‘राजनीति’, एक ऐसा शब्द है जो न चाहते हुए भी हम सबके जीवन में पूरी तरह प्रवेश कर चुका है। जहाँ देखिए वहाँ केवल और केवल चुनाव की चर्चा! चुनाव से पहले चुनाव की चर्चा और उसके बाद भी वही दृश्य। पहले अनुमान पर चर्चा, फिर परिणाम पर चर्चा। तत्पश्चात विजयी दुंदुभि बजाने के विविध प्रकारों पर चर्चा, हार के कारणों पर चर्चा! वे नागरिक जिन्हें लगता है कि देश में और भी बहुत सी घटनाएं हो रहीं हैं जिन्हें चर्चा का विषय बनाया जाना चाहिए था, तंग आकर उन्होंने अखबार पढ़ना बंद कर दिया है।
मनुष्य अपने मनोरंजन के लिए या कुछ पल सुख से बिताने के लिए चैनल बदलता है लेकिन यहाँ तो हर जगह ही चीखपुकार, उठापटक और गालीगलौज है। चर्चाएं ऐसी, जिनका कोई निष्कर्ष ही नहीं निकलता! गोया वह प्रवक्ताओं को लड़ने के लिए उकसाने के ‘पवित्र’ उद्देश्य को ध्यान में रखकर ही बनाई गईं हों! इसका साक्ष्य कार्यक्रम का नाम ही दे देता है। इतने तूफ़ानी नाम रखे हुए हैं जिन्हें सुनकर ही पता चल जाता है कि अब इस अखाड़े में दंगल ही हो सकता है। यूँ अतिथिगण पूरी तैयारी के साथ ही इस रणभूमि में उतरते हैं। चुनावी मंचों पर सौम्यता, सज्जनता, शिष्टता, नैतिकता और अनुशासन का ज्ञान बाँटने वाले नेताओं के मुखारविंद से जो पुष्प यहाँ झरते हैं उसके आगे सारे मानवीय भाव माथा टेक लेते हैं। उस पर उनकी भावभंगिमाएं और अनूठी शब्दावली! अब इन्हें देख-सुन आपका सिर शर्म से झुक जाए अथवा आप टीवी बंद कर दें; यह आपका निर्णय है। लेकिन सार यह है कि टीवी से मोहभंग होने लगा है। जिस माध्यम का कार्य, खबरें पहुँचाना है वह या तो तमाशा दिखा रहा या न्यायाधीश बना बैठा है।
आम नागरिक के पास मुद्दों की पूरी सूची है, जिन पर बात करने को इक्का-दुक्का चेहरे ही उत्सुक दिखाई पड़ते हैं।
क्या मीडिया का एक बड़ा हिस्सा अपना उत्तरदायित्व भूल बैठा है? क्या उसमें निर्भीकतापूर्वक तथ्य कहने का साहस नहीं बचा? क्या वह अपने मूल्यों, सरोकार और निष्पक्ष पत्रकारिता के तमाम पाठ स्मरण नहीं करना चाहता? यह सब विमर्श का हिस्सा हो सकता है लेकिन उससे भी अधिक आवश्यक यह जानना है कि मलीन राजनीति का आम नागरिकों के मानसिक स्वास्थ्य और सोच पर कितना दुष्प्रभाव पड़ रहा है! राजनीति में शून्य रुचि रखने वाला व्यक्ति भी इससे प्रभावित है। रिश्तों पर इसके प्रतिकूल परिणाम देखने को मिल रहे और कुंठाएं अपने चरम पर हैं। तात्पर्य यह कि वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य से जितनी दूरी बनाई जा सकती है, बनाइए। क्योंकि आम नागरिक के जीवन में यह किसी भी प्रकार का कोई हित नहीं कर रहा। बल्कि तनाव, अनिश्चितता, भय, चिंता, अलगाव, हताशा और अन्य नकारात्मक भावनाओं में वृद्धि ही हो रही है।
सोशल मीडिया और चौबीसों घंटों चलते समाचार चक्र, सूचनाओं के अधिभार के साथ मस्तिष्क पर हावी हो रहे हैं। विविध विचारधाराओं के समर्थक आपस में उलझ रहे हैं। सकारात्मक चर्चा अब होती ही नहीं! अलग-अलग राजनीतिक विचारों वाले व्यक्तियों के लिए घनिष्ठ संबंध बनाए रखना कठिन हो रहा है। विभाजन और संघर्ष की कठोर स्थिति पनप रही जो कि अत्यधिक चुनौतीपूर्ण एवं भावनात्मक रूप से तोड़ देने वाली हो सकती है। कोई आश्चर्य नहीं कि कई तो निराशा एवं गहन उदासी के भंवर में जा भी चुके हैं। सोशल मीडिया पर विभिन्न दृष्टिकोणों के साथ व्यक्तियों को समझना या समझाना लगभग असंभव सा है।
