मूल्यांकन
यादों के दाने समेटती तुरपाई: तेजस पूनिया
हिंदी साहित्य के आदिकाल से लेकर आज तक इस तरह की पुस्तक पहली बार पढ़ रहा हूँ, जिसमें गद्य और पद्य दोनों शामिल हैं। आदिकाल से लेकर अब तक के दो हजार वर्षों से भी अधिक के दीर्घाकालिक इस दौर में गद्य और पद्य लिखने के कारण कई क्रांतियों ने जन्म लिया। साहित्य में तो निरंतर बदलाव आते ही गए समाज, राजनीति में भी बदलाव आने शुरू हुए। आदिकाल में जहाँ चारण कवि थे तो भक्तिकाल में ईश्वर केंद्र में था। इसी तरह वर्तमान में हिंदी मूल रूप से केंद्र में है, वह भी आसान और बोलचाल की भाषा के रूप में ताकि हिंदी साहित्य सभी तक सर्व सुलभ होने के साथ-साथ पढ़ा जाने योग्य भी हो।
कवि ओम नागर की पुस्तक तुरपाई गद्यात्मक और पद्यात्मक दोनों रूपों में लिखी गई ऐसी ही रचना है। यूँ तो तुरपाई का अर्थ होता है कहीं फ़टे हुए कपड़े को सिलना लेकिन प्रेम की कुछ बातें और कुछ कविताओं के साथ यह पुस्तक प्रेम को सिलना सिखाती है। ‘एक बात जो तुमसे कहनी थी’ शीर्षक गद्य की शुरुआत में ओम नागर लिखते हैं – “आज पहली बारिश हुई तो धरती की खुशबू का पता मिला। धरती की इस सौंधी गंध से तुम्हारी भी साँसे महकने लगी होगी ना, सच बताना। जैसे फूल खिलते हैं, वैसे ही साँसें भी खिलती हैं। पहली बारिश में धरती-सी गंध तुम्हारी साँसों में भी आती है।” इन्ह पंक्तियों की शुरुआत से ही एक कवि हृदय व्यक्ति जब गद्यात्मक लिखता है तब उसमें भी पद्य की सौंधी महक सी आने लगती है। इन पंक्तियों से मालूम होता है कवि ने प्रेम को बहुत नजदीक से महसूसा है। बारिश और प्रेम का यह संगम अद्भुत है।
कविता “यहाँ सारी संख्या सम है तुम्हारा रूठना विषम” में साँसों का चलना हो या दिनों का रोज उगना-रोज ढलना उन सब में कवि प्रेमिका का केवल साथ चाहता है कि वह सांझ तलक उसके साथ यूँ ही चले। प्रेमी की आँखें, दिन , कान हृदय का स्पंदन सब कुछ कवि अपने नाम कर लेना चाहता है। उसे दुनियावी गणित से कोई सरोकार नहीं है क्योंकि वह तो प्रत्येक क्षण हल होते होते उलझ जाती है। कवि प्रेमिका को हातिम के साथ मिलकर सात सवालों के हल ढूंढना चाहता है उन सात सवालों के हल जो कहीं दुनियावी भीड़ में दफन हो गए हैं।
“ट्रेन का सफ़र और बर्थवाला इश्क” तो यूँ लगता है जैसे यह घटना कवि के सामने घटित हुई हो। ओम नागर लिखते हैं – “कभी-कभी हालात-ए-हाजरा ऐसे पेश आ जाते हैं कि ट्रेन में सीट कन्फर्म न हो और पहुँचना लाजमी हो तो डिब्बे में घुस जाना ही अक्लमंदी है।