मूल्यांकन
‘रुढ़ियों का आकाश’ प्रदीप कुमार दाश ‘दीपक’ द्वारा रचित हिन्दी का प्रथम सेनरियू संग्रह: डाॅ. सुधा गुप्ता
हाइकु विषयक गम्भीर अध्ययन के अभाव में हाइकु और सेनरियू का अन्तर स्पष्ट नहीं था। अस्तु! ईस्वी सन् 2003, अगस्त माह में श्री प्रदीप कुमार दाश ‘दीपक’ का सेनरियू संग्रह ‘रुढ़ियों का आकाश’ प्रकाशित हुआ। तरुण हाइकुकार ने अपनी संक्षिप्त भूमिका ‘स्वकथन’ में जो कुछ कहा है, उससे सुस्पष्ट है कि दीपक जी को हाइकु-सेनरियू का वस्तु-बोध सम्बन्धी अन्तर ‘हस्तामलकवत’ है, वह पूर्णतया निभ्रांत हैं, सेनरियू-संग्रह का शीर्षक तथा शीर्षक सेनरियू भी यही उद्घोष
करते हैं-
आओ तोड़ने
रूढ़ियों का आकाश
लगा फैलने
‘दीपक’ जी ने ‘स्वकथन’ में एक बिन्दु पर और भी बल दिया है-
“यहाँ एक बात मैं कहना चाहूँगा कि एक अच्छा व्यंग्य, जहाँ हृदय को सीधा चोट करता है, वहाँ उसमें पीड़ा व करुणा के भाव भी सन्निहित रहते हैं। इस तरह देखा जाए तो एक अच्छा सेनरियूकार केवल हास्य-व्यंग्य से ही सेनरियू नहीं लिखता, अपितु वह पीड़ा-बोध अथवा करुणता-भाव से भी सेनरियू रच सकता है।”
‘दीपक’ जी के सेनरियू-संग्रह में व्यंग्य के तीखे प्रहार हैं-
हा.. गणतंत्र
रोता रहा है गण
हँसता तंत्र
लाश ही लाश
मरी आदमीयत
आदमी ज़िन्दा
कुत्ते ने भौंका
सिखा दिया भौंकना
आदमी को भी
कानूनी घोड़ा
जिधर फेंको पैसा
उधर दौड़ा
देश की राजधानी में दिन-प्रतिदिन बढ़ते अनाचार से क्षुब्ध हृदय का तीखा व्यंग्य-
दिल्ली को हम
मानते दिल, पर
साँपों का बिल
दिल्ली में चैन
संविधान खामोश
लोग बेचैन
महँगाई की मार से अल्प आय वर्ग का बुरा हाल करुणा उपजाता है-
जेब है खाली
राशन की तारीख़
आयी दिवाली
सब के गाल
मँहगाई की मार
हो गये लाल
राजनीति के दूषित वातावरण तथा देश के नेताओं के ‘गिरगिट-चरित्र’ ने सेनरियूकार को बहुत पीड़ा पहुँचाई है-
नेता से सीखा
थूक कर चाटना
ये भी है कला
नेता रावण
लोकतंत्र सीता का
किया हरण
संसद के अजीबो-ग़रीब हालात देख-सुन कर सेनरियूकार कह उठता है-
उछल रहे
सड़क से संसद
भालू-बंदर
ख़ूनी सड़कें
धृतराष्ट्र कानून
सज़ा दे किसे
साम्प्रदायिकता एवं जातिवाद के कारण समाज लहूलुहान है। ‘धर्म’ की भूमिका पर प्रश्नचिह्न लगा है-
बने ज़ालिम
भाइयों को लड़ाने
राम-रहीम
आजादी के छप्पन वर्ष बाद भी सर्वहारा वर्ग की क्या दुरावस्था है, यह किसी से छिपा नहीं। स्कूल जाने, पढ़ने और जीवन का निर्माण करने वाली
उम्र में शैशव का संताप जिन्हें झेलना पड़ रहा है, कोई उनकी करुण गाथा नहीं बाँचता-
देश के बच्चे
कचरों के ढेर पे
भविष्य ढूँढे
इस सेनरियू-संग्रह में एक सौ बारह सेनरियू हैं। सभी सशक्त, प्रभावशाली एवं अपने उद्देश्य में सफल हैं।
(‘पानी माँगता देश’ से साभार)
समीक्ष्य पुस्तक- रुढ़ियों का आकाश
सेनरियूकार- प्रदीप कुमार दाश “दीपक”
समीक्षक- डाॅ. सुधा गुप्ता
प्रकाशन- माण्डवी प्रकाशन
प्रकाशन वर्ष- 2003
मूल्य- 35 रुपये मात्र
– डाॅ. सुधा गुप्ता