1.
अजब कह रहे हैं ग़ज़ब कह रहे हैं
जो कहना नहीं था वो सब कह रहे हैं
अभी था जो कहना तो चुप से हैं बैठे
जो कल था बताना वो अब कह रहे हैं
जो ख़ुद से ही देखो ख़ुदा बन गया है
सभी लोग उसको ही रब कह रहे हैं
हमें ये लगा था कि क्या ज़िंदगी है
वो जीने का इसको ही ढब कह रहे हैं
हमें रात को दिन समझना पड़ेगा
वो दिन को जो देखो तो शब कह रहे हैं
महब्बत हुई है नहीं ज़ुर्म कोई
बनी जान पर जब वो तब कह रहे हैं
नज़र ने नज़र को दिवाना किया है
भला क्यूँ वो दिल को सबब कह रहे हैं
सिखाई है हमने जिन्हें भी महब्बत
हमारा सबक़ रोज़-ओ-शब कह रहे हैं
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2.
अक़्ल से काम लेते रहते हो
दिल के पैग़ाम लेते रहते हो
क्यूँ मिलाते नहीं नज़र से नज़र
कौन सा जाम लेते रहते हो
ये तिजारत भी ख़ूब हो करते
हुस्न का दाम लेते रहते हो
बैठे रहते हो मय-कदे में अब
मय सर-ए-आम लेते रहते हो
यूँ ख़तावार हैं निगाहें पर
दिल पे इल्ज़ाम लेते रहते हो
मुझको मा’लूम है कि नींद में भी
तुम मेरा नाम लेते रहते हो