आलेख
डाॅ. कैलाशचंद्र शर्मा का कहानी संग्रह ‘अबला की मंजिल’ स्त्री-जीवन का दस्तावेज : निशा कुमारी
डाॅ. कैलाशचंद शर्मा एक सफल कहानीकार, नाटककार और एकांकीकार हैं। आधुनिक साहित्यकारों में उनका नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है। उनका साहित्य आधुनिक समाज की समस्याओं से पल्लवित है। डाॅ. कैलाश चंद्र शर्मा को कहानीकार के रूप में अधिक सफलता मिली है। ‘अबला की मंजिल’ उनका कहानी संग्रह है, जिसमें 11 कहानियां हैं। इनमें अबला की मंजिल, माधवी, साक्षात्कार, मौन समर्पण, नवजीवन आदि कहानियों के माध्यम से भारतीय नारी के समर्पण, त्याग, व्यथा, पीड़ा, विधवा पुनर्विवाह आदि समस्याओं से पल्लवित हैं तो ‘कर्ज’, ‘दीपक की रोशनी’, पैमाना आदि कहानियों में मध्यम वर्गीय परिवारों की समस्याओं का वर्णन है। इनके अतिरिक्त ‘भटकती आत्मा’ और ‘ताबीज’ कहानियां हिंदू धर्म में व्याप्त मान्यताओं पर आधारित हैं। मेरा विषय डाॅ. कैलाशचंद्र शर्मा के कहानी संग्रह ‘अबला की मंजिल’ में भारतीय स्त्री जीवन के दस्तावेज समस्याओं से हैं अतः हम उनके कहानी संग्रह में स्त्री समस्याओं से संबंधित विचारों का ही विश्लेषण करेंगे।
डाॅ. कैलाशचंद्र शर्मा के कहानी संग्रह ‘अबला की मंजिल’ और स्त्री समस्याएं- भारत में स्त्री सदा ही दलित, शोषित और पीड़ित रही है। पहले भारतीय साहित्य में स्त्री की सम्पूर्ण सत्ता को भोग्या, अबला, ललना, कामिनी, रमणी आदि विशेषणों के साथ एवं पुरूष-सापेक्ष रूप चित्रित किया गया है। इसका मुख्य कारण यह है कि प्राचीन एवं मध्ययुगीन साहित्य और दर्शन के रचियता एवं टीकाकार पुरूष थे।
लेकिन आधुनिककाल की शिक्षित एवं सजग स्त्रियों के साथ-साथ कुछ प्रबुद्ध साहित्याकारों ने भी स्त्री की इस दशा को सुधारने का सफल प्रयास किया गया है। लेकिन फिर भी आज नारी इन समस्याओं से पूर्ण मुक्त नहीं हुई है। उसे अनेक मानसिक तनावों और शारीरिक शोषण से गुजरना पड़ता है, डाॅ. कैलाशचंद्र शर्मा ने इन्हीं समस्याओं के इर्द-गिर्द अपनी कहानियों का ताना-बाना बुना है। इनके सभी पात्र मध्यमवर्गीय परिवारों से संबंध रखती हैं, इसलिए वे एक तरफ तो आर्थिक व पारिवारिक समस्याओं से ग्रसित हैं तो दूसरी तरफ नारी अभिशाप से।
डाॅ. सुमन मेहरोत्रा ने उनके बारे में लिखा है,
“डाॅ. शर्मा के इस संग्रह ‘अबला की मंजिल’ की कहानियां व्यक्ति-सत्य के स्तर पर जीवन की विषमताओं, जटिलताओं और संघषों से युद्ध करती हुई चलती है। मूलतः संबंधों को लेकर लिखी जाने वाली कहानियों में कर्त्तव्यों और मूल्यों के मध्य संघर्ष छिड़ा रहता है। इन राहों पर गुजरते हुए पात्रों के भीतर एक आलोड़न और प्रत्यालोपन होता रहता है। ऐसी परिस्थितियों की चपेट में स्त्रियां अधिक हैं जो अपने संस्कारों से बाध्य हैं।”1
अब हम डाॅ. कैलाशचंद्र शर्मा के कहानी संग्रह ‘अबला की मंजिल’ में व्याप्त स्त्री समस्याओं को अलग-अलग समझने की चेष्टा करेंगे जो निम्न हैंः-
क) स्त्री वेदना व पीड़ा का चित्रण
