पुस्तक लोकार्पण समारोह
‘कर्मभूमि’ अहमदाबाद के मंच पर से 27 अगस्त 2021 को अश्विन मैकवान लिखित द्विभाषी काव्य-संग्रह “नीरखुं तने मारी कवितानी केडीए” का ऑनलाइन लोकार्पण हुआ। वे पिछले पैंतीस साल से अपने परिवार के साथ कैलिफोर्निया के लॉस एंजेलिस शहर में रहते थे। 24 जून 2020 के दिन वहीं उनका देहांत हुआ। उनकी कॉलेज की सहपाठी एवं मित्र, बहुभाषी लेखिका मल्लिका मुखर्जी ने उनके गुजराती काव्यों को संकलित कर इस काव्य संग्रह को तैयार किया। बहुभाषी लेखिका स्मिता ध्रुव ने इस संग्रह की कविताओं का अंग्रेजी अनुवाद किया है। विश्वगाथा प्रकाशन से प्रकाशित यह काव्य-संग्रह शीघ्र ही अमेज़न पर भी उपलब्ध होगा।
इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में मैरीलैंड, अमेरिका से सुप्रसिद्ध कवयित्री आदरणीय अन्नदा पाटनी जी उपस्थित थीं। अन्य अतिथियों में हिन्दी एवं गुजराती के जाने माने लेखक तथा ‘विश्वगाथा’ प्रकाशन के श्री पंकज त्रिवेदी, इस काव्य-संग्रह की हर कविता के लिए सुन्दर रेखाचित्र बनाकर साहित्य को कला के साथ जोड़ने वाले, सुप्रसिद्ध चित्रकार श्री अंकुर सूचक, सुश्री मल्लिका मुखर्जी और सुश्री स्मिता ध्रुव भी उपस्थित थे। कर्मभूमि की संस्थापकद्वय प्रीति ‘अज्ञात’ और नीरजा भटनागर ने कुशलतापूर्वक कार्यक्रम का संचालन किया।
कार्यक्रम की शुरुआत गुजरात की सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री अन्नपूर्णा शुक्ला के शुभ संदेश से हुई। उन्होंने एक एक्टर के रूप में अश्विन का परिचय देते हुए कहा कि अश्विन एक बेहतरीन अभिनेता थे। अन्नपूर्णा जी की अभिनय यात्रा नाटकों से शुरू हुई थी। अस्सी के दशक में उन्होंने अश्विन के साथ रंगमंच साझा किया है। पुरानी यादों को ताजा करते हुए उन्होंने कहा कि उनके फर्स्ट कमर्शियल नाटक ‘द ट्रेप’ में अश्विन उनके हीरो थे। अश्विन एक ऐसे कलाकार थे, जो हमेशा परफेक्शन में बिलीव करते थे। अन्नपूर्णा जी ने अश्विन की कविताओं को संकलित कर सुन्दर पुस्तक का रूप देने के लिए अश्विन की करीबी मित्र और उनकी भी करीबी मित्र मल्लिका मुखर्जी की सराहना करते हुए कहा कि मल्लिका ने अश्विन को अमरत्व दिया है।
काव्य-संग्रह के ऑनलाइन लोकार्पण के बाद प्रीति जी ने मल्लिका मुखर्जी से इस काव्य-संग्रह की प्रकाशन यात्रा के बारे में चर्चा की। मल्लिका जी ने कहा कि अश्विन उनके कॉलेज के सहाध्यायी थे। वे एक एक्टर के रूप में अश्विन के अभिनय से बहुत प्रभावित थीं और मन ही मन उन्हें पसंद करने लगी थीं। हक़ीकत में अश्विन उनकी किशोरावस्था का पहला प्रेम थे, लेकिन कॉलेज काल में वे कभी इस बात को कह नहीं पाई थीं। इकतालीस वर्ष के बाद वर्ष 2018 में उन्होंने फेसबुक पर अश्विन जी को ढूंढा और अपने मन की बात भी कही। यह मुलाक़ात एक सुन्दर मैत्रीपूर्ण रिश्ते में तब्दील हो गई। इस मुलाक़ात ने उनके मन पर गहरा प्रभाव डाला। चैट के माध्यम से वे दोनों रचनात्मक लेखन की ओर अग्रेसर हुए और मिलकर एक हिन्दी चैट उपन्यास लिखा।
