ग़ज़ल-गाँव
ग़ज़ल-
सारी दुनिया में तेरी शोहरत है
कितनी अल्लाह की इनायत है
मैले मन में ख़ुदा नहीं रहता
ये कहावत नहीं हक़ीक़त है
यूँ नहीं ये कहा बुज़ुर्गों ने
अपने हाथों में अपनी इज़्ज़त है
ज़ुर्म छुप सकता है ज़माने से
पर ख़ुदा की भी एक अदालत है
हर ख़ुशी औरों के लिए जिसकी
नाम उसका ही जग में औरत है
जिस्म से आगे हद नहीं इसकी
कैसी इस दौर की मोहब्बत है
आज हैरत में आँसू भी हैं भवि
चार सू फैली कितनी नफ़रत है
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ग़ज़ल-
कितना मन भावन होता है
प्रेम परम पावन होता है
सम्मोहित करता है जो मन
मोहन तो मोहन होता है
प्रकृति संग मन भी खिलते हैं
सावन तो सावन होता है
जिसकी बातों से रस बरसे
उसका मन मधुवन होता है
उसकी यादें जब तब आतीं
झंकृत ये तन मन होता है
जब तक घर में भाईचारा
हर कोना आँगन होता है
संयम के आभूषण से ही
सुन्दर चिरयौवन होता है
ईद और दीवाली पर ‘भवि’
भारत वृन्दावन होता है
– शुचि भवि