यूँ भी राजनीति एक बहुत ही विवादास्पद विषय है। इससे संबंधित विवाद लोगों के बीच असंतोष का कारण सदा ही बनते आए हैं जो उन्हें तो तनावग्रस्त रखते ही हैं, साथ ही समाज की स्थिरता और शांति को भी खतरे में डालते हैं। यह सत्य है कि दुनिया में क्या हो रहा है, इसके बारे में सूचित रहना महत्वपूर्ण है। यह भी मानती हूँ कि विभिन्न स्रोतों से प्राप्त नकारात्मक समाचारों और सूचनाओं से बचना या दूर रहना भी चुनौतीपूर्ण है, लेकिन फिर भी इस जोखिम को कम करने और अधिक सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करने के लिए कुछ प्रयास तो किए ही जा सकते हैं।
राजनीतिक चर्चाओं के दौर में अपने मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि नकारात्मक सोच प्रायः लोगों को संभावनाओं की बजाय समस्या पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित करती है। इसके परिणामस्वरूप लोग समाधान खोजने के स्थान पर चुनौतियों से हतोत्साहित होने की प्रवृत्ति दर्शाते हैं। यह उनके वैयक्तिक विकास के लिए हानिकारक है।
यही प्रतिकूल सोच, समाज के भीतर विभाजन और संघर्ष को जन्म देती है। जब लोग किसी स्थिति या व्यक्तियों के नकारात्मक पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो उनके ध्रुवीकृत होने और दूसरों को संदेह या शत्रुता की दृष्टि से देखने की आशंका बढ़ जाती है। इससे सामाजिक विखंडन हो सकता है, एकता और सहयोग बढ़ाने के प्रयासों को कमजोर किया जा सकता है।
राजनीति से दूर रहकर कुछ हद तक तनावमुक्त रहा जा सकता है। निरर्थक समय एवं ऊर्जा भी नष्ट नहीं होती। इसलिए यह समय अन्य महत्वपूर्ण उत्पादक कार्यों पर लगाया जाए तो ही अच्छा! स्पष्टतः यह मानसिक शांति और बेहतर स्वास्थ्य की दृष्टि से भी लाभकारी सिद्ध होगा। इसके लिए आवश्यक है कि सचेतन भाव से बिना किसी को जज किए या उसकी बातों से आहत हुए बिना अपने विचारों और भावनाओं के बारे में जागरूक रहा जाए। हम अपने आप को उन लोगों के संपर्क में रखें जो हमारे व्यक्तित्व में निखार एवं जीवन में सकारात्मकता लाते हैं। अकेले हैं तो हम प्रेरणास्पद वीडियोज़ या हास्य कार्यक्रम देखें तथा समाचारों से अपने संपर्क को एकदम सीमित कर दें।
व्यायाम, संतुलित भोजन और पर्याप्त नींद के माध्यम से भी अपने शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य का ख्याल रखना मूड को बेहतर बनाने और नकारात्मक भावनाओं को कम करने में सहायक सिद्ध होता है।
हमें कृतज्ञता का अभ्यास करना चाहिए। ऐसे बहुत लोग हैं जिन्होंने कभी-न-कभी हमारा साथ दिया है, उनके प्रति आभार व्यक्त करने की आदत अपनाएंगे तो हमें भी अच्छा लगेगा और उनके चेहरे पर भी मुस्कान आएगी।
याद रखें कि नकारात्मकता से दूरी बनाना एक दुष्कर यात्रा है और इसके लिए निरंतर प्रयास और अभ्यास की आवश्यकता होती है। कुछ आदतों को अपनी दिनचर्या में शामिल करके ही हम अधिक सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित कर सकते हैं। जहाँ तक राजनीति का प्रश्न है तो यह सर्वविदित है कि मैली राजनीति के बिना दुनिया एक अधिक सुंदर और सामंजस्यपूर्ण जगह होगी, लेकिन ऐसी दुनिया को हासिल करने के लिए इस क्षेत्र में रहने वालों के मूल्यों और व्यवहार में एक महत्वपूर्ण बदलाव की दरकार है। इस बीच आम नागरिकों द्वारा अपने मानसिक स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहते हुए, राजनीति से जुड़े लोगों के सुधरने और मूल्यपरक होने की प्रार्थना ही की जा सकती है।