यातना, दुविधा और इन देशभक्त शहीदों के “कंपनी साम्राज्य” द्वारा फरमाए गए अति क्रूर अंत की व्यथित हृदय से लिखी गई अश्रु भीनी श्रद्धांजलि है। स्मिता जी ने इस घटना एवं इसमें शामिल शहीदों के वे परिवार जो आज गुमनामी के अंधेरों में जीवन व्यतीत कर रहे हैं; उनसे रूबरू मिलकर सारी हकीकत बयां की है। राम प्रसाद बिस्मिल जी, अशफाक उल्ला खान साहब और लखनऊ जाकर वहां पर स्टेशन मास्टर के परिवारों से मिलना और उन घटनाओं का यथार्थवादी चित्रण करने में उन्हें करीब 7 साल का समय लग गया। एक अति व्यस्त और जिम्मेदार गृहिणी के लिए यह कितना कठिन होगा, इसकी कल्पना हम सहज ही कर सकते हैं।
कार्यक्रम का प्रारंभ सरस्वती वंदना से हुआ और उसके बाद संगीत जगत की जानी-मानी शख्सियत हिमाली व्यास नायक द्वारा गाए देशभक्ति गीत “सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है…” ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। तत्पश्चात नीरजा भटनागर ने पुस्तक की लेखिका स्मिता ध्रुव से इस पुस्तक की लेखन यात्रा के बारे में रोचक बातचीत की।
कार्यक्रम के दौरान मुख्य अतिथि गुजरात साहित्य अकादमी के अध्यक्ष श्री विष्णु पंड्या जी, वरिष्ठ कला समीक्षक एवं साहित्यकार डॉ एस डी देसाई जी, बाल साहित्यकार सुश्री विमला भंडारी जी, एवं अमर शहीद अशफाक उल्ला खां जी के पौत्र एवं उनके हम नाम अशफाक उल्ला खान साहब की उपस्थिति ने मंच एवं इस कार्यक्रम को और भी समृद्ध बना दिया।
“डेस्टिनेशन काकोरी” की प्रस्तावना डॉ. एस.डी. देसाई ने लिखी है। उन्होंने किताब के बारे में विस्तार से जानकारी दी। गुजरात साहित्य अकादमी के अध्यक्ष पद्मश्री विष्णु पंड्या जी ने स्वतंत्रता आंदोलन में अपने प्राणों की आहुति देने वाले कई क्रांतिकारियों की कहानियां सुनाई जो इतिहास में कहीं भी दर्ज नहीं हैं।
लेखिका, पत्रकार और ‘सलूंबर माहेश्वरी महिला संगठन’ की संस्थापक, अध्यक्ष डॉ. विमला भंडारी ने स्वतंत्रता के इतिहास का वर्णन करते हुए कहा कि “स्वतंत्रता सेनानियों के संघर्ष के बारे में जानना आने वाली पीढ़ी के लिए बहुत जरूरी है. प्रत्येक बच्चे को स्वतंत्रता का इतिहास जानना चाहिए जो उनमें देशभक्ति की भावना पैदा कर सके।” वह अपने संगठन के माध्यम से भी इस काम में अहम योगदान दे रही हैं।
अमर शहीद अशफाक उल्ला खां जी के पौत्र और उनके हम नाम अशफाक उल्ला खां साहब जूनियर इस कार्यक्रम में विशेष रूप से उपस्थित थे। उन्होंने अपने दादा एवं राम प्रसाद बिस्मिल जी की दोस्ती तथा उनके बलिदान पर विस्तृत चर्चा की। अमर शहीद अशफाक उल्लाह खान, को काकोरी ट्रेन डकैती में भाग लेने के लिए 19 दिसंबर 1927 को फैजाबाद जेल में पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और अन्य साथियों के साथ फांसी पर लटका दिया गया था।
अंत में आदरणीय पद्मश्री विष्णु पंड्या जी ने देश के अनामी क्रांतिवीरों के बारे में जो विस्तृत चर्चा की, उसे सुनकर कार्यक्रम में उपस्थित सभी महानुभावों की आँखें नम हो उठीं। पद्मश्री पंड्या जी ने बताया कि कैसे गुजरात में हजारों नौजवानों ने देश के नाम अपनी जान कुर्बान की है लेकिन उनके नाम इतिहास के पन्नों पर कहीं भी नजर नहीं आते! इस विषय में प्रश्नोत्तरी समय के दौरान उनके साथ नीता व्यास और मल्लिका मुखर्जी की “पश्चिम बंगाल के नीलगंज हत्याकांड” के विषय में विस्तृत चर्चा भी हुई, इस हत्याकांड की जानकारी आज बहुत कम लोगों को है।
प्रीति अज्ञात के बेहतरीन संचालन ने कार्यक्रम को और भी खूबसूरत बना दिया। इतना सार्थक कार्यक्रम आयोजित करने के लिए हस्ताक्षर, प्रीति ‘अज्ञात’ और ‘कर्मभूमि, अहमदाबाद’ की सह-संस्थापक नीरजा भटनागर को बहुत-बहुत धन्यवाद। उनके अविरत प्रयासों से पिछले 2 वर्षों से कर्मभूमि में नियमित रूप से उच्च स्तरीय कार्यक्रमों का आयोजन हो रहा है। प्रिय स्मिता ध्रुव को इतनी मूल्यवान पुस्तक लिखने के लिए मेरी हार्दिक बधाई।
कार्यक्रम को इस लिंक पर देखा जा सकता है-