पूरी दुनिया की आबादी इस समय करीब 7.6 अरब है, जिसमें सबसे ज्यादा चीन की आबादी 1.45 अरब है जबकि भारत आबादी के मामले में 1.4 अरब जनसंख्या के साथ विश्व में दूसरे स्थान पर है। अगर भारत में जनसंख्या की सघनता का स्वरूप देखें तो जहां 1991 में देश में जनसंख्या की सघनता 77 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर थी, बढ़कर 2011 में 382 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर हो गई। है। संयुक्त राष्ट्र की इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत में प्रतिवर्ष ऑस्ट्रेलिया की कुल जनसंख्या के बराबर बच्चों का जन्म होता है।
संयुक्त राष्ट्र के एक सर्वेक्षण के अनुसार यह अनुमान लगाया गया था कि 2024 तक भारत और चीन की जनसंख्या बराबर हो जाएगी और 2027 में भारत चीन को पछाड़कर विश्व का सर्वाधिक आबादी वाला देश बन जाएगा। परंतु जनगणना और डेमोग्राफिक पर काम करने वाला स्वतंत्र संगठन वर्ल्ड पॉपुलेशन रिव्यू ने अपनी नवीनतम सर्वेक्षण के आधार पर दावा किया है कि 2022 के अंत तक भारत की जनसंख्या 1.417 बिलियन (लगभग 10 बिलियन) हो चुकी थी। वहीं, चीन ने 18 जनवरी 2023 को अपनी एक रिपोर्ट पेश की, जिसमें पड़ोसी देश की जनसंख्या 1.412 बिलियन बताई गई यानी कि भारत में लगभग 5 मिलियन कम। चीन ने बताया है कि 1960 के बाद से वहां जनसंख्या में गिरावट आई है। वर्ल्ड पॉपुलेशन रिव्यू की इस रिपोर्ट में बताया गया है कि 18 जनवरी, 2023 तक भारत की जनसंख्या 1.423 बिलियन का आंकड़ा पार कर चुकी है।गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र की द वर्ल्ड पॉपुलेशन प्रोस्पोट्स 2019 : हाईलाइट्स नामक रिपोर्ट के अनुसार, भारत को इस लक्ष्य तक पहुँचने में वर्ष 2027 तक का सफर करना था परंतु निर्धारित अनुमान से चार वर्ष पूर्व ही भारत चीन को पीछे छोड़ते हुए दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन गया।
भारतवर्ष एक विशाल प्रभुसत्ता संपन्न प्रजातांत्रिक राज्य है। भारतीय लोकतंत्र के समक्ष गंभीर चुनौती जनसंख्या में निरंतर वृद्धि है। सन् 1901 में भारत की जनसंख्या 19 करोड़, सन् 1951 में 36.1 करोड़ तथा सन् 2011 की जनगणना के अनुसार बढ़कर 1.21 बिलियन हो गई। इस समय 1.423 बिलियन आबादी के साथ भारत प्रथम स्थान पर है। चीन 1.412 बिलियन आबादी के साथ दूसरे स्थान पर है। इस समय समस्त विश्व में 207 प्रभुसत्ता संपन्न राज्य हैं। भारत की जनसंख्या राज्यों के 100 राज्यों के समान है।
जन विस्फोट सदियों पुरानी ऐसी समस्या है जो अब बेकाबू हो चली है । हालांकि ठंडी जलवायु व ध्रुवों के नजदीकी क्षेत्रों में आज भी जनसंख्या घनत्व बहुत कम है इसी तरह मरुस्थल व दुर्गम पहाड़ी इलाके आज भी “मानवसमूह’ देखने को तरसते हैं पर गर्म, मानसूनी व मैदानी व उपजाऊ इलाकों में जन विस्फोट की भयंकर नदी बह रही है जो उनकी सारी प्रगति को लील रही है।
जन विस्फोट नकारात्मक व सकारात्मक दोनों ही कारणों से हुआ है। जहां शिक्षा का अभाव, औरत को सेक्स मशीन में तब्दील कर देना, उसकी आर्थिक स्थिति खराब होना, परिवार नियोजन के साधन या उनके सही उपयोग का पता न होना, संतान उत्पत्ति को भगवान की देन मान बैठना, धर्म से जोड़ देना, अपने वर्चस्व की लड़ाई के नाम पर ज्यादा से ज्यादा संतान पैदा करना, वर्ग संघर्ष में संख्या बल से विजय पाने की चाह, अपनी आय कम होने से संतान की कमाई से आगे बढ़ने का लोभ, दूरदृष्टि की कमी, जागरूकता का अभाव, रूढ़ियाँ, वंशबेल को आगे ले जाने का मोह आदि अनेक नकारात्मक कारण हैं तो वहीं बढ़ती सुविधाएं, स्वास्थ्य सेवाएं अच्छी हो जाना, अच्छे इलाज की व्यवस्था होना, जीवन स्तर में वृद्धि होना, भूख, अकाल, कुपोषण, बीमारी, प्राकृतिक आपदाओं से मौतें अपेक्षाकृत कम होना आदि अनेकानेक कारणों ने भी जनसंख्या को तेजी से बढाया है।
