ग़ज़ल-गाँव
ग़ज़ल-
तूने मेरा हिसाब कर डाला
मुझको रद्दी किताब कर डाला
मैं क़रम था, सुकून था मुझको
जाने क्यों आफ़ताब कर डाला
बंदिशें सारी तोड़ कर मैंने
ख़ुद को मौजे-चिनाब कर डाला
एक मुश्किल सवाल वो था मगर
मैंने ख़ुद को जवाब कर डाला
उनसे मिलना था इसलिए ख़ुद को
सुब्ह का एक ख़्वाब कर डाला
**************************
ग़ज़ल-
राज़ दिल में छुपाने से क्या फ़ायदा
हमसे नज़रें चुराने से क्या फ़ायदा
हो गयी है मुहब्बत तो इज़हार कर
प्यार कर, अब लजाने से क्या फ़ायदा
हम तुम्हारे ही थे हम तुम्हारे ही हैं
बेवजह आज़माने से क्या फ़ायदा
जिनकी महफ़िल रकीबों से गुलज़ार है
उनकी महफ़िल में जाने से क्या फ़ायदा
दिल अगर तेरा सजदे में झुकता नहीं
सिर्फ सर को झुकाने से क्या फ़ायदा
जिसको चाहा वो ‘रोहित’ मिला ही नहीं
फिर हज़ारों के आने से क्या फ़ायदा
– रोहिताश्व मिश्रा