यात्रा-वृतांत
असम के पर्यटन स्थल
असम पूर्वोत्तर का सबसे बड़ा प्रदेश है I महाभारत में असम का उल्लेख प्रागज्योतिषपुर के रूप में मिलता है। कालिकापुराण में भी कामरूप – प्रागज्योतिषपुर का वर्णन है। इसकी राजधानी दिसपुर, गुवाहाटी है I गुवाहाटी पूर्वोत्तर का सबसे बड़ा शहर है I गुवाहाटी को पूर्वोतर का प्रवेशद्वार कहा जाता है I असम का क्षेत्रफल 78,438.00 वर्गकिलोमीटर तथा कुल जनसंख्या 31,169,272 है जिनमें पुरुषों की संख्या 15,954,927 एवं महिलाओं की संख्या 15,214,345 है I जनसंख्या का घनत्व ( प्रति वर्गकिलोमीटर ) 397 है I लिंग अनुपात ( प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या ) 954 और साक्षरता 73.18 प्रतिशत है I
असम के प्रमुख शहर गुवाहाटी, डिब्रूगढ़, डिगबोई, तिनसुकिया, तेजपुर, सिलचर, ग्वालपाडा, जोरहाट, धुबरी, नगांव, बोंगाईगांव, दिफु, हाफलोंग है I असमिया असम की प्रमुख भाषा है। यहां बांग्ला और हिंदी भी बोली जाती है। इनके अतिरिक्त राज्य की अन्य भाषाएं हैं- बोड़ो, कार्बी, मिसिंग, राभा, मीरी आदि I
प्रागज्योतिषपुर के राजा नरकासुर का उल्लेख अनेक ग्रन्थों में मिलता है। नरकासुर बहुत पराक्रमी राजा था। “वराह अवतार में विष्णु ने पृथ्वी से संभोग किया था जिससे पृथ्वी के गर्भ से नरकासुर की उत्पत्ति हुई थी। यह प्रागज्योतिषपुर का राजा था। इसने अनेक राजाओं, ऋषियों की स्त्रियों का अपहरण किया था। यही नहीं, यह अदिति के कुंडल, वरुण का छत्र भी लेकर भागा और इंद्र से ऐरावत लेने की याचना करने लगा। इंद्र की प्रार्थना पर कृष्ण ने इसे चक्र से काट डाला।” (हिन्दी साहित्य कोश, भाग -2 सं – धीरेन्द्र वर्मा)
असम में स्थित मंदिर हमारी संस्कृति की प्राचीनता तथा आध्यात्मिक विरासत के जीवंत प्रतीक हैं। सदियों पुराने यहां के अधिकतर प्रमुख मंदिर विभिन्न पुराणों में वर्णित पूर्वोत्तर भारत की सांस्कृतिक गौरवगाथा का मूर्त रूप प्रस्तुत करते हैं। सुविख्यात शक्तिपीठ मां कामाख्या मंदिर गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से आठ किलोमीटर दूर नीलाचल पहाड़ पर स्थित है। इस शक्तिपीठ का वर्णन समुद्रगुप्त के इलाहाबाद स्तंभ पर भी अंकित है। सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली मां शक्ति यहां कामाख्या के रूप में विद्यमान हैं। सहस्त्राब्दियों पूर्व यहां स्थापित मूल मंदिर 16वीं शताब्दी के आरंभ में ही ध्वस्त हो गया था। इसके बाद 17वीं शताब्दी में कूचबिहार के राजा नरनारायण ने इसका पुनर्निर्माण कराया I मंदिर परिसर में खुदे कुछ अभिलेखों से ऐसे संकेत मिलते हैं। इस पर्वत पर ही तारा, भैरवी, भुवनेश्वरी और घंटाकर्ण के मंदिर भी मौजूद हैं। इस शक्तिपीठ के संबंध में अनेक पौराणिक आख्यान प्रचलित हैं।