नारी जीवन ही वेदना और पीड़ा का दूसरा नाम है। वह जन्म से लेकर मृत्यु तक अनेक कष्टों का सामना करती है। उसे अनेक शारीरिक और मानसिक प्रताड़नाओं का सामना करना पड़ता है। तुलसीदास का मानना था कि औरत और पशुओं को केवल कोड़ों से ही सुधारा जा सकता है।1
नीत्शे भी लिखते हैं कि अगर तुम औरत के पास जा रहे हो तो अपना कोड़ा साथ ले जाना मत भूलना। स्त्री व्यथा के बारे में महादेवी वर्मा भी लिखती हैं,
“स्त्री को पुरूष के वैभव की प्रदर्शनी और मनोरंजन का साधन बनकर ही जीना पड़ता है। स्त्री शून्य के समान पुरूष की इकाई के साथ सब कुछ है, परंतु उससे रहित कुछ नहीं”2
डाॅ. कैलाशचंद्र शर्मा ने अपने इस कहानी संग्रह में स्त्री की शारीरिक व मानसिक प्रताड़नाओं का बखूबी वर्णन किया है। उनकी सुप्रसिद्ध कहानी ‘अबला की मंजिल’ की नायिका नीलम मौसी मानसिक व्यथाओं से घिरी हुई है। पढ़ी-लिखी नीलम का विवाह एक अर्द्धविक्षिप्त पुरूष के साथ हो जाता है। जिसके कारण परिवार के अन्य पुरूष भी उसे अपनी काम भावना का शिकार बनाना चाहते हैं। वह अपने पागल पति से शारीरिक व मानसिक आवश्यकताएँ पूर्ण नहीं कर पाती और कुण्ठा का शिकार हो जाती है। लेकिन इन पीड़ाओं के बावजूद भी वह समाज के सामने मुस्कराती रहती है। अपने सच्चे दोस्त अमर से अपनी पीड़ा व्यक्त करती हुई वह कहती है, “नारी के सम्मान का दम भरने वाले प्रतिष्ठा के आवरण में लिपटे भेडि़ये छद्मरूप में बिना वस्त्र उतारे उसकी बोटियां नोच डालें और किसी को पता ही न चलें, क्योंकि नारी को इन सबके बाद भी मुस्कराना पड़ता है और तुम जो कह रहे थे नारी शिक्षा व उसके कारण इन सामाजिक अत्याचारों के विरोध की बात तो भूल जाओ अमर इस विश्वास को। हमारे समाज में नारी शिक्षा की पुरूषों के सम्मान व प्रयोजन का ही एक कारण है। जिस दिन नारी इस पुरूष प्रधान समाज का विरोध प्रदर्शित करेगी, उसे या तो पागल करार देकर अस्पताल पहुंचा दिया जाएगा या फिर कुल्टा, कुलच्छिनी या व्याभिचारिणी कहकर घर से निकाल दिया जाएगा।”3
डाॅ. कैलाशचंद्र शर्मा की कहानियों की स्त्रियों में उन्हें व्यथित करने वाली परंपराओं के प्रति भी आक्रोश भरा हुआ है। वे ऐसे पति को अपना पति मानने से इन्कार कर देती हैं जो उनके सवत्व की रक्षा नहीं कर सकते। नीलम के अनुसार “उस पति को पतित्व के अधिकार मिलने का कोई औचित्य नहीं, जो अपनी पत्नी के सवत्व की रक्षा करने में असमर्थ हैं। यदि ऐसी पत्नी भी अपने पतिव्रता धर्म का पालन नहीं करे तो इसे पत्नी का कर्तव्यपरायणता का हृास नहीं मानना चाहिए।4 अतः हम देखते हैं कि ‘अबला की मंजिल’ कहानी की नायिका नीलम में वेदना और पीड़ा के कारण आक्रोश भरा हुआ है।
इसी प्रकार उनकी कहानी ‘माधवी’ में भी अरूण की पत्नी सीमा भी ठीक भारतीय नारी की तरह अपने कर्तव्य का पालन करती हुई अपने पति को अपना आराध्य मानती है। इसके बावजूद भी उसका पति अरूण उसके गृहस्थ कार्यों की व्यस्तता का फायदा उठाकर एक किशोरी माधवी से संबंध स्थापित करता है। इस कहानी के माध्यम से लेखन ने यह साबित करने की कोशिश की है कि पुरूष नारी के समर्पण और त्याग को भी ठुकरा देता है। ये बात अलग है कि लेखक ने ‘माधवी’ कहानी में सीमा की पीड़ा को शब्द नहीं दिए लेकिन पाठक को स्वत: ही उसकी पीड़ा का अहसास हो जाता है। इस कहानी की अन्य स्त्री पा़ माधवी भी अरूण द्वारा छोड़कर चले जाने पर व्यथीत और पीड़ित रहती है।
