फ़िल्म जगत
भोभर की आग में जलता एक फ़िल्म निर्देशक – बातचीत ( गजेंद्र श्रोत्रिय से तेजस पूनिया की बातचीत)
हिन्दुस्तान में बॉलीवुड का क्रेज हर आदमी के दिल में है। भारतीय सिनेमा है ही कुछ ऐसा की यह हमें दिन भर की थकान और टेंशन से दूर रखने का शानदार मनोरंजन जो प्रदान करता है। साथ ही हमारे बीच से ही ऐसी कई कहानियाँ कही जाती हैं कि उन्हें पर्दे पर देख कर ही हम पुरसुकून होते रहते हैं। बॉलीवुड की तर्ज पर ही क्षेत्रीय भाषाओं में भी फ़िल्में बननी लगी थीं परन्तु उसकी अपेक्षा श्रेत्रीय भाषाओं में बनने वाली फ़िल्में यदा कदा ही कालजयी सिनेमा का उदाहरण प्रस्तुत कर सकी हैं। ख़ास करके राजस्थानी सिनेमा। इसके पीछे एक बड़ा कारण सरकार का उदासीपूर्ण रवैया है तो वहीं युवाओं और ख़ास करके अभिनय में रूचि रखने वालों के दिल में बॉलीवुड के प्रति बेइंतहां मोहब्बत और प्यार।
खैर हाल ही में पटाखा फिल्म रिलीज हुई जिसके लेखक थे राजस्थान के चरण सिंह पथिक। और फिल्म का निर्देशन किया विशाल भारद्वाज ने। इस बार लेखक वही हैं पर उनकी कहानी दूसरी है और निर्देशक भी दूसरे। चरण सिंह पथिक की कहानी पर आधारित गजेन्द्र श्रोत्रिय फिल्म बना चुके हैं जिसका टाईटल है “कसाई” फिल्म के निर्देशक से हुई बातचीत के कुछ अंश –
फिल्म की मूल कहानी के बारे में गजेन्द्र कहते हैं – कि यह दरअसल एक पॉलिटिकल ड्रामा है और यह पूर्वी राजस्थान के ग्रामीण इलाकों से निकली हुई कहानी है। इस कहानी में राजनीति की महत्त्वाकांक्षा की आड़ में प्रेम का गला घोंटने की कहानी भी है। इसके साथ-साथ एक माँ के संघर्षों की दास्तान भी है जहाँ पिता उसके सामने ही अपने ही बेटे को मार देता है। उसके बाद उस क्राइम को ढकने छुपाने का खेल भी चलता है और यह सब कहीं न कहीं उस राजनीति से भी प्रभावित होता है।
फिल्म का शीर्षक ‘कसाई’ रखने रखने की बात के जवाब में वे कहते हैं – यूँ तो हर किसी के अंदर कसाई होता ही है। एक इंसान अपने भीतर एक ग्रे और गॉड कैरेक्टर लेकर चलता ही है। यानी अच्छा और बुरा हर किसी के भीतर होता ही है लेकिन वह उसकी जरूरत के अनुसार निकल कर आता है। आदमी के अंदर के छुपे हुए इस कसाई को उसके भीतर छुपी हुई इवल स्पिरिट (शैतानी ताकत) को भी कहा जाता है तो मूल रूप से उसे ही दिखाने का प्रयास है।
सॉफ्टवेयर कम्पनी से सिनेमा तक की यात्रा और किस बात ने सिनेमा बनाने के लिए प्रभावित और प्रेरित किया के जवाब में निर्देशक गजेन्द्र श्रोत्रिय कहते हैं कि – मूलत: मेरा रुझान पिछले 10 सालों से है फिल्मों में और सॉफ्टवेयर कम्पनी भी हमारी ही है और उसमें मेरी भी हिस्सेदारी है। 2011 में हमने एक फीचर फिल्म भी बनाई भोभर नाम से और इसके साथ-साथ कुछ और काम भी चल रहे थे। मुम्बई मंत्रा सिनेराइजिंग में भी स्क्रिप्ट शार्ट लिस्ट हुई इसी तरह से काम चलता रहा। सॉफ्टवेयर कम्पनी में काम करते समय कुछ सोफ्टवेयर बनाने पड़ते थे और उनके प्रदर्शन के लिए कुछ टूल्स भी ऐसे इस्तेमाल करता था जिनमें एडिटिंग का काम हो। उसी से एक रुझान बना और वीडियो एडिट करना शुरू किया और यहीं से कहानी लिखने , फिल्माने का क्रेज बढ़ने लगा। फैशन और सिनेमा के ब्लॉग के माध्यम से अनुराग कश्यप से मिलना हुआ। वहाँ भी 2-3 साल पहले एक मिनट की फिल्म की प्रतियोगिता में सलेक्ट हुआ। बस कुछ इसी तरह से धीरे-धीरे सिनेमा के प्रति रुझान बढ़ा।