भारत में तो जन विस्फोट की अब हद हो गई है। कारण कुछ भी व कितने भी हों पर असलियत यही है कि सुरसा के मुख सी बढ़ती आबादी न केवल विकास की गति को मंथर कर रही है अपितु जनसंख्या के एक बड़े भाग का पेट भरने में जीडीपी अधिकांश हिस्सा खर्च हो रहा है। अब सवाल यह है कि इस समस्या का हल क्या हो ? क्या जन्म वृद्धि दर पर रोक से काम बन जाएगा ? या चीन की ही तरह भारत में भी कठोर नीति बने और सब पर एक से ज़्यादा बच्चे को जन्म देने पर प्रतिबंध आयद किया जाए? पर क्या इतने सारे धर्मों व राजनीति के चलते यह संभव है भारत में? शायद नहीं। मगर यदि देश को विकास की सड़क पर तेजी से दौड़ आना है तो फिर जाति धर्म संप्रदाय क्षेत्र आदि के राजनीतिक लाभों के मोह को छोड़कर देश में तार्किक तरीके से एक निश्चित जनसंख्या वृद्धि नियंत्रण सिद्धांत तो लागू करना हो होगा।
जनसंख्या को किसी विशेष धर्म से जोड़ना तथ्यों पर आधारित नहीं है क्योंकि नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार भारत में सन 2005-2006 के मुकाबले सन 2015-2016 में प्रजनन दर सभी धर्मों में गिरावट की ओर अग्रसर है । हिंदुओं में 17. 8 प्रतिशत, मुसलमानों में 22.9 प्रतिशत, ईसाइयों में 15 प्रतिशत, सिखों में 29 प्रतिशत, बौद्ध धर्म में 22 .7 प्रतिशत जैन धर्म में 22.1 प्रतिशत गिरावट आई है। भारत के विभिन्न राज्यों में प्रजनन दर अलग-अलग है। सन 2015 के सर्वे के अनुसार बिहार में 3. 2, उत्तर प्रदेश में 3.1 , राजस्थान में 2.7 तथा केरल में 1. 8 है। केरल में सन 2013 से सन 2015 तक प्रजनन दर में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। मूल कारण है कि केरल के साक्षरता की दर विश्व स्तरीय है। जागरूकता भी अन्य प्रदेशों की अपेक्षा अधिक है. वहां सरकारों के द्वारा अपनाई गई नीतियों, कार्यक्रमों और योजनाओं को उचित तरीके से लागू किया गया।
भारत के लिए यह स्थिति विशेष चिंता का विषय है। भारत के पास विश्व की मात्र दो प्रतिशत भूभाग है। जबकि यहां पर विश्व की 20 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है। जिस गति से जनसंख्या बढ़ रही है, उसके अनुरूप संसाधनों की व्यवस्था संभव नहीं है। राजनीतिक दल चाहे जो दावा करें, कह संसाधनों का सृजन नहीं कर है जो लोग जनसंख्या नियंत्रण का विरोध करते हैं, उन्हें संसाधनों की पर्याप्त उपलब्धता के संबंध में भी विचार व्यक्त करना चाहिए। जनसंख्या का स्थिरीकरण होना अपरिहार्य है।
निस्संदेह तमाम प्रयासों के बावजूद आज भी भारत जनसंख्या विस्फोट की समस्या से त्रस्त हैं और इस समस्या के चलते ही अभी भी करीब 30 फीसदी लोग गरीबी की रेखा के नीचे का जीवन व्यतीत करने को विवश हैं यानी कह सकते हैं कि जीवन की आधारभूत सुविधाएं भी इन लोगों को उपलब्ध नहीं हैं। कैसी है हालत आप सोच भी नहीं सकते कि कैसी हालत होगी उन लोगों की जिनके पास न सिर छुपाने को छत हैं, न पोषक और पर्याप्त भोजन। अच्छे कपड़ों व शिक्षा की तो बात ही दूर की कौड़ी है। जन विस्फोट अब संघर्ष का पर्याय बन गया है। जन विस्फोट की वजह से न अमीर को चैन है न गरीब को सुख। दोनों एक दूसरे को अपना दुश्मन मान रहे हैं। सारा विश्व आज वर्ग संघर्ष में उलझा है। समाजवाद व समानता की अवधारणा करीन-करीब मर गई है, आदमी से मशीनें महत्वपूर्ण हो गई हैं। आज के लालच में आने वाले कल की चिंता गायब हैं यदि समय रहते कुछ नहीं किया गया तो हालात और भी खराब हो सकते हैं।