डाॅ. कैलाशचंद्र शर्मा ने अपनी कहानियों के माध्यम से यह साबित करने की चेष्टा की है कि नारी कितनी ही शिक्षित क्यों न हो जाए, यह पुरूष प्रधान समाज उसे दलता और लूटता रहता है। अपनी ‘मौन समर्पण’ कहानी के द्वारा उन्होंने यह बात सिद्ध करने की चेष्टा की है। छायावादी साहित्यकार जयशंकर प्रसाद ने भी अपने उपन्यास ‘कंकाल’ में स्वीकार किया है, “पुरूष नारी को उतनी शिक्षा देता है जितनी की उसके स्वार्थ में बाधक न हो”5
‘अबला की मंजिल’ की नीलम भी अमर के सामने यह सत्य बयान करती है, “भारत में स्त्री की दशा कभी भी सही नहीं हो सकती है। भले ही स्त्री कितना ही विकास कर जाए पर भारतीय समाज तो पुरूष प्रधान है न”6
इस प्रकार हम देखते हैं कि स्त्री को न तो स्वतंत्र सोचने दिया जाता है न ही उसे स्वतंत्र रूप से जीने का अधिकार है। अगर उसका कहीं अस्तित्व है तो सिर्फ पति के कारण वरना उसे समाज बहिष्कृत कर हेय दृष्टि से देखने लगता है। राजेन्द्र यादव के अनुसार, “साहित्य और समाज की सबसे बदनाम, बहिस्कृत और गुमराह औरतें वे हैं जो अपने शरीर और मन को अपने पतियों, स्वामियों या अभिभावकों तक सीमित नहीं रख पाईं। वे कुल्टा, छलना, रंडी, पतिता इत्यादि के नाम पर सजा की अधिकारिणी हुई।”7
इस प्रकार हम देखते हैं कि डाॅ. कैलाशचंद्र शर्मा के कहानी संग्रह ‘अबला की मंजिल’ में नारी का शारीरिक व मानसिक शोषण तथा पीड़ा व्यक्त हुई है। यह पीड़ा ‘अबला की मंजिल’ कहानी की नीलम, ‘माधवी’ कहानी की माधवी और सीमा ‘मौन समर्पण’ की डाॅ. भारती व मालती आदि के माध्यम से व्यक्त हुई है।
ख) पुरूष की काम भावना
पुरूष स्त्री को केवल वासना वस्तु मानता है। वह स्त्री का शारीरिक शोषण करता है। साहित्य में पुरूष की इस परवर्ती का खुलकर वर्णन हुआ है। पुरूष मानसिकता के गड़बड़ाए समीकरणों का सबसे प्रमाणिक दस्तावेज है- कृष्ण बलदेव वैद का उपन्यास ‘नर-नारी’। इसका नायक कभी अपनी पत्नी का शारीरिक शोषण करता है, उससे लड़ता है तो कभी घिघियता हुआ माँ की गोद में जा छुपता है। इसी प्रकार राजकिशोर का ‘तुम्हारा-सुख’ और मन्नू भण्डारी का ‘अपना बंटी’ तो इन रिश्तों से आगे बढ़कर एक और समस्या को उजागर करता है कि इन बिगड़ते रिश्तों में संतान को किस तरह मानसिक तनावों का सामना करना पड़ता है। इसी प्रकार डाॅ. कैलाशचंद्र शर्मा की कहानियों में भी पुरूष की काम भावना का चित्रण बखूबी ढंग से हुआ है।
