मूल्याँकन
समय की धुन पर
– डाॅ. सीमा शर्मा
युवा कवयित्री ऋतु त्यागी का काव्य संग्रह ‘समय की धुन पर’ मेरे सामने है। संग्रह की मूल संवेदना को समझने के लिए लेखिका के तीन कथनों को देखना आवश्यक है, जो इसी पुस्तक में अलग-अलग स्थानों पर दिये गये हैं। महादेवी वर्मा ने कविता के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए कहा था कि “कविता कवि की विशेष भावनाओं का चित्रण है।” अब डाॅ. ऋतु त्यागी का कथन देखिए- “अपने आसपास उठते हुए शोर को धकेलते हुए किसी गहरे श्वास की तरह अपने अंदर के जंगल में भटकना और अपने हिस्से के समय के भीतर किसी लौ की तरह अपनी आँखों की काँपती बेचैनी से टुकड़ा-टुकड़ा संवाद करने का प्रयास है ये।”
कवि के कथन से स्पष्ट है कि कविता लिखना उनका शौक नहीं; विवशता है। क्योंकि कविता उनकी विशेष भावनाओं को चित्रित करती है-
तुम चली गयी चुपचाप
जबकि तुम्हारे पास बोलने के लिए थे
दो अदद होंठ
एक लचीली जीभ
पेट में कुलबुलाते शब्दों का ज़ख़ीरा
सोचों में सीमाबद्ध असीम वेदना और विकलता
तुम्हारी आँखों में बिलखते अनकहे दुःखों के राग
जो फूटकर हवा में बिखर जाना चाहते थे
डाॅ. ऋतु जानती हैं कि सपाट अभिव्यक्ति से कई संकट खड़े हो सकते हैं इसीलिए उन्होंने कविता जैसे सशक्त माध्यम को चुना- “फिर उसने कठिन शब्दों की वर्तनी का अभ्यास किया। और कुछ सरल वाक्यों में लिखे जीवन सूत्र।” ये कविताएँ सरल वाक्यों में लिखें जीवन सूत्र की तरह ही हैं यथा-
इस बार मैं ही करूँगी
युद्ध की मुनादी
और संधि का प्रस्ताव
निश्चित ही तुम्हारा होगा
प्रस्तुत काव्य संग्रह दो भागों में विभक्त है- “मैं समय के भीतर” एवं “हम स्त्रियाँ” उक्त विभाजन एक सीमा तक पुस्तक के स्वरूप को स्पष्ट कर देता है। पहले भाग में जीवन से जुड़े विविध पक्षों की कविताएँ हैं तथा दूसरे में अधिकांश स्त्री जीवन से जुड़ी। जीवन के विविध पक्षों से जुड़ी लेखिका की समझ व संदेश उनकी कविताओं में है-
कुछ नहीं होगा तब तक
जब तक कि हम
अपनी नाक के लिए लड़ेंगे
डाॅ. ऋतु व्यवसाय से शिक्षिका हैं तो उन्हें अपनी भूमिका का भी बोध है इसीलिए वे कहती हैं-
मैं भविष्य की इमारत में जोड़ती हूँ कुछ ईंटें
मुझे ध्यान रखना होगा
कि ईंटें टिकाऊ हों
और उचित अनुपात में बनी हों
ताकि भविष्य की इमारत मजबूत रहे
…..मैं जानती हूँ
कि इस प्रक्रिया में
मेरी निष्ठा पर कोई प्रश्न नहीं उठेगा
क्योंकि ये सब घटित होगा
और कोई घटना नहीं बनेगी
संग्रह की कुछ कविताएँ दर्पण की तरह हैं, जो पाठक को अपने अंदर झाँकने को विवश करती हैं-
जब हम नहीं होते
हर उस जगह पर
जहाँ हमारा होना