माल्थस द्वारा प्रतिपादित नियम के अनुसार जनसंख्या में वृद्धि ज्यामितीय तरीके से होती है जबकि उत्पादन में वृद्धि अंकगणित के नियमानुसार होती है। जनसंख्या निरंतर बढ़ रही है और संसाधन उसी अनुपात में घट रहे हैं। प्राकृतिक संसाधनों खनिज पदार्थों, जल, जंगल और जमीन का कानूनी और गैर कानूनी दोहन बढ़ रहा है।
जनसंख्या नियंत्रण का संबंध विकास व संसाधनों से भी जुड़ा है। संसाधनों की भी एक सीमा होती है। जनसंख्या व संसाधनों के बीच संतुलन होना चाहिए। अनियंत्रित जनसंख्या वृद्धि से संसाधनों का अभाव होने लगता है। सबसे पहले इसका प्रतिकूल प्रभाव गरीबों पर पड़ता है। जिस वस्तु का अभाव होता है, उसकी कीमत बढ़ जाती है। धनी वर्ग उसे खरीद सकता है। जबकि गरीबों को मुसीबत का सामना करना पड़ता है। जनसंख्या की अनियंत्रित वृद्धि विकास में बाधक भी साबित हो सकती है। इससे संसाधनों पर दबाव बढ़ता है। लोगों के जीवन स्तर में कमी आती है।
अमीर लोगों के विलासिता भरे जीवन के बारे में सुनकर गरीब लोगों के मन में आक्रोश होना बहुत स्वाभाविक है। अगर प्राणी वैज्ञानिकों की मानें तो एक दिन यही समस्या विश्व युद्ध को न्यौता दे सकता है। इस आक्रोश को समय-समय पर कई देशों में जन आंदोलनों व सत्ता पलट के रूप में देखा भी जा चुका है। लगातार हो रहे जनविस्फोट से एक बड़ा खतरा सामने दिखता है कि कहीं यें गरीब मिलकर अपने अस्तित्व की रक्षा की खातिर भयंकर विनाश को जन्म न दे दें। समय की मांग है कि गंभीरता पूर्वक जनविस्फोट की समस्या से तो निपटा जाए और इसके मूल कारणों की पड़ताल कर उन्हे रोका जाए। जनसंख्या वृद्धि दर में कमी के बावजूद भी हम सारी दुनिया में सबसे ज्यादा जनसंख्या बढ़ा रहे हैं यह ज्यादा चिंताजनक स्थिति है।
जन विस्फोट रोकने के लिए जनजागरण बहुत जरूरी है। आम आदमी को बताना व समझाना होगा कि तरक्की का रास्ता कम बच्चे पैदा करने वाली सड़क से गुजरता है। कम संतान मतलब कम जिम्मेदारी व अच्छा पालन पोषण है और अपनी व बच्चों की योग्यता से समाज में मिलता है और समृद्धि के रास्ते खुलते हैं। कम बच्चे मतलब कम बंटवारा यानि हर एक का हिस्सा ज्यादा अर्थ वही सबको मिले पर्याप्त तो संघर्ष समाप्त मानिए।
बढ़ती आबादी के कारण ही दुनियाभर में तेल, प्राकृतिक गैसों, कोयला इत्यादि ऊर्जा के संसाधनों पर दबाव अत्यधिक बढ़ गया है, जो भविष्य के लिए बड़े खतरे का संकेत है। जिस अनुपात में भारत में आबादी बढ़ रही है, उस अनुपात में उसके लिए भोजन, पानी, स्वास्थ्य, चिकित्सा इत्यादि सुविधाओं की व्यवस्था करना किसी भी सरकार के लिए आसान नहीं है। बेरोजगारी और गरीबी ऐसी समस्याएं हैं, जिनके कारण भ्रष्टाचार, चोरी, अनैतिकता, अराजकता और आतंकवाद जैसे अपराध पनपते हैं और जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण किए बिना इन समस्याओं का समाधान संभव नहीं है।
