हाइकु
हाइकु
नदी की हत्या
हत्यारे कछारों में
कुछ कारों में।
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थमी है नाव
लौट रही है नदी
थके से पाँव।
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फैलाये रेत
नदी अनुराग में
बेचैन खेत।
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नदी तरंग
उठ-उठ के देखें
तट के रंग।
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नदी के कूल
दूब से बनाते ज्यों
लम्बी दुकूल।
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नभ के तारे
तटहीन नदी में
फुदकी मारे।
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पेड़ों से नदी
कहे, अपने जी की
रुकी हुई-सी।
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इकट्ठे आये
नदियों के कंकड़
चढ़ावा लाये।
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नदी ओढ़ के
पेड़ों का हरापन
बैठी मोड़ पे।
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मार दी नदी
पुल से फेंक-फेंक
अस्थियाँ दिखी।
– भीकम सिंह