घनाक्षरी छंद
मन की मैं पीर लेके अँखियों का नीर लेके।
लेखनी के संग शब्द जाल बुनने लगा।।
कविता में रचे प्राण रसों का दिया संज्ञान।
पाकर के ज्ञान ध्यान सुर सुनने लगा।।
नहीं कोई लोभ मोह शब्दों से नहीं बिछोह।
छन्दों वाली रचना के गीत गुनने लगा।।
दिया सबको ही मान किया नहीं अभिमान।
ज्ञान के प्रसून सबसे ही चुनने लगा।।
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गाऊँ कोई ऐसा गीत, सुन सके मेरा मीत।
निभ जाये मेरी प्रीत, प्रियतम आओ ना।।
झर झर झरे नैन, मन को मिले ना चैन।
जाग जाग काटूँ रैन, मुझको सताओ ना।।
दिल में है तड़पन, होगा कब ये मिलन।
करो तुम भी जतन, गले से लगाओ ना।।
राह को निहारती हूँ, काँटों को बुहारती हूँ।
यादों को सँवारती हूँ, अब आ भी जाओ ना।।
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छेड़ें ऐसी तान अभी, जागें देशवासी सभी।
भारती का भाल बलिदान से सजाते चलें।।
देश में दंगे फसाद, कर रहे बरबाद।
आतंकी साये को आओ, जड़ से मिटाते चलें।।
शासन भी ना हो मौन, सब बने गुरु द्रोण।
देश के विकास हित, बाधाएँ हटाते चलें।।
विश्वगुरु बनकर, सीना तानें तनकर।
तीन रंगों वाली शान, फिर से बढ़ाते चलें।।
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पाणिग्रहण संस्कार, होता बस एक बार।
जनम- जनम तक, साथ ये निभायेंगे।।
रहना है संग- संग, सुख- दुःख लगा अंग।
खुशियों की बगिया को, रोज महकाएँगे।
इक दूजे में हो प्यार, करें नहीं तकरार।
सुख का सदा हो वास, गीत यही गायेंगे।।
नेह से बँधी है डोर, नाचे मन का ये मोर।
उम्रभर रहें साथ, प्यार ही जतायेंगे।।
– नवीन गौतम