मल्लिका जी ने यह भी कहा कि अपने जीवन में हम कितने लोगों से मिलते हैं, मैं मानती हूँ कि यह मात्र संयोग नहीं होता, किसी अलौकिक शक्ति द्वारा प्रेरित होता है। इकतालीस साल के बाद अश्विन से दुबारा मुलाकात भी ऐसी ही एक अनोखी घटना थी! चैट करते हुए जब अश्विन ने बताया कि उन्हें अपनी डायरी में कवितायें लिखने की आदत थी, तब उन्होंने कविता पर चर्चा शुरू की। पिछले तैंतीस वर्षो से वे अपने वतन भारत नहीं आ पाए थे इसलिए वे अधिकतर वतन से बिछड़ने की पीड़ा लिख रहे थे। उनका स्वास्थ्य भी ठीक नहीं चल रहा था, फिर भी उनके उत्साह में कोई कमी नहीं थी। वे चाहते थे कि उनका एक काव्य संग्रह भी प्रकाशित हो। मल्लिका जी ने उनसे वादा किया था कि वे ज़रूर इस काम में मदद करेंगी। मल्लिका जी ने, अश्विन जी के उनके निधन के बाद उनकी कविताओं को संकलित कर इस काव्य संग्रह को तैयार किया। उन्होंने किया हुआ वादा निभाया, वे मानती हैं कि इस नेक कार्य के लिए ईश्वर ने उन्हें चुना। अंत में उन्होंने हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए यह भी कहा कि अश्विन जी से उनकी दोस्ती लेखन में अमर हो जायेगी।
मल्लिका जी से चर्चा के बाद प्रीति जी ने मुख्य अतिथि आदरणीय अन्नदा पाटनी जी को अपना वक्तव्य देने हेतु आमंत्रित किया। अन्नदा जी ने कहा कि ये कैसी विडंबना है कि हम बरसों से जिनके साथ रहते हैं, उन्हें पूरी तरह नहीं जान पाते हैं और कुछ लोग ऐसे होते हैं जो थोड़े ही समय में हमारे मन में विशेष स्थान बना लेते हैं । कुछ ऐसा ही उनके और अश्विन मैकवान के साथ हुआ । मल्लिका जी के साथ मिलकर अश्विन जी के लिखे चैट उपन्यास को पढ़कर वे इतनी भावुक हो गई कि उन्होंने उपन्यास की समीक्षा लिखी। इतना ही नहीं, वे अश्विन जी की फेसबुक फ्रेंड बन गईं। अश्विन जी उनकी लिखी समीक्षा से बेहद खुश थे। उन्होंने इस समीक्षा की दिल खोलकर तारीफ़ की। अन्नदा जी को यह तो पता था कि उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं है पर वे इतनी जल्दी चले जायेंगे, नहीं सोचा था। उनके देहांत के बारे में सुन कर वे एकदम स्तब्ध रह गई! उन्होंने कहा कि बस संतोष इस बात का है कि जाने से पहले अश्विन अपनी भावनाओं को व्यक्त कर सके। “यू एंड मी…द अल्टिमेट ड्रीम ऑफ लव” के माध्यम से उन्हें एक ठोस ज़मीन मिल गई, जिस पर उन्होंने अपना पूरा हृदय खोल कर रख दिया। यह वही व्यक्ति कर सकता है जिसका हृदय पवित्र होता है। इसका पूरा श्रेय मल्लिका को जाता है जिन्होंने यह धरातल तैयार किया और अश्विन को आश्वस्त किया कि हर बात बेहिचक कह सकते हैं । लोग उनके मनोभावों को अवश्य स्वीकारेंगे।
