ग़ज़ल-गाँव
ग़ज़ल-
कहीं सूखा, कहीं बारिश, कहीं तूफान गिरते हैं
चले जो काफ़िला तेरा कई शैतान गिरते हैं
गुनाहों के समुंदर का अकेला बादशाह है तू
तेरे क़दमों के साहिल पर कई भगवान गिरते हैं
कहाँ ईमान, इज़्ज़त, सादगी की बात करते हो
जहाँ सिक्का खनकता है कई इंसान गिरते हैं
सियासत के घिनौने खेल से बचता कहाँ कोई
चले जब मज़हबी आँधी कई नादान गिरते हैं
ग़रीबी आग है ऐसी मिटा देती है इंसां को
उठे जब भूख की आँधी कई अरमान गिरते हैं
अमीरी की हवस इंसान को पागल बनाती है
जहाँ दौलत नज़र आये तो फिर ईमान गिरते हैं
ख़ुदा भी सिर झुकाता है जहाँ तेरी इबादत में
उन्हीं क़दमों में आकर माँ सभी बलवान गिरते हैं
भले हो या बुरे बच्चे सभी प्यारे उसे होते
दुआओं में लबों से माँ के बस वरदान गिरते हैं
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ग़ज़ल-
हक़ीक़त है कहानी है अभी कैसे बता दूँ मैं
कई बातें ज़ुबानी है अभी कैसे बता दूँ मैं
नज़ाकत है, नफ़ासत है, मुहब्बत है, वफ़ा भी है
वो लड़की ख़ानदानी है अभी कैसे बता दूँ मैं
मुहब्बत भी हमारी तो कई सदियों पुरानी है
मगर कितनी पुरानी है अभी कैसे बता दूँ मैं
ज़रा-सा सब्र तो रक्खो कई मेहमान आने हैं
किसे कितनी पिलानी है अभी कैसे बता दूँ मैं
रक़ीबों की ज़ुबानी तो कई किस्से कहानी हैं
वो मेरी ही दिवानी है अभी कैसे बता दूँ मैं
सितम की दास्तां या रब भले ही याद हो लेकिन
अभी उनको सुनानी है अभी कैसे बता दूँ मैं
कहीं पर खून के धब्बे कहीं पर लाश के चिथड़े
अदावत ख़ानदानी है अभी कैसे बता दूँ मैं
महक ऐ ‘राज’ चाहत की हमें मदहोश करती है
मुहब्बत जाफ़रानी है अभी कैसे बता दूँ मैं
– राज जौनपुरी