राजस्थानी और हिंदी के श्रेष्ठ साहित्यकार विजयदान देथा भारतीय साहित्य के लब्धप्रतिष्ठित शख्सियत हैं | उनका जन्म 1 सितंबर 1926 को राजस्थान की सूर्य नगरी जोधपुर के बोरुन्दा गाँव में हुआ | वे ‘बिज्जी’ के नाम से मशहूर हैं | उनकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव के विद्यालय से हुई, उसके बाद आगे का अध्धयन जसवंत कॉलेज जोधपुर से बी.ए. और हिंदी साहित्य में एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की | ‘बिज्जी’ राजस्थानी व हिंदी साहित्य के श्रेष्ठ कहानीकारों की श्रेणी में अग्रन्य हैं | उन्होंने राजस्थानी लोककथाओं को नवीन आसमान पर पहुँचाया |
लोकभाषा की लय, गेयता को ही नहीं लोक की सूक्ष्मातिसूक्ष्म जीवन दृष्टि को भी उन्होंने समझा है | इनके साहित्य में लोग चिंतन, परंपरा, मानवीय व्यवहार, राजस्थानी संस्कृति और राजस्थानी भाषा को महत्व आदि देखने को मिलता है | ‘बिज्जी’ बचपन से ही गाँव के बड़े-वृद्ध व्यक्तियों द्वारा सुनायी जाने वाली लोककथाओं को गहन रुचि से सुनते थे | मौखिक परंपरा में चल रही अनेक कथाओं और कहानियों को नवीन रूप देते थे | उन लोककथाओं में ‘बिज्जी’ कुछ अपनी मौलिकता का प्रयोग कर प्रासंगिक रूप में प्रस्तुत करते थे | उन्होंने लुप्त हो रही पौराणिक लोककथाओं को जीवनदान दिया और उनको हमेशा के लिए अमर कर दिया | आधुनिकता की कठिनाइयाँ और लोक संस्कृति को जिस प्रकार से बिज्जी ने साहित्य में रचा है वैसा विरल ही है | उन्होंने साहित्य सृजन का कार्य हिंदी से शुभारम्भ किया | उन्होंने राजस्थान की लोककथाओं का संग्रह का ऐतिहासिक कार्य किया – ‘बाताँ री फुलवारी’ के रूप में 14 भागों में प्रकाशित किया | हिंदी में उनकी प्रसिद्ध कहानियाँ – दुविधा, उलझन, अन्तराल, उजाले के मुसाहिब आदि | ‘रूंख’ रचना में ‘बिज्जी’ का आत्मकथात्मक परिचय मिलता है | राजस्थानी लोक गीतों का संग्रह, ‘अलेखूं हिटलर’ राजस्थानी कहानी संग्रह, प्रमुख उपन्यास – ‘महामिलन’, ‘प्रतिशोध’ है | बिज्जी ने प्रेरणा, परंपरा, वाणी, रूपम, लोक संस्कृति आदि पत्रिकाओं का संपादन किया |
पद्मश्री सम्मान से सम्मानित, राजस्थानी भाषा का प्रथम साहित्य अकादमी पुरस्कार(1974) से पुरस्कृत , बिहारी पुरस्कार, राजस्थान रत्न आदि अलंकारों से बिज्जी को अलंकृत किया गया हैं |
‘उजाले के मुसाहिब’ ‘बिज्जी’ की महत्त्वपूर्ण कहानी है | ‘मुसाहिब’ शब्द से तात्पर्य है – परामर्शदाता, सलाहकार या खुशामद करने वाला | इस कहानी के माध्यम से सामंतवादी विचारधारा की व्यवस्था पर करारा प्रहार किया गया है | यह कहानी लोककथा पर आधारित प्रतीकात्मक रूप में है | इस कहानी में तत्कालीन शासन-व्यवस्था तथा मूर्ख-बुद्धिहीन राजा पर व्यंग्य है | इसमें शिक्षा और ज्ञान के महत्तव को समझाया गया है | इस कहानी की शुरुआत चकवा-चकवी के