उभरते स्वर
प्रेम
ये मेरी आंखे
कुछ कहना चाहती हैं
तुम्हारी आंखों में रहना चाहती हैं
मेरे जज़्बात,
मेरे एहसासात,
मेरे प्रेम की इन्तेहा,
मेरे सपने,
मेरे अपने,
इन सबमें
सिर्फ तुम शामिल हो।
ये जुबां
इसमें नहीं है
इतना हौसला कि तुमसे
इज़हारे-मुहब्बत कर पाये
तो सहारा है
बस इन आंखों का
जो दिल की बात
तुमसे कहती हैं।
इन्हीं में देखकर
तुम पढ़ लो
ये सिर्फ तुमसे
मेरी मुहब्बत बयान करती हैं।
तुमको पढ़ना होगा
मेरी आंखों को
जादूगर मेरे!
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लम्हे
लम्हे तेरे दर पे
कुछ रख आई थी
मिले जो तुझे तो
संभाल लेना
तेरी यादों का
ख़ज़ाना तो बढ़ता ही जा रहा
सोचा कुछ तुझे बाँट लूँ
बिखरे पड़े हैं
कई लम्हे
कहीं खो न जाएँ
इसी जद्दो-जहद में उलझी हूँ
कुछ दर्द है
कुछ प्यार है
यही ज़ख्म है
यही दवा है
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ऐसा है प्रेम
मद्धिम मद्धिम लौ-सा
हमारा अनन्त प्रेम
कब दीवाली की
रोशनी बन गया
जिसकी चमक में
मेरा रंग रूप खिल गया
कुछ पता ही ना चला
अब ये प्रेम
अमर ज्योति बनकर
मुझे अंधेरों में
राह दिखाता है
जब मैं कमजोर
पड़ती हूं तो
मेरा संबल बन जाता है
ऐसा है तुम्हारा प्रेम
हमारा प्रेम
है ना जादूगर?
बताओ!
– मोनिका अग्रवाल