बात को आगे बढाते हुए अन्नदा जी ने कहा कि एक बात जो अश्विन के विचारों से, उनके ई-मेल से सदा परिलक्षित हो पाई थी वह था उनका देश प्रेम। अश्विन मैकवान द्वारा लिखित काव्य- संग्रह “नीरखुं तने मारी कवितानी केडिए” (You-On the path of my poetry) में लिखी सभी कविताएँ किसी न किसी रूप में उनके वतन के प्रति प्रेम को ही दर्शाती है। अन्नदा जी ख़ुद इन भावनाओं के साथ तादात्म्य बिठा पाई क्योंकि वे स्वयं विदेश में रह कर वैसा ही अनुभव करती हैं। उन्होंने कहा, ‘मैं सब कुछ छोड़कर यहाँ विदेश में आ बसी हूँ, पर मेरा मन और वतन मेरे साथ आया है । मन में वतन समाया है और वतन में मन, ये दोनों मुझसे कोई नहीं छीन सकता।‘ उन्होंने अपनी एक कविता अश्विन जी को समर्पित की। कविताओं के अंग्रेजी अनुवाद के लिए स्मिता ध्रुव को साधुवाद देते हुए अन्नदा जी ने कहा, ‘स्मिता जी ने अश्विन की इन कविताओं का अंग्रेज़ी में अनुवाद कर हम सबके लिए इन्हें सुग्राहय बना दिया।’
अन्नदा जी के वक्तव्य के बाद नीरजा भटनागर ने ‘डेस्टिनेशन काकोरी’ जैसे महत्वपूर्ण उपन्यास की लेखिका स्मिता ध्रुव जी को आमंत्रित किया और उनसे अनुवाद कार्य से सम्बंधित चर्चा की। चर्चा में शामिल होते हुए स्मिता ध्रुव ने कहा कि अनुवाद का कार्य उसी लेखन को लगभग फिर से लिखने जैसा है। कहानी या गद्य का अनुवाद, कविताओं के अनुवाद से अलग है। कविता को समझने से पहले कवि को समझना पड़ता है। कवि ने किन परिस्थितियों में लिखा है, उन भावनाओं से जुड़ना होता है, उसे अनुभूत करना पड़ता है। इमीग्रेशन से जुड़ी इन कविताओं का अनुवाद करते समय उन्हें मिश्रित भावनाओं से गुजरना पड़ा। पश्चिमी देशों का ग्लैमर भारतीयों को हमेशा ललचाता रहा है। इस में सही या गलत जैसा कुछ भी नहीं है। भारत में रहने या विदेश में बसने की हर पसंद के अपने फायदे और नुकसान हैं। इसके अलावा, अनेक भारतीय परिवारों में से या तो बच्चे या रिश्तेदार विदेशों में रहते हैं, और सब के लिए यह सुखदायक नहीं भी होता है।
उन्होंने यह भी कहा कि अनुवाद कार्य एक रोमांचक चुनौती है। अश्विन जी की कविताओं में गुजरात की आंचलिक भाषाओं के शब्द भी हैं। उन शब्दों को समझने के लिए उन्होंने मल्लिका जी से चर्चा की। इन कविताओं का अनुवाद करते समय, कवि की भावनाओं से गुजरने का अनुभव कष्टमय रहा, पर उन्हें इस काव्यसंग्रह का हिस्सा बनने की ख़ुशी भी थी। मल्लिका जी ने अश्विन जी के साथ लिखे चैट उपन्यास के गुजराती अनुवाद के बाद उन्हें इस काव्य संग्रह का अंग्रेजी अनुवाद सौंपने के लिए उन्होंने मल्लिका जी का आभार व्यक्त किया।
स्मिता जी के वक्तव्य के बाद, कैलिफोर्निया के लॉस एंजेलिस शहर के ही निवासी संगीतकार संजीव मुन्शी का स्वरबद्ध किया हुआ, अश्विन जी लिखित एक कविता का वीडियो सुनाया गया, जो संजीव मुन्शी और गीता मुन्शी- की सुमधुर स्वर में रिकोर्ड किया गया है। मुन्शी दंपति कॉलेज काल से अश्विन जी के करीबी दोस्त थे और जिन्होंने अंत तक अश्विन जी से दोस्ती निभाई, आज भी उनके परिवार से जुड़े हैं।