उनकी सुप्रसिद्ध कहानी ‘अबला की मंजिल’ की नीलम को पुरूष की काम भावना का शिकार होना पड़ा। नीलम के पति का अर्द्धविक्षिप्त होने के कारण घर के अन्य लोग उनकी असीम सुन्दरता पर गलत दृष्टि डालते हैं। यहां लेखक ने यह सिद्ध किया है कि पुरूष की इस मानसिकता की जिम्मेदार कहीं न कहीं स्त्रियां भी हैं, जो अन्य स्त्री पर अत्याचार के लिए जिम्मेदार होती हैं। ‘अबला की मंजिल’ की नीलम अमर से कहती है, “उसे पति के पागलपन का अनुचित लाभ उठाकर उसे सभी जीजा लोग, उसके दोनों देवर और अन्य पुरूष वर्ग उसके साथ गलत संबंध स्थापित करना चाहते हैं। देवरानियां यह सब जानते हुए भी अपने पतियों को रोकती नहीं, अपितु उसके साथ ही निर्दयतापूर्वक व्यवहार करती हैं।”8
इसी प्रकार नीलम के जीजा भी उसे अपनी हवस का शिकार ही नहीं बनाते हैं बल्कि उसकी शादी अर्द्धविक्षिप्त आदमी के साथ कराकर अपना आगे का रास्ता भी साफ करते हैं। नीलम अमर से कहती है, “मेरे माता-पिता गरीब थे, अतः मेरे विवाह में अधिक दान-दहेज न दे सकते थे। मेरी अप्रतिम सुंदरता मेरे बहनोई की वासना का शिकार हो गई। उन्होंने अपनी घिनौनी स्वार्थ सिद्धि हेतु मेरा विवाह बिना किसी दहेज के अर्द्धविक्षिप्त युवक से करा दिया।”9
इसी प्रकार लेखक की एक और सुप्रसिद्ध कहानी ‘साक्षात्कार’ में पुरूष की काम भावना डाॅ. बादल के माध्यम से प्रकट होती है जो एक विधुर होते हुए भी नवयौवना अलका के सौंदर्य पर मुग्ध होता है। लेखक ने यहां यह सिद्ध करने की कोशिश की है कि पुरूष लोग किसी सुन्दर स्त्री को देखने पर उसे शारीरिक रूप से पाने की चेष्टा करता है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि डाॅ. कैलाशचंद्र शर्मा ने अपनी कहानियों के माध्यम से पुरूष की काम भावना व उसमें स्वाह होने वाली अनेक स्त्रियों को चित्रित किया है। पुरूष स्त्री को अपनी काम भावना या वासना का शिकार बनाकर उसके जीवन को नारकीय बना देता है।
ग) अनमेल विवाह की समस्या
अनमेल विवाह हमारे समाज के माथे पर कलंक के समान है। अनमेल विवाह के कारण न जाने कितनी ही गृहस्थियां उजड़ती हैं, कितनी स्त्रियां अपने समान वर न मिलने के कारण अपने जीवन को नष्ट कर देती हैं या कोई अन्य बुरा रास्ता ढूंढ लेती हैं या अन्य पुरूष से संबंध स्थापित करती हैं। लेकिन बहुत सी स्त्रियां ऐसी भी हैं जो भारतीय नारी के कर्तव्यों का पालन कर आजीवन घुट-घुटकर मरती हैं, लेकिन डाॅ. कैलाशचंद्र की कहानियों की नायिकाएं आत्मनिर्भर, साहसी, निडर और जीवन में डटकर मुकाबला करने वाली हैं। उनकी सर्वश्रेष्ठ कहानी ‘नवजीवन’ की अन्जू कोई अन्य बुरा रास्ता न चुनकर पुनर्विवाह के लिए तैयार हो जाती है। अंजू हमें कुछ नया करने के लिए उत्साहित करती है। लेखक की एक अन्य कहानी ‘अबला की मंजिल’ की नीलम का अनमेल विवाह हो जाता है। वह अनन्य सुंदरी है लेकिन फिर भी किसी अन्य पुरूष से शारीरिक संबंध स्थापित नहीं करती अपितु अपने सच्चे दोस्त अमर से प्रेरणा ग्रहण कर नारी उद्धार के कार्यों में संलग्न हो जाती है। अमर नीलम से खुश होकर कहता है कि, “मुझे बहुत खुशी है नीलम कि तुमने कठोर परिश्रम और सूझ-बूझ से अपनी मंजिल तय की और समाज को यह आभास करा दिया कि भारतीय नारी आज असहाय अबला नहीं रही अपितु अपना जीवन बनाने में स्वयं सक्षम है।”10
