ख़ास-मुलाक़ात
प्रतिभा और अवसर दोनों का सम्मिश्रण ही साहित्य सर्जन का मूलाधार है : डॉ. (श्रीमती) शशि तिवारी
वेद, उपनिषद्, संस्कृत साहित्य, भारतीय संस्कृति और धर्म दर्शन की परम विदुषी डॉ.(श्रीमती) शशि तिवारी का जन्म 16 अक्टूबर 1945 ई. को हुआ | आपने लखनऊ विश्वविद्यालय से एम.ए. तथा पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त की है | आपको राष्ट्रपति पुरस्कार सहित अनेकों पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हो चुके हैं | आप दिल्ली विश्वविद्यालय के मैत्रेयी कालेज की एसोसिएट प्रोफेसर रह चुकी हैं | सेवानिवृत्त के बाद भी आपने अपनी साहित्यिक साधना नहीं छोड़ी है | आपने अमेरिका, कनाडा, नेपाल, इटली आदि देशों में भी संस्कृत भाषा तथा भारतीय संस्कृति का परचा-प्रसार किया है |आप वेव संस्था की संस्थापक भी हैं | यह संस्था वेदों पर नये-नये शोध करती रहती है | प्रस्तुत है संस्कृत तथा प्राकृत भाषा विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय के शोधछात्र अरुण कुमार निषाद से बातचीत के कुछ अंश –
प्रश्न- प्रायः लोग कहते हैं, ‘संस्कृत एक मृत भाषा है’ उनके लिए क्या सन्देश है?
उत्तर- संस्कृत को मृतभाषा कहना सर्वथा असत्य है। वैदिककाल से लेकर आजतक संस्कृत वाचन और लेखन की अक्षुण्ण परम्परा इसका प्रमाण है।
प्रश्न- कविता की नई पीढ़ी के प्रति कितनी आशावान हैं?
उत्तर- कविता की नई पीढ़ी उभर रही है, और धीरे-धीरे विकसित होगी,आगे बढ़ेगी मुझे आशा है।
प्रश्न- आज नए रचनाकारों को अनेक स्तरों पर प्रोत्साहन मिल रहा है ? इस सुविधा को किस रूप में देखती हैं?
उत्तर- साहित्य सदा से राजकीय और शासकीय संरक्षण में फूलता फलता आया है। संस्थाओं द्वारा प्राप्त प्रोत्साहन सर्वथा स्तुत्य है और उत्साहवर्धक है।
प्रश्न- लेखन विरासत में मिला था या संयोग था कलम थामना?
उत्तर- प्रतिभा और अवसर दोनों का सम्मिश्रण ही साहित्य सर्जन का मूलाधार है। अनन्तर प्रोत्साहन और अभिरुचि से उसका विस्तार होता है।
प्रश्न- आपके अन्दर लिखने-पढ़ने के संस्कार कैसे पैदा हुए?
उत्तर- इस प्रश्न का उत्तर देना कठिन है। समझ लीजिए कि विरासत और परिवेश ने मिला जुलाकर इस ओर प्रवृत्त किया।
प्रश्न- आपके प्रिय रचनाकार कौन है?
उत्तर- प्रत्येक रचनाकार मुझे प्रिय है। जिसके लेखन में सरल भाषा और भावप्रेषणता है। जिजीविषा, डॉ. वनमाली विश्वाल, पद्मजा प्रकाशन, इलाहाबाद, प्रथम संस्करण 2006 ई.प्राचीन कवियों में कालिदास को सर्वोच्च स्थान पर रखती हूँ।
प्रश्न- व्यस्त शेड्यूल में रचना करने के लिए किस तरह समय निकालती हैं?
उत्तर- व्यस्त दिनचर्या में भी कविता या रचना लेखन कभी भी किया जा सकता है। आन्तरिक रूप से मन तैयार होना आवश्यक है।
प्रश्न- आप कविता गेयता को कविता का अनिवार्य अंग मानती हैं या नहीं?
उत्तर- गेयता से कविता में प्राण आ जाते हैं। गेयता के बिना भी कविता सचेतन रहती है। अत: गेयता अनिवार्य अंग नहीं है।
प्रश्न- आप अपने आप को कवि मानती हैं या गद्यकार?
उत्तर- मैं हृदय से कवि और लेखनी से गद्यकार हूँ।
प्रश्न- आप अपने शिष्यों से क्या आशा करती हैं?
उत्तर- शिष्य समय आने पर योग्य हो जाते हैं।
प्रश्न- अभी तक आपने कुल कितनी भाषाओं में रचनाएँ की हैं?
उत्तर- अभी तक मैंने संस्कृत, हिन्दी और अंग्रेजी इन तीन भाषाओँ में लिखा है।
प्रश्न- आप संस्कृत के उत्थान के लिए युवावर्ग को क्या सन्देश देना चाहती हैं?