इस कविता की प्रस्तुति के बाद गुजराती और हिन्दी के सुप्रसिद्ध लेखक तथा ‘विश्वगाथा’ प्रकाशन के पंकज त्रिवेदी जी को आमंत्रित किया गया। पंकज जी ने कहा, ‘अतिथि महोदया अन्नदा पाटनी जी के वक्तव्य से हम ऐसे भाव प्रवाह में बह गए कि लगता है अश्विन हमारे साथ ही हैं। अश्विन कोई व्यक्ति नहीं, एक चेतना है और यह चेतना इतनी प्रबल है कि हमें लगता है कि वे हमारे भी मित्र हैं। मल्लिका और अश्विन, दोनों को मेरा सैल्युट है। उनके बीच जो डिवाइन लव है, इससे अच्छा, इससे सार्थक प्रेम और हो ही नहीं सकता। कॉलेज काल में इन दोनों के बीच ऐसी कोई बात या ऐसा कोई अवसर नहीं मिला था कि मल्लिका जी अश्विन के प्रति अपने प्रेम को व्यक्त कर सकें। जब तक उन्होंने कहा नहीं था अश्विन जी को पता ही नहीं था, लेकिन जब एक लंबे अंतराल के बाद वे आभासी पटल पर मिले तब मल्लिका जी ने अपने इमोशंस को नहीं रोका और शब्दों के माध्यम से जो व्यक्त हुआ उस प्रेम में परिपक्वता थी, पवित्रता थी। मैं मानता हूं कि सर्जक जब स्त्री भाव में आता है तभी सर्जन होता है। मैं मल्लिका जी के मनोभावों को समझ सकता हूँ। उनके चैट उपन्यास को भी मैंने पढ़ा है। इस चैट उपन्यास की ऊंचाई भी है, गहराई भी है. उनकी बातें सार्वजनिक संवाद बन गए, दोनों परिवारों ने उनकी दोस्ती को स्वीकारा, यही उन दोनों के जीवन का साफल्य है। इस काव्य संग्रह की प्रकाशन प्रक्रिया में हमारी भावनाएँ भी उनसे जुड़ गई।‘
काव्य-संग्रह के कवर पेज के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि इसमें हमारे देश के राष्ट्रध्वज के जो तीन रंग है- केसरी, सफेद और हरा, उसी को दर्शाया गया है; जो अश्विन जी के देश प्रेम को रेखांकित करता है। अश्विन एक बहुआयामी व्यक्तित्व थे। उनके स्वभाव में साहित्य और कला का जो समन्वय दिखता है, वही उनके प्राण तत्व हैं, और इसी कारण से उनकी प्रतिभा हमारे सामने आई। स्मिता ध्रुव जी ने इन कविताओं का अंग्रेजी में अनुवाद किया और अश्विन जी की पहचान को सारे विश्व में पहुंचा दिया है। यह एक सार्थक प्रयास है। मल्लिका जी ने सच्चे दिल से अपना मित्र भाव निभाया है।
पंकज जी के वक्तव्य के बाद इस काव्य संग्रह की हर कविता में समाहित अश्विन की भावनाओं को चित्रात्मक रूप देने वाले, सुप्रसिद्ध चित्रकार अंकुर सुचक को आमंत्रित किया गया।
मैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यार,
दुख ने दुख से बात की बिन चिट्ठी बिन तार।
निदा फ़ाज़ली इस शेर को दोहराते हुए अंकुर जी ने कहा, ‘कुछ ना कुछ ऐसी बात बनी कि पंकज जी द्वारा, फिर मल्लिका जी द्वारा यह काम मेरे पास आया। एक चित्रकार के रूप में इस काव्य संग्रह से जुड़ने के बाद बहुत आयामों से अश्विन जी को समझने का मौका मिला। वेदना को व्यक्त होने के लिए शब्दों की जरूरत बहुत बाद में पड़ती है, उन्हें जहाँ पहुँचना होता है, पहले पहुँच जाती है। मुझे जानकर आश्चर्य हुआ कि अश्विन जी ने अपनी पढ़ाई अर्थशास्त्र में की है। उन्होंने अभिनय की तालीम ली है और संगीत की