सावन झूले,
हम कहाँ हैं भूले,
मन में डोले
इंद्रधनुष
बिखेरे सात रंग
मन से श्वेत
बरसे मेघ
हर्षाया तन-मन
भीगे नयन
रूप अपना
निहारती प्रकृति
ताल-दर्पण
उमड़ा ज्वार
बरसाती नदिया
महंगाई की
डूबी जनता
त्राहिमाम करती
बनी सुर्खियां.
उमड़ा जोश
बरसाती नदिया
देशप्रेम की
चिंता धरा की
चिलम फूंके चाँद
बादल रोया.
कश्ती कागज़
जानती कि डूबेगी
बही फिर भी
नायिका वर्षा
दर्शाती रंग-रूप
इतराती सी
भीगी धरती
भीगे तरु पल्लव
अनभीगी मैं
धुनिया धुने
बादल ज्यूं कपास
बिखरे फाहे
अर्श से गिरा
गिरी पर अटका
छौना मेघ का
वारिद ड्र्म
तडित का इफेक्ट
झूमती वर्षा
एफ.डी.बादल
साल भर का ब्याज
देता धरा को
छिड़ा संग्राम
वारिदों मध्य नभ
करुणा बही
हरा गलीचा
बिछाया तो वर्षा ने
लोटे गर्दभ