हायकू
हायकू
अधूरी बातें
पूरी कब हो पायीं
ढलती रातें।
पुरानी बातें
अब छोड भी दो न
सड़ी-सी यादें।
घटिया बातें
क्यूँ करते हो तुम
टूटेँगे नाते।
सोयी न रातें
करो न कुछ तुम
अच्छी-सी बातें।
बहुत बातें
करनी हैं अभी तो
तुम आ जाते।
ये कैसी बातें
हो रहीं आजकल
न जान पाते।
फिल्मी-सी बातें
और होगा भी क्या?
है आत्म घातें।
हाँ, मेरी बातें
तुम भी करते जो
ख़ुश हो जाते।
ठहरी बातें
जो तोड़ नहीं पायीं
होठों से नाते!
मान लो बातें
जो बेटी न होगी तो
सूनी बारतें।
– दिलीप वसिष्ठ