ग़ज़ल-गाँव
ग़ज़ल
जो बनाए हैं तो निभा रिश्ते
टूटने से सदा बचा रिश्ते
बोझ लगने लगे उन्हें जब तो
छोड़ दे तू उन्हें, भुला रिश्ते
आइने की तरह से दिल टूटे
जब भी होते हैं बेवफ़ा रिश्ते
ग़ैर होकर भी साथ तेरे तो
अपनों के जैसे ही बढ़ा रिश्ते
हर क़दम पर खड़े सुमन होते
ये मुहब्बत के ख़ुशनुमा रिश्ते
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ग़ज़ल
क़हर बरपा गये बादल, शहर बिखरा गये बादल
उफ़नती नदियाँ थीं ख़ुद ही उसे उफ़ना गये बादल
तबाही देखती हूँ मैं बहुत ही दिल दुखा मेरा
जहाँ रौनक बरसती थी अँधेरा छा गये बादल
कहाँ आवाम जाएगी नहीं सत्तानशीं जानें
उन्हें तो फ़िक्र कुर्सी की जो मुद्दा ला गये बादल
क़यामत जो ये आई है मची है चीख़ गलियों में
ज़रा हद में ही तुम रहते हमें समझा गये बादल
अरे बादल ज़रा सुन लो, न ढाओ यूँ सितम देखो
बनाओ ख़ुशनुमा लम्हें कहें लो आ गये बादल
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ग़ज़ल
सामने फूल बन कर खिला कीजिए
सूखी बगिया को फिर से हरा कीजिए
क्या कहें किस क़दर इज़्तिरारी हुई
देखिए यूँ हुआ मत ख़फा कीजिए
मसअले जो बने दूरियों की वजह
तो दफ़ा ही वो हर मसअला कीजिए
टूटता हो कोई गर बुरे वक्त में
तो बढ़ाया सदा हौसला कीजिए
बोल मीठे हों मीठा हो व्यवहार भी
आब शक्कर के जैसे मिला कीजिए
बज़्म में आए चहरे भी खिल जायेंगे
आप आदाब तो मुस्कुरा कीजिए
कह रही है सुमन बे-सबब दफ्अतन
यूँ बढ़ाया नहीं फ़ासला कीजिए
– सुमन मिश्रा