संवाद से होती है | चकवा चकवी को एक ऐसे राज्य की कहानी सुना रहा है जिसमें राजा अज्ञानी , बुद्धिहीन होता है और उसके दरबार के नवरत्न भी वैसे ही होते है – राजा की चाटुकारिता करने वाले | अगर राजा दिन को रात कहता है तो नवरत्न भी दिन को रात मानने को तैयार रहते है | दरबारी नवरत्न राजा के अंधभक्त है | राजा को अपने दरबारियों पर बहुत अभिमान था | उस राज्य में ऋषि, मुनि, औघड़, महात्मा व संत-ज्ञानियों का तांता लगा रहता है | ‘एक बार साधु-संतों का सिरमौर, ज्ञानियों का गुरु एक तीर्थंकर ऐसा प्रकट हुआ कि राजा सहित तमाम दरबारियों की बुद्धि चकरा गयी | मानो प्रत्यक्ष परमेश्वर ही अवतरित हुआ ….सबका जीवन एक साथ ही सार्थक हो जाएगा |’ महान गुरु तीर्थंकर ने प्रवचनों ने सब का मन-मोह लिया | जनता इस दिव्य पुरुष के प्रवचन सुनकर अपने जीवन को सार्थक बनाना चाहती थी | महात्मा लोगों से प्रवचनों के माध्यम से विनती करते हैं कि अँधेरे को दूर कर अपने जीवन में प्रकाश जगमगाए अर्थात् ज्ञान रूपी प्रकाश फैलाये | उनका मानना है कि केवल चिरन्तन प्रकाश से ही मनुष्य जीवन सार्थक होगा | अंधियारा अज्ञानता का प्रतीक है |
प्रवचनों के उपरांत राजा और दरबारियों ने महात्मा से विनती की, प्रसाद ग्रहण करें लेकिन महात्मा ने राजा से कहा है – तुम्हारे राज्य में अँधेरा बहुत है | ‘राज्य का अँधियारा मिटने पर ही वे बिन-बुलाये सर के बल चले आएँगे | तब तक वे इस धरती पर पानी की बूँद तक नहीं चखेंगे |’
राजा महात्मा की बात पर अमल करने का प्रयास करने लग जाते हैं | राजा अपने दरबारियों के साथ मिलकर अंधियारा दूर करने का विचार बनाने लगे, राजा अपने मन में सोच रहे है कि सिहांसन, मुकुट और राज उसी दिन सार्थक होंगे | जब चिरंतन प्रकाश की बात जानकार महात्मा सोने के थाल में प्रसाद ग्रहण करेंगे | महात्मा के विचारों में दूरदर्शिता झलकती है और राजा के संवादों में मूर्खता और अदूरदर्शिता | महात्मा के संदेश का प्रमुख उद्देश्य – उस राज्य के मुसाहिबों की अज्ञानता, अंधकार, मूर्खता को ज्ञान के माध्यम से दूर कर उजियारा जगमगाना |
राजा अपने राज्य को चिरंतन प्रकाश से जगमगाने हेतु निम्न प्रयास करते हैं –
१.अँधेरे को उलीचना का कार्य – राजा कहता है कि – ‘तीन साल पहले राजमहल के तहखाने में बाढ़ का पानी भर गया था | उसे उलीच- उलीच कर बाहर निकाल दिया था | अगर उसी तरह अंधेरे को उलीचने पर समाप्त हो जाएगा |’ राजा के आदेश के मुताबिक दीवान और प्रजा अँधेरे को उलीचने के कार्य में लग जाती है | सूर्योदय होने से उन्हें लगता है कि हमारे द्वारा उलीचने से अँधेरा समाप्त हो गया | मूर्ख राजा यह समझ नहीं पा रहा है कि शाश्वत सत्य को कौन- कैसे बदल सकता है | दैनन्दिनी प्रकिया के तहत वापस चंद्रमा के उदित होने पर चारों ओर अँधेरा फ़ैल जाता है | राजा इस असफल प्रयास से हताश नहीं होता है बल्कि दूसरी योजना बनाने लग जाता है जिससे अँधेरे को हमेशा- हमेशा के लिए इस राज्य से दूर कर सके |
