ग़ज़ल-गाँव
ग़ज़ल-
नज़र से जो मज़ा इज़हार में है
वही क्या लब से भी इक़रार में है
नदी-सा पाक दिल है आपका यह
समुन्दर की झलक किरदार में है
किसी के वास्ते कब वक़्त ठहरा
सभी की ज़िंदगी रफ़्तार में है
नहीं है चाँद में वो नूर यारो!
चमक जैसी मेरे दिलदार में है
हिलोरें ले रहीं चाहत की लहरें
सफ़ीना प्यार का मझधार में है
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ग़ज़ल-
हुईं हैं क्यों ये हिरास आँखें
नमी से बोझिल उदास आँखें
ख़िज़ा के पहलू बहार होगी
लगाती झूठे क़यास आँखें
वफ़ा की दिल में कली खिली है
बता रही है सुबास आँखें
छुपाके सबसे बसा लो दिल में
करें यही इल्तिमास आँखें
जो एक पल को उठीं तो देखा
वफ़ा से रौशन विलास आँखें
नक़ाब में लो छिपा ये चेहरा
उठेंगीं वरना पचास आँखें
चलीं सजन से नज़र मिलाने
पहन हया का लिबास आँखें
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ग़ज़ल-
दिलों का हो रहा संगम नहीं है
तभी तो प्यार का मौसम नहीं है
तेरा क़िरदार ग़र दोय़म नहीं है
तो फिर तू भी किसी से कम नहीं है
करोगे दर्द का अहसास कैसे
ग़मों से आँख जब पुरनम नहीं है
चले जो साथ मेरे ज़िंदगी भर
मिला ऐसा कभी हमदम नहीं है
करे जो वार सीधा रश्मि दिल पर
ग़ज़ल में आपकी वो दम नहीं है
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ग़ज़ल-
यामिनी जी रही सँग अँधेरे लिए
भोर जीती रवि से उजाले लिये
सोच शायद लिये हैं बहाने कई
आपने रोज यूँ रूठने के लिये
आँख में नींद ख़ामोश बैठी रही
रात आई न चंदा-सितारे लिए
आँख में आँसुओं की लगा दे झड़ी
वो कहानी भुला दो हमारे लिये
कर्म ऐसे करो तुम जगत में सदा
प्रेरणा बन सको दूसरों के लिये
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ग़ज़ल-
दुआओं का असर इतना हुआ था
मुक़द्दर से नया रिश्ता बना था
अदा का तीर नज़रों से चला था
मुहब्बत का बढ़ा तब सिलसिला था
रहा दिल अश्क, ग़म, आहों से रौशन
यही क्या ज़िंदगी का फ़लसफ़ा था
हुआ न चाँद का दीदार हमको
तुम्हारी ज़ुल्फ़ का साया घना था
बुरा होता नहीं इंसान कोई
किताबों में कहीं हमने पढ़ा था
– रश्मि सक्सेना