जगद्विघ्नहारं श्रुतीनां सुसारं
सदानन्द्कारं विपत्त्येकतारं
शरच्चन्द्राभालं लसन्मौेक्तिमालं
महाकालकालं भजेऽहं भजेऽहम् ॥पृष्ठ 1
महादेवरूपं भवानीशदेवं
परं पण्डितं मण्डितं येन विश्वम् ।
विचित्रं विशालं विभुं विश्वनाथं
सदानन्दंनाथं भजे वैद्यनाथं ॥ पृष्ठ 3
शिवं लोकनाथं महातेजदिव्यं
विभुं वैद्यनाथं स्वरूपन्न जाने ।
सुखं वेदगम्यं सुमेरूसुनाथं
भजेऽहं सदा चिन्मथयानन्द।मूर्तिम् ॥ पृष्ठ 9
वीणापाणिं त्वभयवरदां नौमि विद्यास्वरूपां
मुख्यां देवीं सकलनिगमां सर्वशास्त्रार्थरूपम् ।
नृत्ये वाद्ये विविधविषये राजते कौमुदी सा
शुभ्रा सौम्या विशदमहिमा भारते: श्रीतपस्या ॥ पृष्ठ 13
शिवाङ्के खेलन्तींत शिवशिरसि शिप्रां शुभवहा-
मवन्त्या यां वासं भुजगगलमालं पशुपतिम् ।
श्मशानस्याभूषं हरकरकपालं नटवरं
महाकालं कालं भज मन विशालं पुरपतिम् ॥ पृष्ठ 21
शिवं शान्तलरूपं गिरीशं गुणेशं
महाभीमकायं प्रमोदं सुबोधम् । सदाशम्भुसिन्धुं जगन्मोाक्षबिन्दुं
अघोरेश्वरं देवमीडे प्रनित्यम् ॥ पृष्ठ 53
इन सुन्दर भक्तिभावपूर्ण तथा स्तुतिपरक पद्यों के प्रणेता हैं युवाकवि और संस्कृत गायक पंकज कुमार झा। इस काव्यसंग्रह में कुल 63 कविताएं हैं। पंकज झा मूलरूप से देवघर (झारखण्ड) के मूल निवासी है। सम्प्रति आप श्रीलाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय नई दिल्ली में शोधछात्र हैं।
इन स्त्रोतों के अतिरिक्त इस काव्य संग्रह में कवि में संस्कृत के महत्त्व पर, नारी महिमा पर, शिक्षा पर, कोरोना पर, मिथिला की महिमा पर, राष्ट्र नायकों पर, गणतन्त्र दिवस आदि विषयों पर भी कविताएँ लिखी हैं। कवि ने अपनी कविता में अपनी जन्मभूमि वैद्यनाथ धाम को भी याद रखा है। यथा-
देश: पुण्य: श्रमबलकरो भारतो वर्ष एषो-
यत्रानेके प्रथितसुबला: श्रेष्ठकार्याणि चक्रु: ।
तस्मात्सर्वे निजकरकृतिं, दूरदृश्ये विहाय,
कुयुर्नित्यं स्वसुखमनसा देशवृद्धयै हि शिक्षा ॥ पृष्ठ 16
मन्दं- मन्दंस पठ-पठ शिशो! नास्ति शैघ्य्रं हि किञ्चित्
ज्ञात्वैतां नो विविधविधिभि: राजते विज्ञवीर: ।
सम्पूर्णेऽस्मिन् भुवनपटले स्वां हि कीर्त्ति प्रसार्य
ध्याता नित्या सुफलफलदा दीव्यतां देववाणी ॥ पृष्ठ 31
इस संग्रह की अधिकांश कविताएँ दिल्ली संस्कृत अकादमी द्वारा पुरस्कृत (विभिन्न काव्य लेखन प्रतियोगिताओं में) हैं। कवि की संस्कृत के छन्दों पर अच्छी पकड़ है। इस संग्रह की कविताएँ भुजङ्गप्रयात, शार्दूलविक्रीडित, इन्द्रवज्रा, वसन्त्तिलका, मन्दाक्रान्ताततथाशिखरणी आदि छन्दों में निबद्ध हैं । भाषा सरल, सुबोध, सुग्राह्य तथा सुललित है। यह काव्यसंग्रह बिम्ब,लय, अनुभूति, कल्पना आदि की सुन्दर अभिव्यक्ति करता हुआ पाठकों के बीच अपना स्थान बनाने में सफल है। इस सुन्दर सृजन के लिए पंकज जी को साधुवाद एवं अनेक शुभकामनाएँ ।