उत्तर- संस्कृत में युवावर्ग की रूचि कम हुई है। पर जिनको है उनको ही मैं भावी पीढ़ी का नायक मानती हूँ, क्योंकि संस्कृत विधा की धरोहर उनसे ही आगे जाएगी।
प्रश्न- महिला लेखन से स्त्रियों की सामाजिक आर्थिक स्थिति में कितना परिवर्तन आया है?
उत्तर- स्त्रियों की सामाजिक स्थिति में परिवर्तन नहीं पर जागरूकता जरुर आई है।
प्रश्न- जिन राजनीतिक तथा सामाजिक परिस्थितियों में आज हम जी रहे हैं। उसमें एक कथाकार या लेखक का क्या दायित्व बनता है?
उत्तर- लेखक, लेखन द्वारा सजगता उत्पन्न करने का दायित्व निभाता है।
प्रश्न- आज क्या कुछ नया लिख रही हैं?
उत्तर- आजकल दिल्ली के प्राचीन इतिहास को लेकर कुछ लिखने का यत्न कर रही हूँ।
प्रश्न- आपके द्वारा लिखी गई अब तक की सबसे अच्छी रचना?
उत्तर- सूर्यदेवतापरक ग्रन्थ को मैं सबसे अच्छी रचना मानती हूँ।
प्रश्न- आपको लगता है कि छंद से मुक्ति पाकर कविता लिखना ज्यादा आसान हो गया है? क्योंकि आज सबसे ज्यादा इसी विधा में रचनाएँ की जा रही हैं?
उत्तर- निश्चय ही छन्दमुक्त कविता लिखना सरल है।| पर संस्कृत में अभी भी छंद का महत्त्व है।
प्रश्न- रचनाकार का अपनी जड़ों से जुड़े रहना जरूरी है? आप क्या कहती हैं?
उत्तर- रचनाकार का अपनी जड़ों से जुड़े रहना जरूरी है। तभी रचना में ऊँची उड़ान भरी जा सकती है।
प्रश्न- क्या आप अच्छी रचना के लिए मूड बनाकर लिखती हैं?
उत्तर- किसी भी लेखन के लिए मूड आवश्यक है।
प्रश्न- साहित्य सृजन के अलावा आपकी अन्य रुचियाँ क्या हैं?
उत्तर- साहित्य सृजन के अलावा साहित्य पठन और कलाओं में रूचि है| कला-नाटक,चित्र देखना।
प्रश्न- वह रचना जिसने आपको एक रचनाकार के रूप में स्थापित किया ?
उत्तर- मैं ऐसी किसी रचना की लेखिका स्वयं को नहीं समझती जिससे रचनाकार की पदवी प्राप्त हो।
प्रश्न- साहित्य -जगत की वह उपलब्धि जिससे आपको सबसे अधिक प्रसन्नता हुई हो?
उत्तर- साहित्य जगत की उपलब्धि जो प्रसन्नता दे,वह यही है कि-मैं संस्कृतविद्या को कुछ स्तर तक अधिगृहीत कर सकी और लोगों को बता सकी।
प्रश्न- आपकी पहली रचना कब और कहाँ से प्रकाशित हुई ?
उत्तर- प्रथम ग्रन्थ मुण्डकोपनिषद् है, जो दिल्ली से सन् 1981 ई. में प्रकाशित हुआ था।
प्रश्न- आज संस्कृत के सामने कौन-कौन सी चुनौतियां हैं? उनके समाधान के लिए क्या उपाय किये जा सकते हैं?
उत्तर- संस्कृत के सामने चुनौती केवल आत्मसम्मान की है। ऐसा मेरा विचार है। समाज संस्कृत में कार्यशील शिक्षक और विद्यार्थी को गर्व और सम्मान के साथ देखें। जिससे उसमे आत्मगर्व का भाव जागे-यही मेरी विनती है।
प्रश्न- विदेशों में संस्कृत की क्या स्थिति है? कहाँ -कहाँ कार्य हो रहे हैं?
उत्तर- विदेशों में लगभग सभी देशों में संस्कृत एक विषय अवश्य होता है। अमेरिका, यूरोप और एशिया के सभी देशों के विश्वविद्यालयों में संस्कृत का एक विभाग है।
प्रश्न- यदि आप संस्कृत नहीं पढ़ती तो क्या करतीं?
उत्तर- यदि मैं किसी भी विषय को अपने उच्च स्तर के अध्ययन में अपनाती तब भी संस्कृत जरुर पढती।
प्रश्न- संस्कृत के पाठ्यक्रमों एवं परीक्षा प्रणाली में क्या-क्या सुधार किये जायें?
उत्तर- आजकल पर्याप्त सुधार हुए हैं, वे पर्याप्त हैं |
– डॉ. शशि तिवारी