विगत दशकों में यातायात, चिकित्सा, आवास इत्यादि सुविधाओं में व्यापक सुधार हुए हैं लेकिन तेजी से बढ़ती आबादी के कारण ये सभी सुविधाएं भी बहुत कम पड़ रही हैं। जनसंख्या वृद्धि की वर्तमान स्थिति की भयावहता को मद्देनजर रखते हुए पर्यावरण विशेषज्ञों की इस चेतावनी को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि यदि जनसंख्या वृद्धि की रफ्तार में अपेक्षित कमी लाने में सफलता नहीं मिली तो निकट भविष्य में एक दिन ऐसा आएगा, जब रहने के लिए धरती कम पड़ जाएगी और बढ़ती आबादी जरूरी संसाधनों को निगल जाएगी।
किसी भी देश की जनसंख्या तेज गति से बढ़ेगी तो वहां उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव भी उसी के अनुरूप बढ़ता जाएगा। आंकड़ों पर नजर डालें तो आज दुनियाभर में करीब एक अरब लोग भुखमरी के शिकार हैं और अगर वैश्विक आबादी बढ़ती रही तो भुखमरी की समस्या बहुत बड़ी वैश्विक समस्या बन जाएगी, जिससे निपटना इतना आसान नहीं होगा।
बहुत जरुरी है कि अब लोग जानें कि संतान ईश्वर की देन नहीं वरन् एक जैविक प्रक्रिया है जिसे नियंत्रित कर सकते हैं। स्त्रियों की हालत और सोच को बदलना होगा, पुरुष को भी समझाना होगा कि वह स्त्री को संतान पैदा करने की मशीन समझने की प्रवृत्ति से बाहर आए। गांव की स्त्रियों को आर्थिक रूप से मजबूत करना होगा। अगर जनसंख्या वृद्धि पर हम पूरी तरह रोक नहीं लगा सकते हैं तो भी समय की मांग है कि जनसंख्या को कुशल बनाया जाए। हमें सीखना होगा कि मानव संसाधनों का बेहतर व प्रभावशाली उपयोग कैसे किया जा सकता है और जनसंख्या को बिना किसी धर्म, राजनीति या क्षेत्र से पक्षपात किए, श्रम कुशल बनाकर देश की कुशलता व विकास को सुनिश्चित करना होगा।
विशाल जनसंख्या एक संसाधन तभी होता है जब ईज ऑफ लिविंग का स्तर ठीक हो। अधिक जनसंख्या से गरीबी नहीं बढ़ती, बल्कि यह हमें समृद्ध बनाती है। अर्थशास्त्री जूलियन साइमन ने 1981 की अपनी एक पुस्तक ‘द अल्टीमेट रिसोर्स‘ में इस तथ्य को इंगित किया है कि जब-जब जनसंख्या विस्फोट हुआ है, तब-तब उत्पादकता में भी अपार वृद्धि हुई है। 1798 में विश्व की कुल आबादी एक अरब थी, वहीं अब 7.7 अरब लोग हैं। इसके साथ ही इस पर गौर कीजिए कि उस समय के सबसे धनवान व्यक्ति से आज हम बेहतर जीवन जी रहे हैं कि नहीं? साइमन लिखते हैं कि जब हम संसाधनों की बात करते हैं, तो हम यह भूल जाते हैं कि मनुष्य अपने आप में सर्वोत्तम संसाधन है। उसके पास कौशल की कोई सीमा नहीं है। जब मनुष्य आपस में सकारात्क आदान-प्रदान करते हैं, तो लोगों के जीवन-स्तर के साथ-साथ विश्व में भी उसकी कीमत बढ़ती है। यही कारण है कि हम अधिक-से-अधिक बड़ी अर्थव्यवस्था में रहना चाहते है, अधिकांश लोग शहरों की ओर भागते हैं।
ज्यादातर देशों में यह पाया गया है कि अधिक जनसंख्या होने के कारण वहां पर काम करने वाले लोगों की संख्या भी अधिक होती है और इसीलिए ऐसे देशों में जनसंख्या वृद्धि के कारण आर्थिक लाभ के ज्यादा अवसर रहते हैं। चीन का ही उदाहरण ले लीजिए। चीन में बड़े पैमाने पर जनसंख्या वृद्धि के बारे में हम सब जानते हैं लेकिन इस बात पर भी गौर करिए कि दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक चीन है। ये ज़रूरी नहीं है कि अधिक जनसंख्या का मतलब हमेशा आर्थिक बढ़ावा होता है लेकिन कुछ देशों में ऐसा पाया गया है कि जनसंख्या बढ़ने के कारण उन देशों की आर्थिक स्थिति में काफी सुधार आया है।
जनसंख्या स्थिरीकरण में जागरूकता का सबसे अधिक महत्व है। अप्रत्याशित जनसंख्या विस्फोट एक अवांछित समस्या तो है ही हमारे देश में, परंतु उससे बड़ी समस्या हमारे राजनीतिज्ञ हैं जो समस्या की जड़ में समाधान की जगह अपने निजी लाभ के लिए तुष्टीकरण की राह चुन लेते हैं।