ग़ज़ल-गाँव
ग़ज़ल-
डर के दुनिया से कभी प्यार नहीं हो सकता
आग का दरिया है यूँ पार नहीं हो सकता
ख़ौफ़ का जिसके लबों पर ही लगा हो ताला
उससे तो इश्क़ का इज़हार नहीं हो सकता
जिसको भी चाहा उसे टूट के चाहा मैंने
मेरे जैसा कोई दिलदार नहीं हो सकता
इश्क़ तन्हाई है, रुस्वाई है, तौफ़ीक़ भी है
हाँ मग़र इश्क़ गुनहगार नहीं हो सकता
ज़ह्र नफ़रत का हो हर लफ़्ज़ में शामिल जिसके
मैं कभी उसका तरफ़दार नहीं हो सकता
इक तेरे नाम से रोशन है ये दिल का आँगन
मुझको जीना कभी दुश्वार नहीं हो सकता
होगा जिस शख़्स का ईमान मुकम्मल यारो!
वो कभी मुल्क का ग़द्दार नहीं हो सकता
वक़्त लिखता है नई रोज़ इबारत मुझ पर
मैं पुराना कोई अख़बार नहीं हो सकता
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ग़ज़ल-
तुम्हारे दर्द के जैसा नहीं है
हमारे दर्द का चेहरा नहीं है
मुहब्बत तो कोई मुद्दा नहीं है
जो कहते हो कोई रिश्ता नहीं है
हमारी आँख से देखो तो जानो
मुताबिक़ इश्क़ के दुनिया नहीं है
चलो अब ढूँढा जाए फिर नया ग़म
कि काग़ज़ पर कोई मिसरा नहीं है
सफ़ाई मैं कहाँ तक उसको देता
मेरा होकर भी जो मेरा नहीं है
किसी दिन हम ये पूछेंगे ख़ुदा से
यहाँ इंसां क्यों इंसां का नहीं है
मज़ा आता है छुप कर देखने में
दरीचे में अभी परदा नहीं है
मिले तो है बहुत मुझको जहां में
मगर कोई तेरे जैसा नहीं है
सभी ‘अरमान’ के मिसरे हैं अपने
किसी के शे’र का चरबा नहीं है
– अरमान जोधपुरी