मुंशी प्रेमचन्द के उपन्यासों और कहानियों की तरह ही डाॅ. शर्मा ने इस बात का समर्थन किया कि धन, दौलत, वैभव ये सब चीजें कुछ नहीं हैं। जब तक पति-पत्नी संबंधों में मेल नहीं है। यही कारण है कि प्रेमचंद द्वारा रचित ‘निर्मला’ उपन्यास की निर्मला ‘सेवासदन’ उपन्यास की सुमन और डाॅ. कैलाशचंद्र शर्मा की प्रसिद्ध कहानी ‘अबला की मंजिल’ की नीलम अन्य पुरूषों की ओर आकर्षित होती हैं। ‘सेवासदन’ उपन्यास की सुमन तो अनमेल विवाह के कारण ही वैश्यावृति को धंधा बना लेती है और जीवन में पथभ्रष्ट हो जाती है। लेकिन डाॅ. शर्मा की कहानियों की नारियां ऐसा रास्ता न अपनाकर समाज कल्याण की ओर प्रवृत होती हैं।
इस प्रकार हम देखते हैं कि लेखक ने अनमेल विवाह संबंधित समस्याओं को उभारा है तथा हमें अवगत कराया है कि अनमेल विवाह के कारण किस तरह स्त्रियों को अपना जीवन मर-मर के जीना पड़ता है।
घ) विवाहेत्तर प्रेम-प्रसंगों का वर्णन
लेखक ने अपनी कहानियों के माध्यम से स्त्री-पुरूष प्रसंगों का वर्णन किया है। उनके अधिकतर प्रेम-प्रसंग विवाहेत्तर हैं। जो असामाजिक होते हुए भी मानवीय हैं, उनमें अनैतिकता और अश्लीलता नहीं है। समाज की आधारभूत इकाई होता है परिवार और परिवार का मूल है स्त्री-पुरूष संबंध। यह समाज सदा से ही पुरूष प्रधान रहा है। राजेन्द्र यादव ने स्त्री-पुरूष संबंधों को कुछ यूं व्यक्त किया है, “पुरूष ने जब-जब स्त्री शरीर की उपासना की है तो कलाओं का जन्म हुआ है और जब उससे विरक्त हुआ है तो वैराग्य लिखा है। सामंती समाज में स्त्री भोग्या रही है और बुर्जआ समाज की व्यक्ति चेतना ने उसे रहस्यमयी पहेली, आधारशक्ति और न जाने क्या-क्या कहा है।”11
डाॅ. कैलाशचंद्र शर्मा के कहानी संग्रह ‘अबला की मंजिल’ में भी स्त्री-पुरूष संबंधों को व्यक्त किया है। विवाह के बाद भी पुरूष मन अपनी पत्नी से ऊबकर कहीं और ठिकाना ढूंढने लगता है। उनकी माधवी कहानी के अरूण विवाहित होते हुए भी और उनकी पत्नी कर्तव्यपरायण होने के बावजूद वह एक किशोरी माधवी की ओर आकर्षित होता है। अरूण विवाहित होने पर भी माधवी से विवाह करने का प्रस्ताव रखता है, “लेकिन विधाता ने हमें मिला दिया है। अब हमें कोई अलग नहीं कर सकता। अब तुम्हें पत्नी के रूप में अपनाऊँगा माधवी, अपनाऊँगा।”12
इसके अतिरिक्त ‘अबला की मंजिल’ कहानी की नीलम मौसी भी अनमेल विवाह के कारण अमर से प्रेम करने लगती है। इसी प्रकार लेखक ने ‘साक्षात्कार’ कहानी में डाॅ. बादल विधुर है तथा बाद में अलका से प्रेम करते हैं।
इसी प्रकार ‘नवजीवन’ कहानी की अंजू भी संजीव से प्रेम कर शादी के बंधन में बंध जाती है। इस प्रकार उपरोक्त वर्णन के बाद हम देखते हैं कि लेखक की अधिकतर कहानियों में विवाहेत्तर प्रेम-प्रसंगों का वर्णन है।
ड़) विधवा पुनर्विवाह