तालीम भी ली है। अर्थशास्त्र और कलाशास्त्र का बेहतरीन संतुलन एक आदमी में होना बहुत बड़ी बात है, बहुत बड़ी प्रतिमा है। मल्लिका जी ने जब मुझे फोन पर पूरी बात बताई कि वे किस भावना से उनके मित्र अश्विन मैकवान की कविताओं को पुस्तक का रूप देना चाहती हैं, तो मुझे लगा कि रिश्तो की गरिमा हो तो ऐसी ही होनी चाहिए। अश्विन जी की कविताओं को पढ़ते हुए सोचा कि किस तरह से उनकी भावनाओं को चित्रात्मक बनाया जाए।
सॉलिड जिसको चीज को एक हाथ से दूसरे हाथ में स्थानांतरण करना आसान है, लेकिन कला की किसी भी विधा को जैसे कविता को लिखावट में, सूक्ष्म रूप से ढाला जाता है। जब किसी अमूर्त चीज को मूर्त में ढालते हैं, तब वह ज्यादा एक्सपोज नहीं होनी चाहिए। ठीक उसी तरह चित्र में भी वही गरिमा को रखना होता है। सब कुछ बता देना, सब कुछ लिख देना या सब कुछ चित्रित कर देना कला नहीं है। इशारों इशारों में ही बात पहुँच जानी चाहिए। इस कार्य में मुझे मल्लिका जी का भी काफी सहयोग मिला। अश्विन जी की मनोभूमिका के सबसे ज्यादा करीब थी वे ही थीं। उन्होंने कहा कि अश्विन जी के मन में जो अहमदाबाद है, जैसा अहमदाबाद छोड़कर गए हैं हमें वैसे ही चित्र बनाने हैं। मुझे काफी सरलता महसूस हुई और अंत में एक ऐसी एक ऐसी सुंदर किताब तैयार हुई कि पाठक जब इन कविताओं को पढ़ेगा तो अश्विन जी की भावनाओं के बहुत करीब जाकर, वही भावों को अनुभूत कर पाएगा। भले ही अश्विन जी का देहविलय अमेरिका में हुआ, उनकी सूक्ष्म चेतना अभी अहमदाबाद की भूमि पर, हमारे आसपास है और हम उन्हें हमारी उर्मि की अंजलि दे रहे हैं।
इस भाव भरे वक्तव्य के बाद सुप्रसिद्ध गायिका हिमाली व्यास नायक के सुमधुर स्वर में गुजराती के सुप्रसिद्ध कवि एवं संगीतकार श्री अविनाश व्यास जी की रचना ‘राख ना रमकड़ा मारा रामे रमता राख्या रे…’ का वीडियो प्रस्तुत किया गया, जो अश्विन जी को बेहद पसंद था।
इस अद्भुत गीत के बाद मल्लिका जी की करीबी दोस्त, लेखिका सुश्री नीता व्यास को आमंत्रित किया गया। वे हिमाली व्यास नायक की माँ हैं, संगीत विशारद हैं। उन्होंने कहा, ‘आज मैं बहुत भावुक हो चुकी हूँ । अश्विन जी से मैं कभी मिली नहीं, प्रिय मल्लिका जी के माध्यम से फेसबुक पर उनसे मित्रता हुई। अश्विन से मेरी मैसेंजर के माध्यम से बातचीत होती रहती थी। वे कला एवं संगीत के व्यक्ति थे। मैं फेसबुक पर अपनी बेटी हिमाली के गाने की कोई पोस्ट रखती तो वे जरूर प्रतिक्रिया देते। मुझे हमेशा गुजराती गाने एवं शास्त्रीय संगीत की रिकॉर्डिंग भेजा करते थे। मुझे पता था, उनकी नादुरस्त तबीयत के बारे में। उनके मैसेज में वह हमेशा कहते कि मुझे भारत आना है। कभी वे डायरी में अपने हाथों से लिखी गुजराती कविताएं भी मुझे भेजा करते। उनकी कविताओं द्वारा पता चलता था कि वे अपने देश को कितना मिस करते हैं। बस उन्हें एक बार अपने देश भारत आकर हम सब से मिलने की बहुत इच्छा थी।