हायकु
रिश्तों की धुरी
आजीवन दौड़ती
स्वत्व खोजती
टूटकर भी
जोड़े रिश्तों की कड़ी
स्त्री में वो शक्ति
खरी उतरे
जीवन परीक्षा में
सर्वस्व लुटा
पराई जाई
आँगन महकाई
बन तुलसी
पिता का मान
ससुराल की शान
बढ़ातीं स्त्रियाँ
नभ ने भेजी
सुनहरी परियां
धरा रौशन
काट बेड़ियाँ
बेटी भरे उड़ान
बढ़ा दे मान
बाट जोहती
बहाये गोरी नीर
रहती पीर
दहेज बलि
चढ़ी मासूम कली
धू-धू थी जली
कोमल कली
बेदर्दी से कुचली
दया न मिली
– प्रवीन मलिक