गुवाहाटी में ब्रह्मपुत्र के बीच मयूरद्वीप में प्राचीन शिवमंदिर उमानंद है। भस्माचल पर्वत पर स्थित इस स्थान का संबंध भगवान शिव द्वारा कामदेव को भस्म किए जाने से है। इस सिद्धस्थल पर मंदिर का निर्माण 17वीं सदी में आहोम शासक गदाधर सिंह ने करवाया था। हालांकि उनका बनवाया हुआ मंदिर एक भूकंप के दौरान ध्वस्त हो गया था। बाद में बीसवीं शताब्दी के आरंभ में यहां फिर से मंदिर का निर्माण करवाया गया। इस द्वीप को उर्वशी द्वीप भी कहते हैं। यहां उर्वशी कुंड भी है।
गुवाहाटी स्थित नवग्रह मंदिर एक प्रमुख पर्यटन स्थल है I ऐसा माना जाता है कि नवग्रह मंदिर को 18वीं शताब्दी में अहोम राजा राजेश्वर सिंह और बाद में उनके बेटे रुद्र सिंह या सुखरुंगफा के शासन काल में बनवाया गया था। 1897 में इस क्षेत्र में आए भयानक भूकंप में मंदिर का काफी बड़ा हिस्सा नष्ट हो गया था। हालांकि बाद में लोहे के चदरे की मदद से इसका पुननिर्माण किया गया। ऐसा माना जाता है कि गुवाहाटी के पुराने नाम प्रागज्योतिषपुर की उत्पत्ति मंदिर में स्थित खगोलीय और ज्योतिषीय केन्द्र के कारण ही हुई है।
मंदिर परिसर में बना सिलपुखुरी तालाब भी यहां का एक प्रमुख आकर्षण है। यह तालाब पूरे साल भरा रहता है। शहर के अन्य हिस्सों से यह मंदिर अच्छे से जुड़ा हुआ है।
इसके अलावा श्रीमंत शंकरदेव कलाक्षेत्र, बालाजी मंदिर, साइंस म्यूजियम, वशिष्ठ आश्रम, राज्य का संग्रहालय, चिडि़याघर, तारामंडल, ब्रह्मपुत्र पर सराईघाट पुल, गुवाहाटी ऑयल रिफाइनरी, ललित बरफुकन पार्क, 40 किलोमीटर दूर मदन कामदेव तथा गुवाहाटी विश्वविद्यालय भी दर्शनीय स्थल हैं।
उत्तर- पूर्वी भारत के युगांतरकारी महापुरुष श्रीमंत शंकरदेव की पुण्यभूमि के रूप में ख्यात माजुली द्वीप विश्व का सबसे बड़ा नदी द्वीप है I यह असम में जोरहाट के निकट ब्रह्मपुत्र नदी में अवस्थित है I इस द्वीप पर श्रीमंत शंकरदेव का स्पष्ट प्रभाव महसूस किया जा सकता है I इस द्वीप का निर्माण ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों मुख्यतः लोहित द्वारा धारा परिवर्तित करने के कारण हुआ है I समृद्ध विरासत, पर्यावरण अनुकूल पर्यटन और आध्यात्मिकता के कारण माजुली देशी – विदेशी पर्यटकों के लिए आकर्षण का प्रमुख केंद्र बन गया है I यह द्वीप पक्षियों के लिए स्वर्ग है I कार्तिक पूर्णिमा के समय आयोजित होनेवाली रासलीला के अवसर पर यहाँ असमिया संस्कृति जीवंत हो उठती है I इस अवसर पर पारंपरिक नृत्य, गीत और नाटिका की प्रस्तुति पर्यटकों का मन मोह लेती है I यहाँ की संस्कृति और नृत्य – गीत पर आधुनिकता का कोई प्रभाव नहीं पड़ा है I वैसे तो बरसात को छोड़कर कभी भी इस द्वीप का भ्रमण किया जा सकता है लेकिन जिन्हें असमिया संस्कृति की झलक देखनी हो उन्हें रासलीला के समय अवश्य आना चाहिए I
गुवाहाटी से 185 किमी की दूरी पर स्थित असम का तेजपुर नगर पौराणिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण है I तेजपुर नगर शोणितपुर जिले में स्थित है I यहाँ अवस्थित अग्निगढ़ का किला उत्तर पूर्वी भारत के प्रणय स्थल के रूप में विख्यात है I इस किले का निर्माण वाणासुर द्वारा किया गया था I किले के चारों ओर अहर्निश अग्नि प्रज्वलित होती रहती थी ताकि कोई शत्रु किले के अन्दर