ग़ज़ल
ग़ज़ल
कमाल ये भी किसी रोज़ कर दिखाते हम
वो याद रहता, बदन उसका भूल जाते हम
उड़ान भरते बदन के लिए बदन से कभी
फिर उसके बाद बदन ही में लौट आते हम
सवार हों जहाँ किश्ती में सारे अपने लोग
किसे डुबोते नदी में किसे बचाते हम
जुनूं ही अब के मयस्सर नहीं हुआ हमको
नहीं तो दश्त को दीवार-ओ-दर बनाते हम
ये सारा शहर ही क़ब्रों से अट गया होता
सलीम ख्वाबों की मैय्यत अगर उठाते हम
***************************
ग़ज़ल
जो मैं देखूं कभी शादाब मिट्टी
तो हो जाते हैं सारे ख्वाब मिट्टी
हमीं पर तंग होती जा रही है
हमारे खून से सैराब मिट्टी
मेरे लहजे में रोशन हो गयी है
तुम्हारे जिस्म की महताब मिट्टी
नदी ख़ुद से पशेमाँ हो रही है
बहा कर ले गया सैलाब मिट्टी
मुझे जंगल बुलाता है कि मुझमें
बिखर जाने को है बेताब मिट्टी
– सलीम अंसारी