२. कलई पोतना – राजा अपनी तीक्ष्ण बुद्धि का उपयोग कर कहता है कि – जैसे रसोई की दीवारें ईधन के धुएं से काली हो जाती है, तो हम उसे कलई से पोतकर सफेद कर लेते है | उसी प्रकार रसोई के धुएं की तरह अंधेरे को पोतने से वह सफेद हो जाएगा | राजा के इस दूसरे कार्य को सफल बनाने में प्रजा और दरबारी- गण लग जाते है – कई दिनों तक यह कार्य किया जाता है | असफलता ही हाथ लगती है – दिन के खत्म होते ही अँधेरा वापस कायम हो जाता है |
३. मशालों से अँधेरे को जलाना – इस बार राजा वापस अपने नवरत्नों के साथ मिलकर योजना बनाता है – अगर मशाल जलायी जाये तो अवश्य ही उजियारा हो जायेगा और अँधेरा छट जायेगा | सब लोग राजा की आज्ञा की पालना करते हुए – मशालें जलाने का कार्य करते है | क्या करे ? अँधेरे को जलाने का उपाय भी असफल हो जाता है |
४. सूरज की किरणों को बाँधने का कार्य – नासमझ राजा एक बार फिर उजियारा जगमगाने के लिए विचार करते हुए प्रजा को आदेश देता है कि जैसे बलशाली हाथी को साँकल से बाँधकर काबू किया जाता है उसी तरह सूरज की किरणों को जकड़ कर बाँधने से अँधेरे को फैलने से रोका जा सकता है | इस कार्य से भी निराशा ही हाथ लगी |
५. अंत में पंडितों की राय – आख़िर में पंडितों द्वारा मूर्ख राजा को यह राय दी जाती है – अँधेरे के विनाश हेतु शंकर भगवान के नंदी जितना प्रचंड सोने का सांड पंडितों को दान करना होगा और साथ में सात दिन का अखंड मौन रखना होगा, साथ ही गणेश भगवान के चूहे का दान ही करना होगा और नगर के भीम तालाब में सतह से सवा हाथ नीचे सात घोंसले खुदवाये | जब उन घोसलों में शकून चिड़िया अलग-अलग अंडे देगी तब आपका कोई उपाय व्यर्थ नहीं होगा |
मूर्ख राजा अपने राज्य की वास्तविक समस्या को समझ नहीं पाया | सिर्फ बाहरी दिखावे के बेबुनियाद प्रयास कर रहा है | राजा को अँधेरे अर्थात् अज्ञानता को समझते हुए ज्ञान व शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करना था | कहानी प्रासंगिकता प्रकट कर रही है कि समाज और देश की उन्नति बाह्य दिखावे से नहीं होगी | हमारे देश की सरकार को लोगों के वास्तविक कष्टों समझना होगा और उन समस्याओं को दूर करने के लिए प्रभावी योजनाओं को लागू करना होगा ,जिससे देश उन्नति करें |
इस कहानी के माध्यम से यह सिखने को मिलता है कि – मनुष्य अपने स्वयं के अंधकार, अज्ञानता को देखे और अंतर्मन के अंधकार को दूर कर चिरंतन प्रकाश का संचार करें | राजा मूर्खता और अज्ञानता का परिचय दे रहा है | अँधेरा /अज्ञानता तो मनुष्य के मन में अवस्थित है- ईर्ष्या, अहंकार, झूठ, स्वार्थ आदि का मनुष्य द्वारा अगर त्याग कर दिया जाए तो सर्वत्र प्रकाशमय हो जाएगा |