प्राचीनकाल में विधवाओं की स्थिति रोंगटे खड़े कर देने वाली थी। लेकिन कुछ प्रबुद्ध मनीषियों के त्याग और कठोर प्रयासों से विधवा विवाह को आज कानूनी स्वीकृति मिली हुई है। डाॅ. कैलाशचंद्र शर्मा ने विधवा पुनर्विवाह को एक नया मोड़ या आयाम दिया है। उनकी प्रसिद्ध कहानी ‘नवजीवन’ की अंजू विवाह वाले दिन ही विधवा हो जाती है। उसके पति दीपक पर आसमान से बिजली गिरने से उसकी मौत हो जाती है। लेकिन अंजू के ससुराल वाले उस पर कोई अत्याचार नहीं करते अपितु सहानुभूति प्रकट करते हैं। यहीं नहीं उसका देवर सुशील उसका अच्छा दोस्त बनकर उसकी शादी एक अच्छे लड़के से करवाना चाहता है। वह हमेशा उसको खुश रखने की कोशिश करता है। इसी प्रकार अंजू की सासू माँ हमेशा उसका ध्यान रखती है। दीपक के दोस्त तथा सुशील उन दोनों की शादी कराकर एक अच्छे दोस्त का हक अदा करता है। इस मौके पर उसकी माँ भी खुशी के मारे मुस्कराती हुई कहती है, “सुशील आज का दिन हमारे लिए बहुत खुशी का दिन है। आज मेरा दीपक वापस आ गया है।”13
इस प्रकार हम देखते हैं कि डाॅ. कैलाशचंद्र शर्मा ने विधवा अंजू की ससुराल पक्ष द्वारा एक योग्य लड़के से शादी कराकर समाज के सामने एक आदर्श प्रस्तुत किया है।
डाॅ. कैलाशचंद्र शर्मा के स्त्री के प्रति दृष्टिकोण पर हम एक बात और यहाँ कहना चाहेंगे कि उनकी कहानियों की नारियां सहनशील, कर्तव्यपरायण, सजग, निडर और आत्मनिर्भर हैं। वे पुरूष की काम-भावना का शिकार होने से आखिर अपने आप को बचा ही लेती हैं। डाॅ. सुमन मेहरोत्रा के शब्दों में, “डाॅ. शर्मा के पात्रों का भीतर का अहसास हर पल यह सांस लेता रहता है कि वैयक्तिक सीमा के परे उनका भाग्य दूसरों से जुड़ा है। यह दूसरे से जुड़ाव ही उन्हें जीवन शक्ति प्रदान करता है।”14
हम देखते है लेखक की ‘अबला की मंजिल’ की नारी पात्रों की समर्पण भावना सर्वोत्कर्ष है। वे पारिवारिक सुख के सामने धन-दौलत को कोई महत्व नहीं देती। इसकी नायिका नीलम स्त्री उद्धार के लिए अपने सच्चे प्रेम का बलिदान देती है। इसी प्रकार ‘माधवी’ कहानी की सीमा भी पति सेवा व पारिवार के सुख के लिए सारा दिन गृहकार्य में संलग्न रहती है। ‘मौन-सम्पूर्ण’ की डाॅ. भारती व मालती भी नारी त्याग का ज्वलंत उदाहरण प्रस्तुत करती हैं।
अतः निष्कर्ष रूप से हम कह सकते हैं कि डाॅ. कैलाशचंद्र शर्मा के कहानी संग्रह ‘अबला की मंजिल’ स्त्री जीवन का दस्तावेज प्रस्तुत करता है। लेखक का मानना है कि जब तक स्त्री शिक्षित और निडर नहीं होती, पुरूष प्रधान समाज उसका हर प्रकार से शोषण करता रहेगा। अतः इस शोषण मुक्ति के लिए उसे आत्मनिर्भर बनाना होगा। स्त्री समस्याओं के साथ-साथ उन्होंने स्त्री आदर्श को भी प्रस्तुत किया है।
संदर्भ सूची-
1. डाॅ. सुमन मेहरोत्रा, अबला की मंजिल (प्राक्कथन)
2. महादेवी वर्मा, श्रृंखला की कडि़यां, पृ. 32
3. डाॅ. कैलाशचंद्र शर्मा, अबला की मंजिल, पृ. 21
4. वही, पृ. 26
5. जयशंकर प्रसाद, कंकाल, पृ. 63
6. डाॅ. कैलाशचंद्र शर्मा, अबला की मंजिल, पृ. 66
7. राजेन्द्र यादव, कांटे की बात- 3, पृ. 142
8. डाॅ. कैलाशचंद शर्मा, अबला की मंजिल, पृ. 26
9. वही, पृ. 23
10. वही, पृ. 28
11. राजेन्द्र यादव, कांटे की बात- 8, पृ. 62
12. डाॅ. कैलाशचंद्र शर्मा, अबला की मंजिल, पृ. 55
13. वही, पृ. 88
14. डाॅ. सुमन मेहरोत्रा, अबला की मंजिल (प्राक्कथन)
– निशा कुमारी