हाइकु
हाइकु
तूफ़ान संग
भटक रहा पत्ता
रमता जोगी।
शांत वन में
पिघलता है हिम
सुर सितार।
निकला चाँद
वृद्धाश्रम में कहीं
गूँजती लोरी
छिटकी ज्योत्स्ना
नदी में बह रहे
असंख्य दीये।
सुघड़ हाथ
बेले गोल रोटियाँ
उड़ाती यान।
पंचाचूली में
फैली प्रातः किरण
बिखरा सोना।
वन छा गया
खिलते बुराँश से
लगी है आग।
नव बसन्त
गाँव की पौरी पर
बाल मण्डली।
नीम की छाँव
बुजुर्ग की गोद में
खेले नवासी।
आया सावन
माँ बाप निहारते
सूने झूले को।
– जानकी बिष्ट वाही