ग़ज़ल-गाँव
बाल ग़ज़ल-
चहक रही है चिड़िया रानी जंगल में
आई है गिल्लू की नानी जंगल में
घुली हवा में जब अखरोटों की खुशबू
आया सबके मुँह में पानी जंगल में
अज्जू बेसुध पड़ा हुआ है दो दिन से
लेकर बकरी की कुर्बानी जंगल में
गन्ने का इक पोट कहीं से ले आया
चाल चले गज्जू मस्तानी जंगल में
डाली डाली फुदक रही है इक बुलबुल
हुई ग़ज़ल से भोर सुहानी जंगल में
मटक रहा है मोर परों को फैलाकर
फिर लहराई चूनर धानी जंगल में
फुलकारी की फ्रॉक पहन कर इक तितली
उड़ती है बनकर दीवानी जंगल में
रँगे सियारों की चालाकी के चलते
बेबस शेरू की सुल्तानी जंगल में
बदल गई कितनी इंसानों की दुनिया
पहले-सी हर बात पुरानी जंगल में
– ख़ुर्शीद खैराड़ी