उस जगह के औचित्य को
सिद्ध कर देता
तब भी उस जगह के सभी काम उसी तरह से हो जाते हैं
जैसे औचित्य सिद्धि की यात्रा में हुआ करते
व्यक्ति जब परेशान होता है तो बहुत कुछ बदलना चाहता है; नहीं बदलता तो स्वयं को यदि वह अपने स्वभाव में परिवर्तन करे तो परेशानियाँ अवश्य ही कम होंगी। ‘जी बिल्कुल श्रीमान’, ‘कोई नहीं सुनता प्रार्थनाएँ’, ‘यदि आप…!’, ‘तुम्हे अगर कुछ करना है तो…’, ‘एक ढोल’, ‘और एक दिन’, ‘मरता बचपन’, ‘अभागे लोग’, ‘राजनीति की कसौटी’, ‘वाॅकआउट’, ‘जनाब! मैंने एक भेड़ पाली’ आदि कविताएँ विशेष उल्लेखनीय हैैं, जो पाठक की सोच को एक दिशा प्रदान करती हैं।
यदि ‘हम स्त्रियाँ’ खंड की बात करें तो ‘हम’ शब्द को समझना आवश्यक है। यहाँ कविताएँ ‘मैं’ की नहीं, ‘हम’ की हैं और जब बात ‘हम’ की है तो विषय व्यापक हो जाता है।
मैं उसकी अंतहीन कराहों से डरती हूँ
डरती हूँ उसके सफेद चेहरे से
और
उसकी आँखों में उड़ते पीड़ा के कबूतरों से
कहकर लेखिका अन्य स्त्रियों के दुःखों को अनुभूत करती हैं और ‘औरतों के युद्ध’ कविता में स्त्रियों की मनःस्थिति का एक मार्मिक चित्र प्रस्तुत करती हैं-
वह औरत एक योद्धा है
दिनभर खटकर भी
रात को लड़ने के लिए बचा लेती हैै थोड़ा बारूद
मान्यवर इस बात पर ध्यान दिया जाए
औरतों के युद्ध अक्सर नींद में ही लड़े जाते हैं
कविता की अंतिम दो पंक्तियाँ मस्तिष्क को झकझोर कर रख देती हैं। हमारा समाज ऐसा है, जहाँ ‘लड़किया भागती हैं और लड़के चले जाते हैं’ एक ही कार्य के लिए दो अलग-अलग क्रियाओं का प्रयोग, जो समाज की मानसिकता का परिचायक है। किन्तु डाॅ. ऋतु इन कविताओं के माध्यम से समाज को एक दिशा देने का कार्य करती हैं-
वह अपने डर को छोड़ आई है सात समंदर पार
वहाँ से घोड़े पर सवार
किसी राजकुमार की प्रतीक्षा को
डाल चुकी है वह समंदर के खारे पानी में
समीक्ष्य काव्य संग्रह में ‘समय की धुन’ का अनुभव किया जा सकता है और वर्तमान सामाजिक सन्दर्भों की अनुगूँज को सुना जा सकता है। ये कविताएँ जीवन के किसी एक पक्ष तक नहीं। “इनका विस्तार जीवन के हर उस पक्ष तक है, जहाँ तक किसी भी कवि या रचनाकार के लिए जा सकना संभव है। एक तरह से इन कविताओं को स्त्री कविताओं की श्रेणी में सीधे तौर पर डाल सकना संभव नहीं। ये कविताएँ हैं एक समर्थ और प्रश्नाकुल कवि की कविताएँ; कवि जो एक स्त्री भी है।” भूमिका के रूप में ‘मायामृग’ की लिखी ये पंक्तियाँ उल्लेखनीय हैं।
समीक्ष्य पुस्तक- समय की धुन पर
विधा- कविता
रचनाकार- डाॅ. ऋतु त्यागी
प्रकाशक- बोधि प्रकाशन, जयपुर
मूल्य- 150 रूपये
पुस्तक का अमेज़न लिंक-
– डाॅ. सीमा शर्मा