… हम भी बस टिके रहे और डिब्बे का नजारा-ए-आम देखते रहे। देखने में जो शामिल न था सब देखा। बस एक नवयुगल को कई दफ़ा देखा। अब इतनी भी गुनाहगारी से नहीं देखा कि हर दफ़ा पर कोई कानूनी दफ़ा लगाकर मुझे मुल्जिम ही करार दे दो।” यह नव युगल कुछ यूँ गुम था आपस में जैसे आस-पास कोई हो ही ना। और कवि यह नजारा-ए-ख़ास बड़ी ही खूबसूरती से निहार रहे थे ताकि उसे कलम लेकर कागज पर उतार सके शायद। उस नवयुगल में जो युवती थी वह पहली बार सपनों की गठरी बाँध माया नगरी की ओर चली थी। “बातचीत में पता लगा कि इनका डेरा बरसों से बारांह शहर के डोल मेला ग्राउंड में पड़ा है। लडका ब्याह के बहुत पहले ही मुम्बई की बारिश का आदि था। और लड़की मैना मुम्बई वाले तोते के इश्क में पूरे पाँच बरस घायल रही। बस बीती आखातीज को ही दोनों के मीठे घावों पर ब्याह का मरहम लगा था।” और शायद यह सुनकर कवि के कवि हृदय को मरहम लगा हो और उन्होंने यह रचना लिख डाली हो। हिंदी साहित्य में प्रेम पर बहुत कुछ लिखा गया है किन्तु इतने सुंदर तरीके से प्रेम को व्याख्यायित, व्यंजित करना बहुत मुश्किल सा प्रतीत होता है।
“जिनसे मिलना हो और मुद्दतों बाद भी उन्हें मिल जाने की सुरत बन जाए तो यूँ जिंदगी का जाया होना थम जाए। नहीं तो गुजर तो रही ही है पहले-सी ना सही, ना सही।” जिंदगी का गुजरना और जिनसे मिलने की उत्कंठा हो उनसे मुद्दतों बाद भी मिलना सोगवार हो जाए तो भी जिंदगी गुजर ही जाती है। वैसे भी कवि के प्रेमी हृदय को मिलने ना मिलने की परेशानी और उसके लिए पेशानी पर उतनी शिकन नहीं है जितनी कि सूरज की तसल्ली के लिए ग़ालिब का ख्याल करना बेहतर है।
रात के दो बज रहे हों और उस समय कोई कुछ लिख रहा हो वो भी प्रेम पर तो आकाश के सितारे जलना लाजमी है। लिखने के बाद ख़्वाब में उसका हाज़िर हो जाना और भी अधिक जलाता है। उस समय यूँ लगता है जैसे सूरज ,तारे, पेड़ उनकी हरी पत्तियाँ सब जल रहे हों। ये दिन कवि के लिए कयामत के दिनों से कमतर नहीं हैं। कयामत के दिनों में खुदा को जवाब देना होता है तो इन ख़्वाबों के बदले कवि क्या जवाब देगा यह उसे और अधिक जला रहा है। साहित्य ने हमें विपुल मात्रा में मनोरंजन के साथ-साथ संवेदनाएँ, भावनाएँ, इच्छाएँ, सोचने-विचारने की शक्ति उपलब्ध कराई है और उसमें बाँध कर रचा है। गद्य और पद्य दोनों में केन्द्रीय रूपों से कालजयी रचनाएँ हुई हैं। इन रचनाओं में भाषा, छंद विधान के साथ ही मुक्त कविता ने जन्म लिया है। इस दौर से हटकर चलते हुए राजस्थान राज्य के बारां जिले में 20 नवम्बर 1980 को जन्में युवा कवि, भारतीय ज्ञानपीठ का नवलेखन पुरूस्कार, साहित्य अकादमी युवा पुरूस्कार, शब्द साधक युवा सम्मान आदि जैसे प्रतिष्ठित सम्मानों से अलंकृत ओम नागर ने अपनी कविताओं में प्रेम को पूरी-पूरी अभिव्यक्ति दी है। यूँ तो उन्होंने ‘तुरपाई’ के अलावा ‘विज्ञप्ति भर बारिश’, ‘देखना एक दिन’, ‘जद भी मांडबा बैठूं हूँ कविता’, ‘प्रीत’, ‘छियापताई’ आदि काव्य संग्रह भी लिखे और सम्पादन कार्य के साथ-साथ अनुवाद कला एवं डायरी लेखन में भी हाथ आजमाया है।
अपनी पुस्तक तुरपाई में एक जगह कवि कविता “उसका कमरा किताबों का कैदखाना” में लिखते हैं –
किताबें न होती
तो न होती किताबों की बातें
और न ही होता जीवन इतना खुबसूरत
अक्सर बातों में किताबों का जिक्र
ऐसे ही करती है वो!
