ग़ज़ल-गाँव
ग़ज़ल-
आईने में कभी जब मचल जाते हैं
भाव चेहरे के उनके बदल जाते हैं
धूप की गर्मियों के ही एह्सास से
पाँव में उभरे छाले पिघल जाते हैं
भूल कर राह की चन्द दुश्वारियाँ
नाम लेकर तुम्हारा निकल जाते हैं
आँसुओं तुम न आओ मेरी आँख में
दर्द आने से पहले सँभल जाते हैं
दिल जलाते हैं जब शाम के वो चराग़
हम धुआँ बन के रातों में ढल जाते हैं
धूप बाती सजा के किसी थाल में
‘आरती’ बन के अक्सर ही जल जाते हैं
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ग़ज़ल-
आँख मत मींचना चाँदनी रात में
चाँद को देखना चाँदनी रात में
उसकी आँखों में है कितनी ही ख़ूबियाँ
गौर से देखना चाँदनी रात में
तैरकर मछलियाँ आएँगी ख़ुद इधर
जाल मत फेंकना चाँदनी रात में
फूल-सा खिल उठेगा तुम्हारा हृदय
याद से सींचना चाँदनी रात में
गर मुकद्दर में है मिल ही जायेंगे हम
एक दिन देखना चाँदनी रात में
याद है प्यार की बातें करते हुए
रात भर जागना चाँदनी रात में
‘आरती’ का दीया बुझ न पाये कभी
ये दुआ माँगना चाँदनी रात में
– आरती आलोक वर्मा