‘ नीता जी ने उनके द्वारा भेजा गया एक आख़िरी संदेश भी पढ़कर सुनाया जब वे कोलोनोस्कोपी करवा कर लौट रहे थे। उन्होंने लिखा था, ‘आप मेरे लिए दुआ करिए। मुझे अहमदाबाद आना है और गुजराती भोजन का स्वाद लेना है। अहमदाबाद की मिटटी में लोटपोट होना है।‘ नीता जी ने उनसे वादा किया था कि अश्विन जी जब भी अहमदाबाद आयेंगे, जितने भी दिन रहेंगे, उनको गुजराती भोजन खिलाने की जिम्मेदारी उनकी ही रहेगी और सब दोस्त मिलकर उन सभी जगहों पर घूमेंगे जहाँ अश्विन घुमा करते थे। मगर उनका यह स्वप्न अधूरा ही रह गया। वे अपने नश्वर देह को छोड़कर ईश्वर के चरणों में स्थान पाने के लिए रवाना हो गए।
नीता जी ने यह भी कहा कि अश्विन जी का नश्वर देह जरूर मिट्टी में मिला है जो संसार का नियम है, मगर इस मिट्टी से उनके अस्तित्व को, उनके अक्षरों को, उनकी भावपूर्ण कविताओं को मल्लिका जी ने खूबसूरत तरीके से पुस्तक के रूप में देह स्वरूप दिया है, जो हमेशा अमर रहेगा। मल्लिका जी ने सुप्रसिद्ध लेखिका श्रीमती स्मिता ध्रुव जी को इन कविताओं का अंग्रेजी अनुवाद करने के लिए आभार व्यक्त किया। इस अनुवाद से सारे विश्व के लोग अश्विन जी की कविताओं को पढ़ सकेंगे एवं उन्हें जान सकेंगे।
नीता जी के भावपूर्ण वक्तव्य के बाद हिन्दी की सुप्रसिद्ध कथाकार, मल्लिका जी की निकटतम सखी सुश्री निशा चंद्रा जी ने भी अत्यंत भावुक होकर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा, ‘किसी के जाने के बाद उनकी पुस्तक का विमोचन ! ऐसा बहुत कम होता है, इसके लिए मल्लिका बधाई की पात्र है। इस सुंदर अवसर पर अश्विन देह रूप में भले ही हमारे साथ ना हों, पर उनकी प्रेजन्स मैं महसूस कर सकती हूँ। उनकी आत्मा आज ऐसी तृप्ति महसूस कर रही होगी जो कई बार, जीवन होते हुए भी कई लोग प्राप्त नहीं कर पाते हैं। मुझे तुम पर गर्व है मल्लिका, जिस तरह तुमने अश्विन की कविताओं का संग्रह तैयार करके, उसे पुस्तक रूप में प्रकाशित करवाया। प्रेम को एक नया रूप, नया आयाम, नया विस्तार दिया तुमने। “नीरखुं तने मारी कविता नी केडिए” की सभी कविताएं बेहद सुंदर व भावुक कर देने वाली हैं। अपने देश के प्रति प्रेम, देश छूट जाने की पीड़ा, वापिस अपनी मिट्टी में आने की इच्छा, सब कुछ इन कविताओं में समाहित है। सच कहूँ तो अश्विन और मल्लिका के चैट उपन्यास “यू एंड मी… द अल्टिमेट ड्रीम ऑफ लव” और “नीरखुं तने मारी कविता नी केडिए” दोनों पुस्तक पढ़ते समय , अश्विन और मल्लिका दोनों मेरे इर्द गिर्द, मन मस्तिष्क में छाए हुए थे। कभी लगा ही नहीं कि अश्विन को मैं नहीं जानती हूँ! अश्विन जी को बधाई देते हुए निशा जी ने कहा, ‘आज मल्लिका ने तुम्हारे शब्दों को पुस्तक रूप देकर , तुम्हें हमेशा के लिए अमर कर दिया। जब भी लोग इस पुस्तक को पढ़ेंगे,कहेंगे ‘ एक था अश्विन’, ठीक वैसे ही जब आने वाली पीढ़ियाँ “यू एंड मी… द अल्टिमेट ड्रीम ऑफ लव” पढ़ेंगी, तब कहेंगी, ‘एक थी मल्लिका….एक था अश्विन’!