ग़ज़ल-गाँव
ग़ज़ल-
हाँ वो ज़िन्दादिली से मिलता है
जब कहीं भी किसी से मिलता है
दिल से दिल का है राबिता शायद
कौन वरना किसी से मिलता है
जान कहता है वो मुझे अक्सर
इसलिए आशिकी से मिलता है
उसकी यादों के जिसमें हैं किस्से
फूल वो डायरी से मिलता है
दिल ये उलझा है दुनियादारी में
चैन तो बंदगी से मिलता है
हर वो रस्ता अज़ीज है मुझको
जो भी घर की गली से मिलता है
दर्द होता है कुछ ज़ियादा ही
जब दग़ा दोस्ती से मिलता है
ख़ास होता है कुछ न कुछ उसमें
जो रमा सादगी से मिलता है
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ग़ज़ल-
दिल में हिन्दोस्तान रहने दो
इस तिरंगे की शान रहने दो
दिल में गीता-कुरान रहने दो
आरती और अज़ान रहने दो
कुछ तो अम्नो-अमां रहे क़ायम
नफ़रतों के बयान रहने दो
तल्खियाँ बातों में नहीं अच्छी
अपनी शीरीं-ज़ुबान रहने दो
मिट गये हैं जो देश की ख़ातिर
उन शहीदों का मान रहने दो
तोड़कर अब दीवार नफ़रत की
सबको ही इक समान रहने दो
– रमा प्रवीर वर्मा