प्रवेश न कर सके I तेजपुर नगर (शोणितपुर) भगवान श्रीकृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध और वाणासुर की पुत्री राजकुमारी ऊषा के प्रेम का साक्षी है। अपने पिता की इच्छा के विपरीत ऊषा ने अनिरुद्ध का वरण किया था। इसके परिणामस्वरूप श्रीकृष्ण और वाणासुर के बीच भीषण युद्ध हुआ था। युद्ध इतना भीषण था कि रक्त से पृथ्वी लाल हो गई I (तेज =रक्त, शोणित = रक्त ) अंततः युद्ध में वाणासुर परास्त हुआ तथा अनिरुद्ध व ऊषा का विवाह हुआ।
गुवाहाटी से 353 किलोमीटर दूर असम का एक मात्र हिलस्टेशन हाफलौंग है। अत्यंत रमणीक और हरे-भरे इस क्षेत्र में पहाड़ों से खेलते हुए बादल पैरों के बीच अठखेलियाँ करते हैं। समुद्र तल से 680 मीटर की ऊंचाई पर स्थित हाफलोंग प्रकृति प्रेमी पर्यटकों के लिए एक आकर्षक पर्वतीय स्थल है I यह स्थल फलों और फूलों की असंख्य प्रजातियों के कारण मशहूर है I हाफलोंग में फूलों की दो लाख से अधिक प्रजातियाँ पाई जाती हैं I इससे नौ किलोमीटर दूर जटिंगा नामक स्थान पर हर साल अगस्त से नवंबर के बीच प्रवासी पक्षी आकर डेरा डालते हैं। यहां पक्षियों की रहस्यमय मृत्यु होने के कारण जटिंगा विशेष रूप से जाना जाता है। प्राकृतिक सौंदर्य और बौद्धमठों के लिए प्रसिद्ध बोमडिला व तवांग जाने के लिए हाफलौंग को प्रवेशद्वार माना जाता है।
गुवाहाटी से लगभग 225 किलोमीटर तथा जोरहाट हवाई अड्डे से 97 किलोमीटर की दूरी पर स्थित काजीरंगा एक प्रमुख अभयारण्य है I पार्क के अंदर हाथी पर चढ़कर या जीप में बैठकर घूमा जा सकता है। काजीरंगा के जंगलों में हाथी पर जाना बेहतर होता है। गैंडे के अलावा यहां हाथी, भारतीय जंगली भैंसे, सांभर, विभिन्न प्रकार के हिरन, शेर, तेंदुआ, जंगली बिल्ली आदि देखने को मिल सकते हैं। जंगल में कई छोटे-बड़े तालाब हैं जिनकी गहराई कम है। कई तरह के पक्षी भी यहां रहते हैं। हंस, धनेश, साधारण बगुले खूब दिखते हैं।
असम का शिबसागर ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल है I यह ऐतिहासिक नगर पहले रंगपुर के नाम से विख्यात था I इस ऐतिहासिक नगर को अहोम राजाओं की राजधानी होने का गौरव प्राप्त है I यह वर्ष 1699 से 1788 तक अहोम राजाओं की राजधानी था I अंग्रेजों के आगमन के पूर्व लगभग छह सौ वर्षों तक अहोम राजाओं का शासन था I अहोम राजाओं के शासन काल में शिबसागर शासन – प्रशासन का प्रमुख केंद्र था I रंग घर, शिबसागर ताई संग्रहालय, तलातल घर, शिव डोल, विष्णु डोल, देवी डोल, अजान पीर दरगाह इत्यादि शिबसागर के महत्वपूर्ण ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल हैं जो पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं I शिव डोल मंदिर भारत के सबसे ऊंचे शिव मंदिरों में से एक है I इसका निर्माण लगभग 300 वर्ष पहले रानी अम्बिका द्वारा कराया गया था I यह 180 फीट ऊंचा है I शिव डोल मंदिर के आस – पास विष्णु डोल और देवी डोल मंदिर स्थित है जो क्रमशः विष्णु एवं दुर्गा को समर्पित हैI
– वीरेन्द्र परमार