फिल्म के निर्देशन और एक्टिंग से जुड़े कोर्स करने की बात पर भी गजेन्द्र जी कहते हैं कि – मैं विशुद्ध रूप से फिल्म मेकर स्वप्रशिक्षित हूँ और एक्टर अप्रशिक्षित हूँ बस सिनेमा देख देख कर सीखा है जो कुछ सीखा है । इसके अलावा मैं बहुत सारी पुस्तकें भी पढ़ता हूँ । और इधर उधर से जानकारी हासिल करता रहता हूँ ।
राजस्थानी सिनेमा को बाकि क्षेत्रीय भाषाओं के मुकाबले वह मान-सम्मान नहीं मिल पाया है इस सन्दर्भ में वे कहते हैं कि – मूलत: 70 और 80 के दशक में राजस्थानी सिनेमा बहुत चला लेकिन उसके बाद आए एक बड़े अंतराल ने इसे पूरी तरह झकझोर कर रख दिया और बैकफुट पर ला पटका। उस अंतराल और गैप के पीछे भी कई कारण रहे । हालांकि पहले कई ब्लॉकबस्टर फ़िल्में भी बनी। बाद में दर्शक बॉलीवुड से जुड़ने लगी यह भी एक कारण रहा और अब इस ऑडिएंस को बॉलीवुड की थीम्स पर ही यह ले आया। राजस्थानी सिनेमा ने बॉलीवुड के समानांतर ही अपने आप को खड़ा किया है। इसकी अपेक्षा वो अपना कुछ नया लाते और दर्शकों वही सब देखना है तो वे उसे ही देखेंगे राजस्थानी क्यों? किसी न किसी को लगातार इस क्षेत्र में काम करना ही होगा वे उसे कॉपी करने के बजाए कुछ नया लेकर आए।
राजस्थान की सबसे प्रसिद्ध फिल्म है “नानी बाई को मायरो” रही है इस तरह की फिल्म बनाने वाले निर्देशक या लेखकों में आपका कोई पसंदीदा है? इस प्रश्न के जवाब में गजेन्द्र श्रोत्रिय कहते हैं कि – “नानी बाई को मायरो” या “बाबा रामदेव” पर आधारित कहानियाँ हमारे यहाँ पहले से चर्चित रही हैं। उनमें कुछ प्रेम कहानियाँ , हवेलियाँ , अमीर- गरीब और धार्मिक कहानियाँ हैं और उन पर कई सभाएँ भी होती हैं। तो उसी पर आधारित सिनेमा बनता है तो एक कनेक्शन जरुर जुड़ता है। और उसके बाद जब टी० वी० आया तो उसका भी प्रभाव इस पर पड़ा कि लोगों का रुझान इस तरफ़ कम होता गया। इसके अलावा मेरा कोई पसंदीदा या इस लीक पर चलने वाला कोई ऐसा मुझे दिखा नहीं। कुछ युवा है जो अच्छा काम कर रहे हैं लेकिन अभी उनका काम सामने नहीं आ पाया है।
अंत में कसाई फिल्म के बाद आगे की प्लानिग के बारे में निर्देशक कहते हैं कि नवम्बर से इसका फिल्म फेस्टिवल वाला कार्यक्रम शुरू होगा जो तकरीबन एक साल तक चलेगा उसके बाद ही हम इसे बड़े पर्दे पर रिलीज कर पाएंगे। उम्मीद है अगले साल के अंत तक सिनेमाघरों में फिल्म होगी।
कसाई फिल्म का निर्देशन कर रहे गजेन्द्र श्रोत्रिय ने इससे पहले कई शार्ट फ़िल्में भी बनाई हैं। रामकुमार सिंह की कहानी पर आधारित फीचर फिल्म भोभर ने तो कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मान भी हासिल किए थे और उस भोभर की आग आज भी राजस्थानी सिने प्रेमियों के दिलों में सुलग रही है ।
– तेजस पूनिया