वास्तव में देखा जाए तो किताबों का कितना अधिक महत्व हमारे जीवन में है प्रेम के अलावा कवि उस ओर भी अपना ध्यान आकर्षित करवाते हैं।
जब कुछ भी नहीं रहा आस-पास
सन्नाटे के सिवा
दुःख भड़भड़ाता आया जो भीतर
नहीं लौटा फिर
किताबें ही थी जो गाहे बगाहे दिखाती रहीं
अंदर के दुखों को बाहर का रास्ता
किसी ने ठीक ही कहा है वास्तव में किताबें हमारी सबसे सच्ची मित्र होती हैं। इसी तरह की एक ओर कविता है किन्तु वह प्रेम कविता है कविता का शीर्षक है “तुम ने कुछ नहीं कहा” इस कविता में प्रेमिका कुछ कहती है और प्रेमी उसका जबाब देता है। अंत में वह कुछ नहीं कहती और कवि प्रेमिका का हो गया। इस तरह की प्रेम कविता वास्तव में एक सच्चे प्रेमी हृदय से ही निकल सकती है। इसी तरह की कुछ अन्य कविताएँ हैं “तुम्हारा कहा सुना है मैंने”, “ढाई आखर” , “रहना है अभी प्रेम में तुम्हारे”, “यह जो उड़ता फिर रहा पतंगे-सा” ये सभी कविताएँ प्रेम को भरपूर परिभाषित करती है।
पद्यात्मक कथ्य “वो! धुँध के छंटने के बाद धूप बुनेगी” में कवि लिखते हैं – “ एक अधेड़ उम्र की महिला मेरे सामने की सीट पर स्वेटर बुनने में लगी है। बुनने की रफ्तार का क्या कहना। बुनने की रफ्तार ने ही बुनने को बचाए रखा है, वरना स्वेटर के बनने जितना धैर्य किस में बचा है। मशीनों ने पहले पहले मजदूरों के हाथ खाए फिर एक हाथों का हुनर भी खा गई…. वो अधेड़ महिला धुंध का स्वेटर बन रही है, मैं हूँ कि उसकी उँगलियों की रफ्तार से भय ग्रस्त हुआ जा रहा हूँ। यह अधेड़ महिला धुंध छँटने के बाद धूप बुनेगी।” पद्य में वैश्वीकरण के कारण आए बदलाव और आदमियों के हुनर के बजाए मशीनों से होते कामों, कशीदाकारी को दर्शाया गया है। कि किस प्रकार मशीनों ने मजदूरों के हाथों, उनके हुनरों को हर लिया है। मशीनें बेहतर हैं किंतुं उन मशीनों के चलते इंसान भी मशीन होता जा रहा है।
जहाँ प्रेम होगा वहाँ विरह तो अवश्य ही होगा कवि ओम नागर की एक कविता विरह की भी है “तुम्हारे आँसूओं का नमक” सफ़र की भूख के लिए प्रेमिका ने जो पराठें बनाएं उनमें विरह के अश्रु भी शामिल हो गए और इस तरह उनमें एक खारापन आ गया जो कि सम्भवत: उसके आँसूओं का नमक ही है। कविता “प्रेम के सिवाए” इस पद्यात्मक और गद्यात्मक मिश्रित किताब का सार कहें तो भी कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।
उसने कहा
क्यूँ याद करते हो मुझे
मैंने कहा
क्यूँ क्या हुआ
उसने कहा
याद करने से दुखती है आँखें
तेज धड़कने लगता है दिल
मैंने कहा
इसमें नया क्या है
उसने कहा
कुछ भी नया नहीं
प्रेम के सिवाय।
“रफू ऑफ़ हार्ट” में कवि एक जगह लिखते हैं
दिल उसी का
धड़कता है उम्रभर
जिसे आती है
रफू ऑफ़ हार्ट
बेहद ही सीमित शब्दों में बहुत कुछ कहने की कला ओम नागर में है यह इन पंक्तियों से महसूस किया जा सकता है। अगली गद्यात्मक और पद्यात्मक मिश्रित रचना “जीवन के इर्द गिर्द रंगों का भँवर” में धर्म की बिना पर बंद शहर है तो इंसानों की दुनिया में रंगों की भी अपनी दुनिया है। हर चीज में, प्रत्येक वस्तु में रंग है। वह रंग ख़ुशी, प्रेम, भाईचारे, बारिश, शांति और सतरंगी इंद्रधनुष के रूप में हो सकता है। कवि ओम नागर ने मोहब्बत, इंसानियत, मानवीयता के हर एक उस रंग पर लिखा है जिस पर लिखा जाना जरूरी ही नहीं बहुत जरूरी है।
– तेजस पूनिया